किसानों के वृक्ष मित्र

Submitted by Hindi on Tue, 12/28/2010 - 08:44
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अमर उजाला 24 दिसम्बर 2010


छत्तीसगढ़ के उत्तरी पहाड़ी इलाके अंबिकापुर-सरगुजा में वृक्षमित्र के नाम से चर्चित एक शख्स किसानों की भलाई करने और पेड़ों को हरियाली देने में जुटा है। ओपी अग्रवाल नाम का यह आदमी हालांकि एक राजनीतिक दल से जुड़ा है, लेकिन उनके विराट लक्ष्य को देखते हुए राजनीतिक विरोधी भी उनका सम्मान करते हैं। खेती में अभिनव प्रयोग, पर्यावरण संरक्षण और सहकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान छिपा नहीं है। किसान की बेहतरी के बारे में सोचने के कारण उनके लिए हमेशा कुछ नया करते रहने की उन्होंने ठानी है।

ओपी अग्रवाल ने पर्यावरण संरक्षण के लिए दशकों पहले काम शुरू कर दिया था, लेकिन पहली बार वर्ष 1990 में उनके काम को सम्मान मिला, जब केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया। हरे-भरे छत्तीसगढ़ में कम होती हरियाली के खिलाफ इन्होंने सरगुजा और आसपास के अन्य इलाकों में किसानों की निजी भूमि, सरकारी भूमि और पंचायतों की करीब पांच हजार हेक्टेयर जमीन पर एक करोड़ से अधिक पेड़ लगाने में सहयोग किया।

ठेठ देसी तरीकों के प्रयोग से खेती के उन्नयन के लिए इन्होंने एक से एक तकनीक खोज निकाली है। इस तकनीक से किसान न केवल कम खर्च में ज्यादा पैदावार ले सकते हैं, बल्कि मिट्टी को भी प्रदूषित होने से बचाए रख सकते हैं। ऐसी ही एक तकनीक है वर्मी कंपोस्ट यानी केंचुए की खाद से खेती। देश में जैविक खेती की प्राचीन परंपरा रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उत्पादन के लगातार बढ़ते दबाव के चलते किसानों ने रासायनिक खेती अपना ली है। इससे पर्यावरण संतुलन तो बिगड़ा ही है, मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम हुई है।

ओपी अग्रवाल ने जब अपने खेत में केंचुए के टॉके में कददू का एक पौधा उगता हुआ देखा, तो उन्होंने उसे फलने-फूलने दिया। उन्हें आश्चर्य तब हुआ, जब इस बेल में 15 से 25 किलो वजन के 17 फल लगे। उन्हें इससे प्रेरणा मिली। उन्होंने खेती में इस तरह के कई सफल प्रयोग किए।

देश में छह लाख से अधिक गांव हैं, जिनमें खेती के लिए केंद्र सरकार 50 हजार करोड़ रुपये रासायनिक खाद पर अनुदान के रूप में खर्च करती है। यदि सरकार इस मॉडल का प्रयोग मनरेगा जैसी योजना के माध्यम से गांवों में करे, तो करीब दो हजार वर्ग फीट जमीन में साल भर रोजगार के साथ-साथ जैविक पद्धति से फल और सब्जी की पैदावार ली जा सकती है। इसके अलावा भूमि की उर्वरा शक्ति और मनुष्य के स्वास्थ्य, दोनों की सुरक्षा के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग से भी बचाव किया जा सकता है।
 

 

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