कमजोर वर्ग पर महामारी का अधिक प्रभाव

Submitted by Shivendra on Mon, 04/13/2020 - 13:59
Source
Amita Bhaduri, India Water Portal

फोटो - Muffinn, Flickr Commons

आपदाओं में रोजमर्रा की जिंदगी को बाधित करने की क्षमता है। हालाकि, यह अक्सर नहीं होता है कि हम इस बारे में जांच करते हैं कि आपदा क्या होती है ? हम इसे कैसे परिभाषित करते हैं? खैर, एक ही आपदा की परिभाषा विभिन्न एजेंसियो के लिए अलग अलग होती है। पेशेवरों के रूप में, हमें एक घटना की गंभीरता, प्रकृति और आवृत्ति के आधार पर एक आपदा और इसकी टाइपोलॉजी का गठन करने के लिए विभिन्न उत्तर मिले हैं, लेकिन अभी हम आपदा का प्रबंधन करने के लिए एक आदर्श दृष्टिकोण की पहचान कर सकते हैं, लेकिन आदर्श प्रकार का प्रबंधन आपदा के संदर्भ पर निर्भर करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 12 मार्च 2020 को कोविड-19 को महामारी घोषित किया था। कोविड-19 या कोरोनावायरस बीमारी ने दुनिया भर के अरबों लोगों के जीवन को खतरे में डालते हुए दुनिया को एक प्रणालीगत ठहराव के लिए ला खड़ा किया है। कोविड-19 को पहली बार चीन के वुहान शहर में देखा गया था और 23 मार्च 2020 तक ये दुनिया के 196 देशों में तक पहुंच चुका था। इसकी व्यापक प्रकृति और इलाज की कमी के कारण, वायरस ने दुनिया भर में लोगों में दहशत और भय पैदा किया है और इसके संक्रमण को रोकने के लिए विभिन्न देशों और शहरों में लाॅकडाउन किया गया है। कोरोना महामारी समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों पर जोर देते हुए आपदा के प्रभाव को रेखांकित भी कर रही है।

गरीबों पर लाॅकडाउन का प्रभाव

विभिन्न शहरों और देशों में लाॅकडाउन है। ऐसे में हम सभी को अपने आप से ये महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना चाहिए कि एक सब्जी विक्रेता घर पर कैसे काम करता है ? या, क्या एक दिहाड़ी मजदूर घर पर बैठ सकता है और अपने अस्तित्व के साधनों से समझौता किए बिना खुद को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर सकता है ? कोरोना के समय में वर्गों के बीच की असमानता ने खुद को और ज्यादा बढ़ा दिया है और हमें एक ऐसी वास्तविकता को दिखाया है, जिसे हम पहले प्राथमिकता के तौर देखने से संकोच करते थे। 

इस बहस का सबसे पेचीदा/दिलचस्प पहलू महामारी के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है। भारत एक विकासशील देश है, जहां वायरस को फैलने से रोकने में काफी चुनौतियां हैं। भारत को अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना है, वर्ग-आधारित सामाजिक संरचना से लड़ना है और इन विषम परिस्थितियों से सफलतापूर्वक निपटने के लिए सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है। चूंकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां ​​इन चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार हैं, इसलिए हम अपनी सामाजिक संरचना में व्याप्त असमानता को अनदेखा नहीं कर सकते हैं, जिससे हमारी प्रतिक्रिया खंडित हो जाती है। इसमें एम मात्र तथ्य ये भी है कि समाज के उत्कृष्ट वर्ग के लिए आईसोलेशन में रहने या निवारक उपायों का पालन करना, या यहां तक ​​कि गलत सूचना का शिकार होने से बचने के विकल्प हैं और इनके लिए ये संभव भी है, लेकिन यह उन लोगों के लिए ये स्वाभाविक रूप से चुनौतीपूर्ण है, जिनकी दिनचर्या रोजाना रोटी और कपड़ा कमाने के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। 

ऐसे समय में हम इन संरचनाओं के पीछे की वास्तविकता का सामना करते हैं। इसके अलावा, गरीबों पर बीमारी के परिणामी प्रभाव के बाद उनका सामान्य जीवन भी बूरी तरह से बिखर कर और भी खराब स्थिति में पहुंच जाता है। जैसा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मची हुई है, ये इन लोगों के जीवनयापन के साधनों को और कमजोर करती है और इन्हें अपना जीवनयापन करने के लिए संघर्ष की और भी गहरी लड़ाई में धकेल देती है। 

क्या सही जानकारी सभी के लिए सुलभ है ?

जब सरकारी महकमें ने दुनिया भर के साथ मिलकर कोरोना वायरस से निपटने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है, तक समाज का एक तबका, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर है, इससे अछूता रह जाता है और ऐसी स्थिति से निपटने के हर प्रयास को प्रभावित करता है। वैसे तो हम सभी भिन्न भिन्न प्रकार से कमजोर हैं। इस कमजोरी का कारण फोन और टेलीविजन के माध्यम से होने वाली हमारी बातचीत और इनके माध्यम से मिलने वाली या इनके द्वारा दी जाने वाली सूचना है। भारतीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का एक मान्य हिस्सा आपदा को प्रबंधित करने में मीडिया की निवारक और उत्तरदायी दोनों प्रकार की भूमिका को बताता है। टेलीविजन और सोशल मीडिया जैसे मास-मीडिया प्लेटफॉर्म के सहयोग के बिना एक अरब से अधिक लोगों तक जानकारी पहुंचना भी संभव नहीं है। 

क्या हमारा समाज इन सभी सूचनाओं या इस महामारी के प्रति जागरुक है ? यदि हां, तो क्या हम उनकी सामाजिक स्थिति को जानने के बावजूद भी हर किसी के पास सही जानकारी पहुंचा रहे हैं ? सूचनाओं का आदान प्रदान और महामारी से बचने के प्रति जागरुकता पैदा करने हमारी प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण घटक रहा है, लेकिन सूचनाओं का अदान प्रदान करते वक्त इस बात का ध्यान रखना होता है कि जो सूचना दी जा रही है वो तथ्यों पर आधारित और सही है।

मानव जीवन के लिए सम्मान की कमी के कारण नागरिक अक्सर असत्यापित जानकारी साझा करते हैं और सावधानी बरतने के बजाए ‘दहशत’ फैलाते हैं। स्वास्थ्य आपातकाल हमेशा जन समूहों के बीच भय और दहशत फैलाने में सक्षम रहा है। वास्तव में तो असली डर गलत सोच और गलत सूचना फैलाने की प्रवृत्ति है। अब, सुबह की कॉफी के कप के साथ, जब आप सामान्य तौर पर गुड मॉर्निंग व्हाट्सएप मैसेज भेजते या प्राप्त करते हैं तो उसमें भी वायरस के इलाज से जुड़ी जानकारी होती है। 

मीडिया के इन माध्यमों से मिलने वाली जानकारी का हम किस प्रकार उपयोग करते हैं, ये हमारे कार्यों और भूमिकाओं को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह भी देखा गया है कि अधिकांश लोग इनते सक्षम नहीं हैं कि वे वैध और अवैध के बीच में अंतर पता लगा सके। नाॅलेज गैप और वैज्ञानिक मनोवृत्ति की कमी के कारण ये आफतभरी स्थिति तक पहुंच जाता है। हालाकि, महामारी एक वैश्विक चुनौती है, जिसमें व्यक्तिगत कार्य समान रूप से महत्वपूर्ण है। एहतियाती उपायों में न केवल शारीरिक गतिविधि शामिल हैं, बल्कि वो उपाए भी शामिल हैं, जिनमें व्यक्ति किसी को वायरस की चपेट में आने से बचा सकता है। इसमें सही चीज को पढ़ने के उपाए शामिल हैं, आसपास के लोगों से कहा जाए कि वे जो कुछ भी सुनते हैं उस पर विश्वास न करें, और इस प्रकार की खबरों के कारण तनाव में न आएं। 

हमें उन कार्यों में शामित होकर समाज में भय और दहशत पैदा करने वाली इन गतिविधियों को खत्म करना होगा। क्योंकि इससे हम एक मजबूत सामाजिक व्यवस्था की ओर बढ़ते हैं। सभी को मजबूत करने के लिए और वित्तीय बाधाओं को मिटाने के लिए, हमें व्यक्तिगत उपाए करने और अपने आसपास के लोगों के विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। मनुष्य को दयालु प्राणी होने की आवश्यकता है, और एक लचीला समाज बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हम समान विकास को प्रोत्साहित करें।

(बलजीत कौर गुजरात के दाहोद में आदिवासी समुदायों के साथ हंस फाउंडेशन फेलोशिप प्रोग्राम (2019-2020) के तहत एक फेलो के रूप में काम करती हैं। उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई से डिजास्टर मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री की है।)


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Vulnerability in the times of Corona