केन्द्र सरकार द्वारा किसानों की आय समन्वित तरीके से बढ़ाने के उद्देश्य से कई योजनाएँ शुरू की गई हैं और नीतिगत-स्तर पर भी काफी सुधार हुए हैं। साथ ही, इन योजनाओं को वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए कृषि क्षेत्र से जुड़े बजटीय आवंटन में बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी की गई है। बजटीय संसाधनों के अतिरिक्त गैर बजटीय संसाधनों का भी उपयोग किया जा रहा है। लघु एवं सीमांत किसानों की मदद के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना और प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना भी शुरू की गई है।
सरकार किसानों की आय बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित कर कृषि क्षेत्र को पटरी पर लाने में जुटी है। यह पूरी कोशिश सिर्फ उत्पादन के लक्ष्यों तक सीमित नहीं है। अन्य कई मोर्चों पर भी पहल की जा रही है। आय बढ़ाने से जुड़े अभियान में उत्पादन को ऊँचे स्तर पर ले जाने, जुताई का खर्च घटाने और उत्पाद मूल्य बढ़ाने पर जोर है, ताकि किसानों के लिए ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा तय किया जा सके। किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से कई योजनाएँ शुरू की गई हैं और नीतिगत-स्तर पर भी काफी सुधार हुए हैं। साथ ही, इन योजनाओं को वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए कृषि क्षेत्र से जुड़े बजटीय आवंटन में बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी की गई है। बजटीय संसाधनों के अतिरिक्त गैर-बजटीय संसाधनों का भी उपयोग किया जा रहा है।
किसानों की आय दोगुनी करने सम्बन्धी सुझाव देने वाली कमेटी में जाहिर तौर पर विचार-विमर्श का मुख्य केन्द्र किसानों की आय है और मुख्य रणनीति के तौर पर इस पर ही काम किया गया। ‘भारतीय कृषि में बदलाव’ के लिए हाल में मुख्यमंत्रियों की एक उच्चस्तरीय समिति बनाई गई है और इस मुद्दे पर विचार-विमर्श व रिपोर्ट तैयार करने के लिए समिति की दो बैठकें हो चुकी हैं। ये बैठकें इसी साल 18 जुलाई और 16 अगस्त को हुई।
किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में समन्वित तरीके से काम करने के लिए फिलहाल सरकार विभिन्न योजनाओं पर अमल करने के साथ-साथ नीतिगत कदम भी उठा रही हैः
उत्पादन में बढ़ोत्तरी
- मोटे अनाज, दाले, तिलहन, पोषण-युक्त अनाजों, व्यावसायिक फसलों के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम)।
- फल-फूल और सब्जियों से जुड़ी फसलों की ऊँची वृद्धि दर के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन।
- तिलहन और पाम ऑयल (ताड़ का तेल) का उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय तिलहन एवं ऑयल पाम मिशन।
जुताई की लागत में कटौती
- खाद के उचित और सन्तुलित इस्तेमाल के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, ताकि किसानों की लागत में बचत हो सके।
- यूरिया के नियंत्रित इस्तेमाल के लिए नीम कोटेड यूरिया को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि फसल में नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ सके और खाद सम्बन्धी लागत घट सके।
- ‘हर खेत को पानी’ लक्ष्य के तहत प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई), जिसका मकसद सिंचाई आपूर्ति श्रृंखला में हर तरह की मदद उपलब्ध कराना है, मसलन जल संसाधन, वितरण नेटवर्क और खेत के स्तर पर उपयोग। पीएमकेएसवाई के लघु सिंचाई पहलू के तहत 12 लाख हेक्टेयर सालाना की सिंचाई का लक्ष्य रखा गया है।
छोटे और सीमांत किसानों की मदद के लिए
भारत सरकार ने छोटे और सीमान्त किसानों की मदद के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान (पीएम-किसान) निधि योजना शुरू की है। इस योजना के तहत किसान परिवारों को 6,000 रुपए सालाना दिए जा रहे हैं। शुरू में इस योजना के दायरे में सिर्फ छोटे और सीमान्त किसानों को ही रखा गया था यानी जिन किसानों के पास 2 हेक्टेयर या इससे कम जमीन थी, वे ही इसके लाभार्थी हो सकते थे। हालांकि, अब केन्द्र सरकार ने इस योजना के दायरे में सभी किसानों को शामिल करते हुए जमीन सम्बन्धी शर्त को (2 हेक्टेयर या इससे कम जमीन सम्बन्धी प्रावधान) हटा दिया है। हालांकि, इस योजना का लाभ उठाने के लिए कुछ और योग्यता व शर्तें भी तय की गई हैं, जिनका पालन जरूरी है।
राज्य सरकार और केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासन की तरफ से उन किसान परिवारों की पहचान की जाती है, जो योजना की शर्तों के मुताबिक यह लाभ पाने के योग्य हैं। यह फंड सीधा लाभार्थियों के खाते में ट्रांसफर किया जाता है। पीएम किसान योजना के अब तक 6,37 करोड़ लाभार्थी हैं और किसान परिवारों को प्रत्यक्ष लाभ के तहत 20,520 करोड़ रुपए हस्तातंरित किए जा चुके हैं।
- सरकार ने प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना (पीएम-केएमवाई) भी शुरू की है। इसके तहत योजना से जुड़ी शर्तों को पूरा करने वाले छोटे और सीमांत किसानों की उम्र 60 साल होने पर उन्हें न्यूनतम 3,000 रुपए प्रति महीना पेंशन दिए जाने का प्रावधान है। यह स्वैच्छिक और योगदान करने वाली पेंशन योजना है और इसमें योगदान के लिए आयु सीमा 18 से 40 साल है। इसमें किसान अपनी उम्र के हिसाव से 55 से 200 रुपए तक का योगदान कर सकते हैं। इस पेंशन योजना में केन्द्र सरकार इतनी ही राशि अपनी तरफ से पेंशन फंड में देगी।
लाभकारी रिटर्न सुनिश्चित करना
- राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना (ई-नाम) कृषि बाजारों में क्रान्तिकारी बदलाव लाने से जुड़ी नवोन्मेषी बाजार प्रक्रिया है। इसमें रियल टाइम आधार पर कीमतों के बारे में जानकारी मुहैया कराते हुए तथा पारदर्शिता व प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर किसानों के लिए अपने उत्पादों का बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने की बात है। इसके जरिए एक देश, एक बाजार दिशा मे बढ़ने का मकसद है।
- किसान उत्पादक संगठन ई-नाम पोर्टल से जुड़े हैं और इन संगठनों ने अपने वेब पते से व्यापार के लिए अपनी उत्पाद सम्बन्धी सूचना अपलोड करना शुरू किया है।
- कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन संवर्धन और सुगमता मॉडल कानून, 2017, राज्योंध् केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए 24 अप्रैल, 2017 को जारी किया गया। इस कानून को लाने का मकसद किसानों को बेहतर कीमत दिलाने के लिए वैकल्पिक प्रतिस्पर्धी विपणन माध्यमों को बढ़ावा देना और सक्षम विपणन आधारभूत संरचना तथा मूल्य श्रृंखला विकसित करने के लिए निजी निवेश प्रोत्साहित करना है। इस कानून के प्रावधानों में निजी बाजार, प्रत्यक्ष विपणन, किसान-उपभोक्ता बाजार, विशेष कमोडिटी बाजार की स्थापना और कोल्ड स्टोरेज या इस तरह के ढाँचे को बाजार सब यार्ड के तौर पर घोषित करना शामिल हैं।
- मौजूदा 22,000 ग्रामीण हाटों को विकसित कर ग्रामीण कृषि बाजार में बदला जाएगा। ये ग्रामीण कृषि बाजार इलेक्ट्रॉनिक रूप से ई-नाम पोर्टल से जुड़े होंगे और कृषि उत्पाद विपणन समितियों के नियमों से मुक्त भी होंगे। ग्रामीण कृषि बाजार के जरिए किसानों को सीधा उपभोक्ताओं और थोक खरीदारों को अपना उत्पाद बेचने की सुविधा होगी।
- वेयरहाउसिंग और फसल तैयार होने के बाद सस्ती दर पर कर्ज की सुविधा मुहैया कराना, ताकि किसानों को मजबूरन जल्दबाजी में अपना उत्पाद बेचने की नौबत नहीं आए और उन्हें जरूरी दस्तावेजों के आधार पर वेयरहाउस में अपना उत्पाद रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
- कुछ फसलों के लिए समय समय पर न्यूनतम समर्थन मूल्य सम्बन्धी अधिसूचना जारी की जाती है। किसानों की आय को बढ़ावा देने से जुड़े उपाय के तहत सरकार ने हाल में 2019-20 सीजन के लिए सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है।
- मूल्य समर्थन योजना के तहत सम्बन्धित राज्य सरकार के अनुरोध पर केन्द्रीय एजेंसियों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तिलहन, दालों और कपास की खरीद की जाती है।
- जल्दी खराब होने वाले और पीएसएस के दायरे से बाहर फल, सब्जियाँ व अन्य कृषि उत्पादों की खरीद के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस)।
जोखिम प्रबन्धन और टिकाऊ प्रणाली के लिए
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत फसल चक्र के सभी चरण में बीमा कवर मुहैया कराया जाता है। कुछ फसलों के मामले में फसल तैयार हो जाने (कटाई) के बाद का जोखिम भी शामिल होता है। ये बीमा योजनाएँ किसानों को काफी सस्ते प्रीमियम पर उपलब्ध हैं।
- कम अवधि वाले 3 लाख रुपए तक के कर्ज पर सरकार 5 प्रतिशत ब्याज सब्सिडी (3 प्रतिशत तुरन्त भुगतान इंसेंटिव) मुहैया कराती है। लिहाजा, तुरन्त भुगतान पर 4 प्रतिशत की दर पर ही कर्ज उपलब्ध है।
- देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना को लागू किया जा रहा है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता और जैविक सामग्री की स्थिति में सुधार होगा और ऊँची कीमत मिलने पर किसानों की शुद्ध आय में भी बढ़ोत्तरी होगी।
- देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में जैविक खेती की सम्भावना का लाभ उठाने के लिए उत्तर-पूर्व में जैविक खेती मिशन-एमओवीसीडी (उत्तर-पूर्व)।
सम्बद्ध गतिविधियाँ
- खेती की जमीन पर फसलों के साथ पौधारोपण को प्रोत्साहित करने के लिए 2016-17 के दौरान ‘हर मेड पर पेड़’ कार्यक्रम शुरू किया गया। इस योजना पर उन राज्यों में काम शुरू हुआ है, जहाँ लकड़ियों को इधर-उधर ले जाने के लिए उदारीकृत नियमों वाली अधिसूचना जारी की गई है। खेती के साथ पेड़ लगाने से न सिर्फ मिट्टी में जैविक कार्बन को बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि किसानों के लिए आय का अतिरिक्त साधन तैयार करने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
- बाँस क्षेत्र में मूल्य श्रृंखला आधारित सम्पूर्ण विकास के मकसद से केन्द्रीय बजट 2018-19 में राष्ट्रीय बाँस मिशन की शुरुआत की गई, ताकि यह किसानों की आय के पूरक के तौर पर काम कर सके।
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया गया है, ताकि शहद का उत्पादन बढ़ाकर किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का साधन तैयार किया जा सके।
- डेयरी के विकास के लिए तीन प्रमुख योजनाएँ हैः राष्ट्रीय डेयरी योजना-1 (एनडीपी-1), राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी) और डेयरी उद्यमिता विकास योजना।
- गायों और भैसों की देसी नस्ल को बढ़ावा देने के लिए दिसम्बर 2014 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत की गई।
- पशुधन, खासतौर पर छोटे पशुओं (भेड़/बकरी, पोल्ट्री आदि) के विकास के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ 2014-15 में राष्ट्रीय पशुधन मिशन की शुरुआत की गई।
एक किसान की आय खेती (बागवानी समेत), इससे जुड़ी गतिविधियों मसलन डेयरी, पशुधन, मुर्गीपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन आदि से मिली-जुली कमाई पर निर्भर करती हैं। खेती से सम्बन्धित आमदनी के अलावा वे मजदूरी, खेती से अलग कार्यों आदि से भी कमाई करते हैं। खेती से कमाई किसी किसान की आय का प्रमुख स्रोत है। कृषि सम्बन्धी चुनौतियों और किसानों के हितों को पूरा करने के लिए ऊँची और नियमित आय जरूरी है। इन चुनौतियों के कई पहलू होने के बावजूद देश की कृषि में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अतः पहले से उलट अब उत्पादन और विपणन (मार्केटिंग) एक साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलेंगे, जबकि बीते वक्त में इन दोनों की भूमिका क्रमबद्ध मानी जाती थी।
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