कितने कदम बढ़ पाया स्वच्छता अभियान

Submitted by RuralWater on Sat, 05/28/2016 - 12:37
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राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), 28 मई 2016

स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य 2 अक्टूबर, 2019 तक यानी गाँधी जी की डेढ़ सौवीं जयन्ती तक भारत के हर गाँव, शहर, कस्बे को साफ करना, उनमें पक्के शौचालय, पीने का पानी, कचरा निस्तारण की व्यवस्था करना है। अभियान के तहत पूरे देश में 12 करोड़ शौचालय बनाने की योजना है, जिन पर 1.96 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। हालांकि शौचालय बनाने के काम की गति तय सीमा से काफी पीछे है। महात्मा गाँधी की एक सौ पैतालिसवीं जयन्ती यानी 2 अक्टूबर, 2014 को दिल्ली की वाल्मीकि बस्ती और मन्दिर मार्ग थाना परिसर में झाड़ू लगाती और कूड़ा इकट्ठा करती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लोगों के जेहन में अभी धुँधली नहीं हुई हैं। लेकिन ‘स्वच्छ भारत’ और ‘एक कदम स्वच्छता की ओर’ जैसे नारों और चमकते सितारों-राजनेताओं की अगुआई में करीब डेढ़ साल पहले जिस तामझाम और मीडिया के ग्लैमर के बीच स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत हुई थी, उसकी आंशिक सफलता के बरअक्स उसके सामने पहाड़-सी चुनौतियाँ खड़ी हैं।

सफाई को लेकर सरकार के रवैये और उसकी अपीलों की प्रतीकात्मकताओं का भारतीय जनमानस पर कुछ असर तो हुआ है, लेकिन कचरा प्रबन्धन के लिये ठोस रणनीति के अभाव की वजह से पूरे परिदृश्य में कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है।

स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य 2 अक्टूबर, 2019 तक यानी गाँधी जी की डेढ़ सौवीं जयन्ती तक भारत के हर गाँव, शहर, कस्बे को साफ करना, उनमें पक्के शौचालय, पीने का पानी, कचरा निस्तारण की व्यवस्था करना है। अभियान के तहत पूरे देश में 12 करोड़ शौचालय बनाने की योजना है, जिन पर 1.96 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। हालांकि शौचालय बनाने के काम की गति तय सीमा से काफी पीछे है।

मार्च, 2016 तक शहरी इलाकों में 25 लाख शौचालयों के लक्ष्य में से सिर्फ छह लाख यानी 24 फीसद शौचालय का निर्माण ही हो पाया है। एक लाख सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय बनाने के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 28948 शौचालयों का निर्माण हो सका। ग्रामीण इलाकों में अभियान के शुरुआती एक साल में 31.83 लाख शौचालय बने।

यह तय लक्ष्य का करीब पचीस प्रतिशत है। हालांकि पहले से जारी मनरेगा और इन्दिरा आवास योजना जैसी योजनाओं के अन्तर्गत बनने वाले शौचालयों की संख्या को मिलाकर एक साल में 80 लाख शौचालय बनाए गए हैं।

स्वच्छता को लेकर बढ़ी जागरुकता


सरकार की कोशिशों का इतना तो असर हुआ ही है कि आज देश का आमजन स्वच्छता को लेकर जागरूक हुआ है। इस अभियान में मीडिया ने भी अपनी भूमिका निभाई है। देश के विभिन्न कोनों से आने वाली खबरें स्वच्छता के सन्दर्भ में आई जागरुकता को रेखांकित करती रही हैं।

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के नानकसागर गाँव के लोगों ने खुद ही तय किया कि खुले में शौच जाने वालों पर पाँच सौ रुपए जुर्माना लगाया जाएगा। इतना ही नहीं, लोगों को जागरूक कर हर घर में शौचालय बनाया जाने लगा और शौचालय वाले घर की दीवारें गुलाबी रंग से रंग दी गई ताकि दूर से पता चल सके कि किस घर में शौचालय है और किसमें नहीं। शौचालय निर्माण से लेकर जल संरक्षण तक में जागरुकता की ऐसी खबरें देश के कई हिस्सों से आई।

ग्रामीण इलाकों से ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि शौचालय तो बना दिये गए लेकिन लोग उसका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान के तहत साफ-सफाई की जो छवि बनी है, उसके अन्तर्गत सफाई का मतलब खुले में शौच से मुक्ति और सड़कों, नालियों, ट्रेनों या सार्वजनिक स्थलों की सफाई भर से है। इसमें कचरे के निपटान और पुनर्चक्रण के सन्दर्भ में पर्याप्त बात नहीं की जा रही है जबकि स्वच्छता के पूरे मामले को व्यापकता में देखने की जरूरत है।

एक आकलन के मुताबिक, देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई के घरों से रोजाना दस हजार टन कचरा निकलता है। 110 हेक्टेयर भूमि पर फैले शहर के सबसे बड़े देवनार कचरा संग्रह स्थल पर 92 लाख टन कचरे का ढेर लगा है। इन डम्पिंग यार्ड के आसपास के इलाकों में विषाक्त माहौल की वजह से प्रति 1000 बच्चे में से 60 बच्चे जन्म लेते ही मर जाते हैं, जबकि बाकी मुम्बई में यह औसत प्रति 1000 बच्चे में 30 बच्चों का है। यहाँ के लोग चर्म रोग, दमा, मलेरिया और टीबी जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं।

गौरतलब है कि हाल ही में देवनार डम्पिंग यार्ड में आग लगाने से स्थानीय लोगों को हुई परेशानी के मामले पर काफी राजनीतिक हंगामा हुआ था। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, बेंगलुरु जैसे शहरों की करीब चालीस फीसदी आबादी कूड़े के टीलों के आसपास झुग्गी-झोपड़ियों या मलिन बस्तियों में रहने और बीमारियों की चपेट में आने को अभिशप्त है।

ऊँचाई को चुनौती गाजीपुर डम्पिंग यार्ड


सत्तर एकड़ जमीन में फैले और किसी दस-मंजिली इमारत की ऊँचाई को चुनौती देते दिल्ली के गाजीपुर कचरा संग्रह केन्द्र में तय सीमा के कहीं ज्यादा कचरा पड़ा है। इतना ही नहीं, तीस साल पहले बना यह डम्पिंग यार्ड अपनी उम्र भी पूरी कर चुका है। फिर भी कचरा निपटान की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से यहाँ कचरा डाला जा रहा है।

एमसीडी के आँकड़े के मुताबिक, दिल्ली में भवन निर्माण और तोड़फोड़ की प्रक्रिया में प्रतिदिन करीब 4000 से 5000 मीट्रिक टन कचरा जमा होता है। इस मलबे के पुनर्चक्रण के लिये सिर्फ बुराड़ी में एक 500 टन क्षमता वाला संयंत्र कार्यरत है, जहाँ महज उत्तरी दिल्ली के मलबे का ही निपटारा हो पाता है। यानी रोजाना पैदा होने वाले कचरे के दस फीसद हिस्से का ही पुनर्चक्रण हो पाता है।

कूड़े की रिसाइक्लिंग यानी पुनर्चक्रण के लिये ओखला डम्पिंग यार्ड के पास लगे ‘वेस्ट टू एनर्जी’ प्लांट से निकलने वाला खतरनाक धुआँ और जहरीली गैसों ने आसपास के लोगों के लिये जीवन का संकट पैदा कर दिया है। पर्यावरण संरक्षण और कूड़ा बीनने वाले लोगों की जिन्दगी की बेहतरी के लिये काम करने वाली संस्था ‘चिन्तन’ की निदेशिका भारती चतुर्वेदी ऐसे प्लांट यानी इनिसनेरेटर को ‘कैंसर की फैक्ट्रियाँ’ करार देती हैं।

रोजाना करीब 5000 टन कचरा पैदा करने वाले बेंगलुरु में 20 फीसद कचरे का निस्तारण नहीं हो पाता है। सौ एकड़ में फैले मावल्लीपुरा डम्पिंग यार्ड की रोजाना क्षमता 500 टन की है, जबकि यहाँ रोज 1000 टन कचरा डाला जाता है।

कोलकाता में जैविक कचरे का वैज्ञानिक निपटारा न होने की वजह से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है।

कचरे के निपटान और पुनर्चक्रण के लिये श्रमशक्ति का भी अभाव है। देश के नगर निगमों की हालत यह है कि अगर उनके कूड़ा-कर्मिंयों के अलावा अनौपचारिक ढंग से कूड़ा बीनने वाले लोग एक दिन काम न करें तो स्थिति नारकीय हो जाएगी। दिल्ली में अनौपचारिक तौर पर कूड़ा उठाने वाले करीब चालीस हजार लोग हैं, जो रोजाना पैदा होने वाले दस हजार टन कूड़े के एक चौथाई हिस्से को बीनकर रिसाइक्लिंग की प्रक्रिया में आगे बढ़ाते हैं।

पूरे देश में करीब 20 लाख कूड़ा बीनने वाले हैं, जिनमें 14 साल से कम उम्र के सवा लाख बच्चे भी शामिल हैं। साल 2024 तक दिल्ली में रोजाना पैदा होने वाले कूड़े में दोगुना से ज्यादा बढ़ोत्तरी होने का अनुमान है। फिलहाल, भारत में एक व्यक्ति रोज औसतन आधा किलो कचरा पैदा करता है।

इसी वक्त दिल्ली में कचरे के उचित निस्तारण के लिये तीन बड़े पुराने डम्पिंग यार्ड से इतर करीब सात सौ एकड़ जमीन की जरूरत है। ये आँकड़े स्वच्छ भारत अभियान के सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़े हैं। दरअसल, देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के साथ ही कचरा प्रबन्धन के सिलसिले में कार्बनिक और सूखे कूड़े की अलग-अलग छँटाई तथा कूड़े की रिसाइक्लिंग जैसे कामों को गम्भीरता से किये जाने की जरूरत है। इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सजगता भी बेहद जरूरी है, तभी स्वच्छ भारत अभियान तेज कदमों से आगे बढ़ पाएगा।

लेखक, पर्यावरण शोधार्थी हैं।