केन का दर्द

Submitted by admin on Wed, 02/24/2010 - 14:51
वर्तमान के बुन्देलखंड पर गौर करें तो अकाल से असमय मौतें, आत्महत्यायें, भुखमरी और कर्ज की यात्रा में सुरताल करते हताश किसानों का चित्र उभर कर आता है। शहरों का गंदा पानी, शहरों के कचरे से पटते तालाब, 75 प्रतिशत तालाबों पर जारी अतिक्रमण, खुले में शौच निपटान और बजबजाती नालियों से बुन्देलखंड के शहरों का एक और चित्र बनता है। बांदा जिले की एक मात्र जलधारा केन जो कि उत्तर एवं मध्य विन्ध्य क्षेत्र बुन्देलखंड का एक मात्र जल स्रोत है के तटों पर अधजले शवों, नगरपालिका शहर के कूड़े कचरे, प्लास्टिक, जैव रसायनिक तत्व, मांस उत्पादकों के बचे हुए अपशिष्ट पदार्थों के बहाव को जारी किये हुए हैं। केन बढ़ते हुए जल प्रदूषण से तबाही की ओर अग्रसर है। ग्रामीण क्षेत्रों से हुए पलायन के कारण बढ़ता हुआ शहरीकरण, जनसंख्या आधिक्य भी इसका एक कारण है। इस क्षेत्र का सम्पूर्ण देश में सर्वाधिक जल संकट वाले भूगर्भीय जल आपदा क्षेत्र का दर्जा है।

कभी चन्देलकालीन महोबा जिले के तालाब जो कभी पानी की नजीर हुआ करते थे और जिन्हें सागर की उपमा दी जाती थी। जैसे- मदन सागर, कीरत सागर, मोतीसागर आदि जिनसे पूरे महोबा की जनता जल प्राप्त करती थी वे अब सूख चुके हैं, जिनका हाल-फिलहाल समाधान नजर नहीं आता है। इनको बचाने के लिये करोड़ों रूपये की परियोजनायें कागजों में जिला ग्राम विकास अभिकरण के दस्तावेज बन चुके होंगे।

विदित हो की पिछले 6-7 वर्षों से बांदा जनपद सहित पूरे बुन्देलखंड में सूखा, कोहरा, ओलावृष्टि आदि असमायिक आपदाओं, मौसम की मार से कृषि बरबाद हुयी है, जीविकोपार्जन के लिए दैनिक संसाधन जुटा पाने की असमर्थतता विचारों में और जमीनी हकीकत के साथ गरीब किसानों, मध्यम वर्गीय परिवारों में देखी जा सकती है। यही कारण है कि आज बुन्देलखंड भी कालाहाण्डी विदर्भ के साथ आकाल के अग्रणी सोपानों में रखा जाने लगा है। बांदा जनपद में ही बीत चुके छः महीने के अन्दर हेयरडाई से 350 आत्महत्यायें हुयी हैं, जिनमें मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना भी खुदकुशी का मूक गवाह बन चुकी है। जहां मजदूरों को पगार नहीं मिलती, दलाली के चलते मुर्दों के जाब कार्ड बना दिये जाते हैं, मुआवजे के नाम पर अधूरे इन्दिरा आवास बनाये जाते हैं। वर्ष 2009-10 में रवि की 80 प्रतिशत फसल नष्ट हो चुकी है। किसानों के सामने बैंकों से लिए गये कर्ज को चुकाने की चिंता, जवान होती बेटी के हाथ पीले करने का दुखड़ा, बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने की अधूरी ख्वाइस उनके जहन में बरकरार है।

भू-गर्भ जल निदेशालय से सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गयी सूचनाओं के आंकड़ों के आधार पर निम्न बातें कही जा सकती है।

चित्रकूट धाम मण्डल बांदा मुख्यालय में शहर के अन्तर्गत आने वाले लगभग सभी तालाब अतिक्रमण और प्रदूषण का शिकार हैं। भू-गर्भ जल निदेशालय की रिपोर्ट के अनुसार बांदा के तालाबों का 75 प्रतिशत प्रदूषण शहर के ठोस अपशिष्ट डम्प करने, मांस उत्पादकों के बचे हुए अपशिष्ट तालाबों, नदियों में निस्तारित करने, खुले में शौच करने हेतु उपयोग में लाने की वजह से और रनऑफ आदि से प्रदूषित हैं। नवाब टैंक, प्रागी तालाब, छाबी तालाब, कन्धरदास तालाब, बाबा तालाब, परशुराम तालाब, मानिक कुईंआ जैसे प्रमुख जलस्रोत आज डूबने की कगार पर हैं। इनमें जैव रसायन आक्सीजन 6.5 मिलीग्राम से 15.5 मिलीग्राम तक प्रति लीटर है। वनस्पति और जीव जन्तु के लिए भू-जल की कमी से नगर के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर हुए हैं। रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि बुन्देलखंड विन्ध्य पठारी क्षेत्र में स्थित नागर क्षेत्र बांदा दक्षिणी पुनिनसुलर क्षेत्र में सेंडीमेन्ट्स शैल समूह के अन्तर्गत आता है, यहां के स्ट्रेटा की डिस्चार्ज क्षमता काफी कम है। जबकि प्रदेश में सबसे अधिक गहराई वाला जल स्तर क्षेत्र बेतवा और जमुना नदियों की घाटियों में पाया जाता है। इसमें बांदा, हमीरपुर, जालौन, झांसी, इटावा, आगरा और इलाहाबाद शहर स्थित हैं। बुन्देलखंड में पानी की समस्या नई नहीं है, यहां भू-गर्भ जल बहुत सीमित हैं, क्योंकि धरती की नीचे की आन्तरित बनावट ऐसी है कि बहुत बड़ा जल का स्टोर नहीं हो सकता है।

स्थिति तब और भयावह हो जाती है कि जब हम लगातार भू-गर्भ जल का दोहन करते आ रहे हों और उसके रिचार्ज की उचित व्यवस्था के समाधान हमारे पास उपलब्ध नहीं है। साथ ही लगातार कम होती बारिश में हमारे लिए संकट खड़ा कर रही है। केन जनवरी-फरवरी माह में ही मेन पुल की नीचे सूखने की स्थिति में हो जाती है, गर्मी के पांच महीनों मार्च से लेकर जुलाई तक यहां पानी नगण्य स्थिति में व्याप्त रहता है, और पारम्परिक जलस्रोत सूख जाते हैं। जलस्तर उठाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की तमाम योजनायें बुन्देलखंड पैकेज, अन्य कार्यक्रमों के जरिए चलायी जाती हैं लेकिन उनसे अभी तक स्थाई समाधान के विकल्प तैयार नहीं हो सके हैं। पिछले छः वर्षों से प्रतिवर्ष बांदा जनपद में कम होती वर्षा सूखे, काल का प्रमुख कारण है। सन् 2003 से लेकर 2009 तक का औसत वर्षा चार्ट नीचे दिया गया है।

वर्ष

औसत वर्षा (लगभग)

वर्षा के दिन प्रतिवर्ष

2003

1044.88 MM

68

2004

816.60 MM

63

2005

933.30 MM

53

2006

656.70 MM

45

2007

358.50 MM

43

2008

946.50 MM

78

2009

(अभी तक) 277.30 MM

22


बांदा जनपद में निरन्तर गहराता हुआ जल संकट व्यापक जन जागरूकता व सामूहिक प्रयासों के अभाव स्वरूप ही सृजित हुआ है। बुन्देलखंड में ज्यादातर क्षेत्र अंसिचित होने के कारण बिना बुआई के रह जाता है, जिसके कारण किसान कर्ज के बोझ तले विभिन्न बैंकों द्वारा शोषित होता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक 5 हजार लोग प्रतिदिन प्रदूषित पानी से उपजी बिमारियों, संक्रमण के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। कुछ क्षेत्र में हाथ-पैरों में लकवा, आंखों की अन्धता, शारीरिक दुर्बलता, रक्त की कमी, पथरी और बवासीर (पाइल्स) से ग्रसित रहते हैं। यहां जल के उचित प्रबन्धन, पानी के मूल्य को समझने की आवश्यकता है।

नगर पालिका परिषद बांदा से वादी ने जन सूचना अधिकार पत्रांक संख्या 1394/नगर पालिका परिषद/2009-10 दिनांक 04.02.2010 के तहत जो जानकारी प्राप्त की है उन तथ्यों के बल पर यह कहा जा सकता है कि शहर में मात्र 20 जिनमें 7 छोटे (बकरा), 13 बड़े (भैंसा) काटने के लाइसेंस निर्गत किये गये हैं। इनके लिए शहर के खाईंपार मोहल्ले में एक स्लास्टर हाउस निर्मित है। ज्यादातर लाइसेंस धारकों की कागज के आधार पर दुकाने भी इसी क्षेत्र में मान्य की गयी हैं। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के चलते अवैध रूप से शहर के प्रमुख मार्गों जैसे- पदमाकर चैराहा, जवाहर नगर, पुलिस लाइन मार्ग आदि में मुर्गे, मछली, बकरे, कबूतर के गोश्त का खुलेआम व्यापार अमरयादित रूप से किया जाता है। गौरतलब है कि इन्ही मार्गों पर राजकीय महिला डिग्री कालेज, राजकीय बालिका इण्टर कालेज, एचएसएन शिक्षा निकेतन, बाजार प्रवेश मार्ग स्थापित है। जहां पिछले चार वर्षों मे मांस उत्पादन से नगर पालिका परिषद को लगातार राजस्व घाटा हुआ है वहीं इनसे बचे हुए अपशिष्ट, मांस कचरा के कारण तालाबों, नालों, केन नदी में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण बढ़ा है। वर्ष 2006 से 2009-10 तक क्रमशः निम्न राशि नगर पालिका परिषद को राजस्व के रूप में प्राप्त हुयी है- 48,107.00, 43,550.00, 39,138.00, 33,056.00 यह राशि दर्शाती है कि मांस व्यापार पूर्णता घाटे का व्यापार है। जहां एक वर्ष मे सिर्फ बांदा शहर के अन्दर एक करोड़ पचीस लाख रूपये की मांस खपत हुयी है वहीं इससे होने वाले राजस्व घाटे की भरपाई नगर पालिका या राज्य सरकार, आम जनता करेगी इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। भू-गर्भ जल निदेशालय ने बांदा शहर के बाशिन्दों को निकट भविष्य में पानी के लिए संघर्ष करने की तरफ आगाह किया है। निदेशालय के सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि भारी जल दोहन से बांदा शहर मे प्रति वर्ष 65 सेमी भू-जल स्तर की गिरावट आ रही है। यह अन्य शहरों की तुलना में अधिक है। क्योंकि लखनऊ मे 56 सेमी, कानपुर में 45, झांसी में 50 और आगरा में 40 सेमी भू-गर्भ जलस्तर गिरा है। जल संचयन, प्रबन्धन की अजागरुकता इसका अन्य कारण है।

बांदा जनपद में ही प्रत्येक वर्ष जल प्रदूषण के कारण कालरा, पीलिया, अतिसार (पेचिस), टायफायड, मलेरिया, फ्लोरोसिस, हाथी पांव जैसे रोग आम चलन में है। 10 में से 5 परिवारों के बीच ग्रामीण परिवेश में इन्हे देखा जा सकता है। जल के लिए सर्वाधिक विवाद, मुकदमें बुन्देलखंड के बांदा और महोबा जनपदों में ही होते हैं।

प्रभागी वन अधिकारी, बांदा वन प्रभाग से जनसूचना अधिकार के तहत पत्रांक संख्या 1979/26-1 जन सूआ/04.02.2010 के तहत मांगी गयी प्रमुख 17 बिन्दुओं की सूचनाओं से जो प्रति उत्तर वादी को प्राप्त हुये हैं, के अनुसार बांदा जनपद में 1.21 प्रतिशत वन क्षेत्र है, 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य है। इस वन प्रभाग में निम्न प्रकार के वन्य जीव पाये जाते हैं जैसे कि- हिरन, लकड़बग्घा, जंगली सुंअर, लोमड़ी, नीलगाय, सिंयार, चिंकारा (काला हिरन), तेन्दुआ, भेड़िया, बाज, गिद्ध इसके अतिरिक्त निम्न औषधियां भी उपलब्ध हैं। जैसे- सफेद मूसली, चितावर, गुग्गल, ब्राम्ही, गुड़मार, कलिहारी, पिपली, सर्पगन्धा, अश्व गन्धा, जटामांसी, गिलोय, दुद्धी, मरोड़फली, पापड़, हर सिंगार, धतूरा, जमरानी आदि पर्यावरण संतुलन में सभी वन प्राणियों, वनस्पतियों की भूमिका होती है, तथा उसके नष्ट होने से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा है, खनन से विस्थापित वन प्राणियों के पुनर्वास की कोई कार्यवाही वन प्रभाग द्वारा नहीं की गयी है ऐसा प्रभागी वन अधिकारी का कहना है साथ ही दुर्लभ प्रजाति के काले हिरन (चिंकारा) की संख्या दिनांक 01.06.2009 की गणना के अनुसार 59 है। विभाग के इनके संरक्षण की अभी तक कोई योजना नहीं चलाई है जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में शिकारियों, तस्करों, मांस उत्पादकों द्वारा इनका अवैध शिकार किया जा रहा है। उक्त के अतिरिक्त बुन्देलखंड के सातों जनपदों में वन जैव सम्पदा से सम्बन्धित जन सूचनायें भी वादी ने बुन्देलखंड जोन के प्रमुख वन संरक्षक, झांसी से मांगी हैं जो अभी तक अप्राप्त हैं।

बुन्देलखंड विन्ध्य क्षेत्र के प्रमुख सातों जनपद क्रमशः बांदा, चित्रकूट, महोबा, झांसी, ललितपुर, जालौन और हमीरपुर में प्राकृतिक बाजारीकरण को बढ़ावा देने के नाते पहाड़ों का खनन, वन सम्पदा का दोहन, उनमें प्रवास करने वाले जीव जन्तुओं का पुनर्वास नहीं होना ही उनकी विलुप्तता का एक मात्र कारण है, साथ ही इन क्षेत्रों में स्थित वन्य जीव विहार भी आज तबाही की स्थिति में है। उदाहरण स्वरूप चित्रकूट जनपद में स्थित रानीपुर वन्य जीव विहार की तत्कालिक परिस्थितियां देखी जा सकती हैं। जहां वन विभाग, राज्य और केन्द्र सरकारों के करोड़ो रुपये खर्च होने के बाद भी प्राकृतिक जल स्रोंतों, वन्य जीव जन्तुओं, औषधियों को नहीं बचाया जा सका है।

बुन्देलखंड, पानी को बन्धक बनाने की साजिश में शामिल केन-बेतवा लिंक की खबरें आम जन के चिंता का कारण है। गिरता हुआ जलस्तर, उसके संरक्षण की अनदेखी, प्रशासनिक कुप्रन्बधन होने से आने वाले 20 वर्षों में बुन्देलखंड के 80 प्रतिशत जलस्रोत पूरी तरह खत्म हो जायेंगे।