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समाधान हमेशा समस्या के मूल में छिपा होता है। इन्हें अंजाम देने की शुरुआत का समय अप्रैल ही है। बेहतर है कि आप काम शुरू करने से पहले स्थानीय ग्राम, खंड अथवा जिला विकास अधिकारी से संपर्क कर ऊसर सुधार संबंधी योजना/परियोजना, अनुदान व प्रशिक्षण कैम्पों की जानकारी ले लें। जानकारी होने पर अपनी ग्राम पंचायत व ग्रामसभा के साथियों को उसका लाभ लेने के लिए प्रेरित करें। याद रखें कि मिलने वाला अनुदान कोई खैरात नहीं होता, वह लाभार्थी का हक होता है। यदि ऊसर सुधारना हो तो सबसे पहला काम है यह पहचानना कि जमीन ऊसर है या नहीं। आइ, पहचानें। काई की हरी परत, चटकी हुई मिट्टी, काले-स्लेटी धब्बे और नमक की सफेदी -ये लक्षण किसी भी खेत के ऊसर हो जाने की पहचान हैं। किसी भी खेत में ऐसे लक्षणों की शुरुआत होते ही हमें सतर्क हो जाना चाहिए।
दरअसल, अधिकता चाहे घुलनशील सोडियम नमक की हो या विनिमेयशील सोडियम की.. भूमि को ऊसर ही बनाती है। बारिश अधिक हो; जलवायु नम। बारिश कम हो और तापमान अधिक। जलनिकासी बाधित रहती हो। भूजल का स्तर ऊंचा हो। इलाका नहरी रिसाव का हो। जमीन को लंबे समय से जोता-बोया न जाए। ये कारण मिलकर अच्छी-खासी उपजाऊ भूमि को ऊसर बना देते हैं।
समाधान हमेशा समस्या के मूल में छिपा होता है। निम्नलिखित 15 कार्याें को क्रमबद्ध अंजाम देकर किसी भी ऊसर को सुधारा जा सकता है। इन्हें अंजाम देने की शुरुआत का समय अप्रैल ही है। बेहतर है कि आप काम शुरू करने से पहले स्थानीय ग्राम, खंड अथवा जिला विकास अधिकारी से संपर्क कर ऊसर सुधार संबंधी योजना/परियोजना, अनुदान व प्रशिक्षण कैम्पों की जानकारी ले लें। जानकारी होने पर अपनी ग्राम पंचायत व ग्रामसभा के साथियों को उसका लाभ लेने के लिए प्रेरित करें। याद रखें कि मिलने वाला अनुदान कोई खैरात नहीं होता, वह लाभार्थी का हक होता है।
1. मिट्टी की जांच : ऊसर भूमि की तीन श्रेणियां होती हैं। पी एच मान और खेती की क्षमता मिलकर तय कर देते हैं कि ऊसर भूमि किस श्रेणी की है और उसमें कितनी और कैसी फसल होगी। मिट्टी की जांच के नतीजे से निम्न सारणी के अनुसार आप अपनी मिट्टी की श्रेणी जान सकते हैं। यह जानने के बाद ही आप तय कर पाएंगे कि आपको अपने ऊसर जमीन के सुधार के लिए कितने जिप्सम की आवश्यकता पड़ेगी। अतः सबसे मिट्टी जांच कराएं।
2. मेड़बंदी : अच्छी-मजबूत मेड़ किसी भी खेत में नमी को टिकाए रखने, अनुशासित सिंचाई तथा अतिक्रमण से बचाए रखने की सबसे पहली शर्त है तो ऊसर सुधार सबसे पहला और जरूरी काम। इसे किया ही जाना चाहिए। न्यूनतम डेढ़ फीट ऊंची मेड़ तो होनी ही चाहिए। इसके लिए राज्य व केन्द्र सरकारों द्वारा संचालित भूमि सुधार, ऊसर सुधार व बंजर भूमि विकास संबंधी योजना-परियोजनाओं का लाभ लिया जा सकता है। ‘मनरेगा’ के तहत् भी निजी खेतों पर मेड़बंदी का प्रावधान है।
3. स्क्रेपिंग : मिट्टी की ऊपरी और निचली परतों में से नमक को पूरी तरह हटाए बगैर ऊसर भूमि को उपजाऊ नहीं बनाया जा सकता। ‘स्क्रेपिंग’ मिट्टी की ऊपरी परत में उभर आए नमक को पूरी तरह हटाने का काम है। सावधानी बरतें कि इस तरह हटाए नमक को खेत से बाहर किसी गड्ढे में डालें अथवा किसी नाले में बहा दें। ऐसी जगह कतई न डालें कि बारिश के दौरान वह वापस खेत में आ जाए।
4. सब प्लाटिंग : सब प्लाटिंग का मतलब होता है, खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेना। यह तीसरा महत्वपूर्ण कदम है। ऐसा करना समतलीकरण और आगे की प्रक्रिया में मददगार सिद्ध होता है।
5. समतलीकरण : खेत का समतलीकरण सबसे जरूरी काम है। इसे पूरी संजीदगी और कुशलता से किया जाना चाहिए। यदि खेत समतल नहीं होगा तो खेत में डाला जाने वाला जिप्सम किसी एक जगह इकट्ठा हो जाएगा। पूरे खेत में एक समान जिप्सम नहीं फैलने से असर भी एक समान होगा; जोकि अनुचित है।
6. खेतनाली : समतल हो गए खेत में ढाल की ओर अथवा खेत के बीचों-बीच खेत नाली बनाएं। खेत नाली का उपयोग जल निकासी के लिए किया जाता है।
7. संपर्क नाली : खेत मे पानी भरकर उसे निकालना ऊसर सुधार प्रक्रिया का एक अहम् हिस्सा है। इसके लिए खेत की सीमा से सटाकर एक नाली ऐसी बनाए, जिसमें से होकर नजदीक के किसी बड़े नाले में जलनिकासी की जा सके।
8. मुख्य नाला : यदि बड़ा नाला दूर हो तो संपर्क नाली और बड़े नाले के बीच में एक मुख्य नाला बनाना पड़ता है। आवश्यकतानुसार यह करना चाहिए।
9. बोरिंग : उक्त कदमों से यह तो स्पष्ट है कि एक अकेले व्यक्ति अथवा छोटे रकबे में किए जाने पर ऊसर सुधार अधिक श्रम लागत आधारित प्रक्रिया है। अतः इसे सामूहिक अथवा बड़े रकबे में करना ही श्रेयस्कर रहता है। इस दृष्टि से नलकूप के लिए की जाने वाली बोरिंग भी हार के सबसे ऊंचे खेत में करनी चाहिए; ताकि किसी खेत में पानी चढ़ने में दिक्कत न हो।
10. नलकूप : नलकूप साझा लगाएं या एकल, यह उपयोगकर्ताओं को सुविधा, रकबा व अन्य उपयोगानुसार तय करना चाहिए। योजनाओं मे साझे नलकूप का ही प्रावधान है।
11. सिंचाई नाली : सिंचाई नाली हमेशा खेत के ऊंचे ढाल की तरफ से बनानी चाहिए।इसका पुख्ता होना जरूरी है।
12. फ्लसिंग : फ्लंसिंग वह प्रक्रिया है, जिसमें ऊसरीली जमीन को 15 सेंमी ऊंचा पानी भर देते हैं। 48 घंटे बाद जब पानी को बहाया जाता है, तो इसके साथ-साथ नुकसानदेह लवण भी पानी में घुलकर बह जाता है। फ्लसिंग और स्क्रेपिंग- याद रहे कि यह दोनों प्रक्रिया मिट्टी की निचली और ऊपरी सतह में मौजूद लवण को निकाल बाहर करने के लिए हैं। इन्हें आधा-अधूरा नहीं करना चाहिए।
13. जिप्सम मिक्सिंग : फ्लसिंग के बाद नंबर आता है ऊसर को उर्वर बनाने वाली जिप्सम को मिट्टी में मिलाने का। जिप्सम सस्ता, लेकिन ऊसर सुधार के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसे किसी भी मात्रा में या अधिक से अधिक मात्रा में नहीं मिलाना चाहिए। किस श्रेणी में पोषक तत्व की कितनी मात्रा कम है, तद्नुसार जिप्सम की मात्रा तय की गई है। उसी अनुसार मिलाएं। यह सरकारी आपूर्तिकर्ताओं के पास उचित दर पर उपलब्ध रहता है।
14. लीचिंग : मिट्टी में जिप्सम को भली प्रकार से मिला देने के बाद जून के दूसरे पखवाड़े में खेत को एक बार फिर 10-12 सेमी ऊँचे पानी से भर दें। 10 से 12 दिन बाद बचे हुए पानी को निकाल दें। इस प्रक्रिया को ‘लीचिंग’ कहते हैं।
15. खेत सुधार : लीचिंग के बाद यूं तो आपका खेत धान की खेती के लिए तैयार होगा; किंतु यदि आप खेत को हरी, देसी, नाडेप अथवा केंचुआ खाद दे सकें तो सोने में सुहागा हो जाएगा। ध्यान रहे कि धान रोपाई को बेहन समय से तैयार करें और उचित समय आने पर रोप दें। उचित बीज का चयन, खेती का वैज्ञानिक तरीका, कीट सुरक्षा और उचित तकनीक का उपयोग करें तो उपज बेहतर होने की संभावना बढ़ जाएगी।
सावधानी करने की बात यह है कि जिन कारणों से कोई उपजाऊ जमीन ऊसर हो जाती है, वे गलतियां हम न खुद करें और न किसी और को करने दें। ऐसा करना अपने व देश की खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी है। आइए, करें। मिलकर बदलें तकदीर अपनी, तस्वीर देश की और जिंदगी खेतों की।
खेत क्यों हो जाते हैं ऊसर?
दरअसल, अधिकता चाहे घुलनशील सोडियम नमक की हो या विनिमेयशील सोडियम की.. भूमि को ऊसर ही बनाती है। बारिश अधिक हो; जलवायु नम। बारिश कम हो और तापमान अधिक। जलनिकासी बाधित रहती हो। भूजल का स्तर ऊंचा हो। इलाका नहरी रिसाव का हो। जमीन को लंबे समय से जोता-बोया न जाए। ये कारण मिलकर अच्छी-खासी उपजाऊ भूमि को ऊसर बना देते हैं।
कैसे सुधारें ऊसर?
समाधान हमेशा समस्या के मूल में छिपा होता है। निम्नलिखित 15 कार्याें को क्रमबद्ध अंजाम देकर किसी भी ऊसर को सुधारा जा सकता है। इन्हें अंजाम देने की शुरुआत का समय अप्रैल ही है। बेहतर है कि आप काम शुरू करने से पहले स्थानीय ग्राम, खंड अथवा जिला विकास अधिकारी से संपर्क कर ऊसर सुधार संबंधी योजना/परियोजना, अनुदान व प्रशिक्षण कैम्पों की जानकारी ले लें। जानकारी होने पर अपनी ग्राम पंचायत व ग्रामसभा के साथियों को उसका लाभ लेने के लिए प्रेरित करें। याद रखें कि मिलने वाला अनुदान कोई खैरात नहीं होता, वह लाभार्थी का हक होता है।
ऊसर सुधार के 15 कदम
1. मिट्टी की जांच : ऊसर भूमि की तीन श्रेणियां होती हैं। पी एच मान और खेती की क्षमता मिलकर तय कर देते हैं कि ऊसर भूमि किस श्रेणी की है और उसमें कितनी और कैसी फसल होगी। मिट्टी की जांच के नतीजे से निम्न सारणी के अनुसार आप अपनी मिट्टी की श्रेणी जान सकते हैं। यह जानने के बाद ही आप तय कर पाएंगे कि आपको अपने ऊसर जमीन के सुधार के लिए कितने जिप्सम की आवश्यकता पड़ेगी। अतः सबसे मिट्टी जांच कराएं।
ऊसर श्रेणी सारणी
श्रेणी | पी एच मान | फसल |
सी | 8.5 या अधिक | संभव नहीं |
बी | 8.5 या अधिक | एक फसली |
बी प्लस | 8.5 या अधिक | दो फसली, किंतु उत्पादकता कम |
2. मेड़बंदी : अच्छी-मजबूत मेड़ किसी भी खेत में नमी को टिकाए रखने, अनुशासित सिंचाई तथा अतिक्रमण से बचाए रखने की सबसे पहली शर्त है तो ऊसर सुधार सबसे पहला और जरूरी काम। इसे किया ही जाना चाहिए। न्यूनतम डेढ़ फीट ऊंची मेड़ तो होनी ही चाहिए। इसके लिए राज्य व केन्द्र सरकारों द्वारा संचालित भूमि सुधार, ऊसर सुधार व बंजर भूमि विकास संबंधी योजना-परियोजनाओं का लाभ लिया जा सकता है। ‘मनरेगा’ के तहत् भी निजी खेतों पर मेड़बंदी का प्रावधान है।
3. स्क्रेपिंग : मिट्टी की ऊपरी और निचली परतों में से नमक को पूरी तरह हटाए बगैर ऊसर भूमि को उपजाऊ नहीं बनाया जा सकता। ‘स्क्रेपिंग’ मिट्टी की ऊपरी परत में उभर आए नमक को पूरी तरह हटाने का काम है। सावधानी बरतें कि इस तरह हटाए नमक को खेत से बाहर किसी गड्ढे में डालें अथवा किसी नाले में बहा दें। ऐसी जगह कतई न डालें कि बारिश के दौरान वह वापस खेत में आ जाए।
4. सब प्लाटिंग : सब प्लाटिंग का मतलब होता है, खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेना। यह तीसरा महत्वपूर्ण कदम है। ऐसा करना समतलीकरण और आगे की प्रक्रिया में मददगार सिद्ध होता है।
5. समतलीकरण : खेत का समतलीकरण सबसे जरूरी काम है। इसे पूरी संजीदगी और कुशलता से किया जाना चाहिए। यदि खेत समतल नहीं होगा तो खेत में डाला जाने वाला जिप्सम किसी एक जगह इकट्ठा हो जाएगा। पूरे खेत में एक समान जिप्सम नहीं फैलने से असर भी एक समान होगा; जोकि अनुचित है।
6. खेतनाली : समतल हो गए खेत में ढाल की ओर अथवा खेत के बीचों-बीच खेत नाली बनाएं। खेत नाली का उपयोग जल निकासी के लिए किया जाता है।
7. संपर्क नाली : खेत मे पानी भरकर उसे निकालना ऊसर सुधार प्रक्रिया का एक अहम् हिस्सा है। इसके लिए खेत की सीमा से सटाकर एक नाली ऐसी बनाए, जिसमें से होकर नजदीक के किसी बड़े नाले में जलनिकासी की जा सके।
8. मुख्य नाला : यदि बड़ा नाला दूर हो तो संपर्क नाली और बड़े नाले के बीच में एक मुख्य नाला बनाना पड़ता है। आवश्यकतानुसार यह करना चाहिए।
9. बोरिंग : उक्त कदमों से यह तो स्पष्ट है कि एक अकेले व्यक्ति अथवा छोटे रकबे में किए जाने पर ऊसर सुधार अधिक श्रम लागत आधारित प्रक्रिया है। अतः इसे सामूहिक अथवा बड़े रकबे में करना ही श्रेयस्कर रहता है। इस दृष्टि से नलकूप के लिए की जाने वाली बोरिंग भी हार के सबसे ऊंचे खेत में करनी चाहिए; ताकि किसी खेत में पानी चढ़ने में दिक्कत न हो।
10. नलकूप : नलकूप साझा लगाएं या एकल, यह उपयोगकर्ताओं को सुविधा, रकबा व अन्य उपयोगानुसार तय करना चाहिए। योजनाओं मे साझे नलकूप का ही प्रावधान है।
11. सिंचाई नाली : सिंचाई नाली हमेशा खेत के ऊंचे ढाल की तरफ से बनानी चाहिए।इसका पुख्ता होना जरूरी है।
12. फ्लसिंग : फ्लंसिंग वह प्रक्रिया है, जिसमें ऊसरीली जमीन को 15 सेंमी ऊंचा पानी भर देते हैं। 48 घंटे बाद जब पानी को बहाया जाता है, तो इसके साथ-साथ नुकसानदेह लवण भी पानी में घुलकर बह जाता है। फ्लसिंग और स्क्रेपिंग- याद रहे कि यह दोनों प्रक्रिया मिट्टी की निचली और ऊपरी सतह में मौजूद लवण को निकाल बाहर करने के लिए हैं। इन्हें आधा-अधूरा नहीं करना चाहिए।
13. जिप्सम मिक्सिंग : फ्लसिंग के बाद नंबर आता है ऊसर को उर्वर बनाने वाली जिप्सम को मिट्टी में मिलाने का। जिप्सम सस्ता, लेकिन ऊसर सुधार के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसे किसी भी मात्रा में या अधिक से अधिक मात्रा में नहीं मिलाना चाहिए। किस श्रेणी में पोषक तत्व की कितनी मात्रा कम है, तद्नुसार जिप्सम की मात्रा तय की गई है। उसी अनुसार मिलाएं। यह सरकारी आपूर्तिकर्ताओं के पास उचित दर पर उपलब्ध रहता है।
14. लीचिंग : मिट्टी में जिप्सम को भली प्रकार से मिला देने के बाद जून के दूसरे पखवाड़े में खेत को एक बार फिर 10-12 सेमी ऊँचे पानी से भर दें। 10 से 12 दिन बाद बचे हुए पानी को निकाल दें। इस प्रक्रिया को ‘लीचिंग’ कहते हैं।
15. खेत सुधार : लीचिंग के बाद यूं तो आपका खेत धान की खेती के लिए तैयार होगा; किंतु यदि आप खेत को हरी, देसी, नाडेप अथवा केंचुआ खाद दे सकें तो सोने में सुहागा हो जाएगा। ध्यान रहे कि धान रोपाई को बेहन समय से तैयार करें और उचित समय आने पर रोप दें। उचित बीज का चयन, खेती का वैज्ञानिक तरीका, कीट सुरक्षा और उचित तकनीक का उपयोग करें तो उपज बेहतर होने की संभावना बढ़ जाएगी।
सावधानी करने की बात यह है कि जिन कारणों से कोई उपजाऊ जमीन ऊसर हो जाती है, वे गलतियां हम न खुद करें और न किसी और को करने दें। ऐसा करना अपने व देश की खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी है। आइए, करें। मिलकर बदलें तकदीर अपनी, तस्वीर देश की और जिंदगी खेतों की।