नई दिल्ली, 12 जनवरी अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायलय (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन) ने पाकिस्तान को तय मात्रा में पानी छोड़ने का फैसला सुनाया है। इससे भारत को जम्मू कश्मीर में अपनी निर्माणाधीन किशनगंगा जलविद्युत परियोजना से बिजली उत्पादन में पांच फीसद सालाना की कमी होने की आशंका है।
हेग स्थित अदालत ने पिछले साल दिसंबर में फैसला सुनाया था कि भारत को पर्यावरणीय कारणों से किशनगंगा नदी पाकिस्तानी नाम नीलम में न्यूनतम नौ क्युमेक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड) पानी छोड़ना चाहिए। जल संसाधन मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, ‘इससे पांच फीसद ऊर्जा उत्पादन प्रभावित होगा।’ इस परियोजना को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि किशनगंगा पर बने एक बांध स्थल से पानी झेलम नदी की सहायक नदी बोनार नाला में सुरंगों की एक प्रणाली से मोड़ा जाएगा। इससे गुजरने वाला पानी 330 मेगावाट क्षमता वाले टरबाइन को शक्ति प्रदान करेगा। आदेश के तहत नौ क्यूमेक्स पानी छोड़ने से साल के उन चार महीनों के दौरान बिजली उत्पादन प्रभावित हो सकता है जब जल प्रवाह कम हो जाता है बाढ़ के दिनों के दौरान जल प्रवाह एक हजार क्यूमेक्स रहता है, जो मार्च से सितंबर के दौरान पर्याप्त रहता है। यह प्रवाह नवंबर से फरवरी के बीच 30 क्यूमेक्स से कम रहता है। इन चार महीनों के दौरान जलप्रवाह 30 से चार क्यूमेक्स तक रहता है।
सूत्रों ने बताया कि अदालत के आदेश के बाद भारत उन दिनों के दौरान पानी को बिजली उत्पादन के लिए नहीं मोड़ सकता जब जलप्रवाह नौ क्यूमेक्स से कम हो जाता है। इससे 330 मेगावाट बिजली उत्पादन परियोजना प्रभावित होगी। इस तरह एक साल में पांच फीसद नुकसान होने का अनुमान है।
पिछले साल अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने भारत को एक बड़ी राहत देते हुए पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज करते हुए जम्मू कश्मीर में बिजली उत्पादन के लिए जल प्रवाह मोड़ने के भारत के अधिकार को बरकरार रखा था। अदालत ने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों उसके निर्णय पर, किशनगंगा नदी का जल प्रवाह पहली बार मोड़ने के सात वर्ष के बाद परमानेंट इंडस कमीशन एंड द मेकेनिज्म ऑफ द इंडस वाटर्स ट्रीटी के जिए पुनर्विचार की मांग कर सकते हैं।
Source
जनसत्ता, 13 जनवरी 2013