कहा नदी ने मेघ से

Submitted by RuralWater on Mon, 08/24/2015 - 15:57
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शिवमपूर्णा
नहीं आचमन योग्य जल, नदियाँ हुई अस्वस्थ
जीव- जन्तु हैं त्रस्त अब, मृत्यु सोच निकटस्थ

कहा नदी ने मेघ से, बरसो प्रियतम झूम
प्यास मिटा दो अमृता, मैं लूंगी मुंह चूम

गाते मेघ मल्हार हैं, मेरे दोनों कूल
अब आओ भुजबन्ध में, प्रकृति हुई अनुकूल

चरण पखारूंगी विमल, बरसो हे! घनश्याम
शुष्क दृगों को तृप्ति दो, रसमय रूप ललाम

एक पैर होकर खड़े पढ़े श्लोक ऋषि-वृक्ष
वर्षा-मंगल यज्ञ मे, आओ मेघ! समक्ष

चार महीने पूर्व ही, भेजा था सन्देश
मेघ न आए आज तक , गए कौन से देश

जहां न आवश्यकता अधिक ,ला देते हो बाढ़
मेघ! तुम्हारे पास क्या, नहीं बुद्धि की दाढ़

बहते रहना नदी का, है मौलिक अधिकार
मानव करता स्वार्थवश, उस पर कुटिल प्रहार

मैं हूं माता आपकी नहीं नदी हूं मात्र
जल को मत दूषित करो, बनकर पुत्र कुपात्र

साधु-सन्त पदधूलि से, पावन हुए थे कूल
उनके वंशज आज कल, चूभो रहे उर शूल

जल से चेतन हो रही, सारी व्यष्टि समष्टि
अमृतमयी प्रवाह से, सम्पूरित है सृष्टि