कोप 13 : बाली सम्‍मेलन: एक और गंवाया हुआ अवसर

Submitted by admin on Sun, 07/31/2011 - 10:43
Author
पर्यानाद
Source
पर्यानाद, DECEMBER 16, 2007
जलवायु परिवर्तन पर बाली सम्मेलन को पलीता लगाने में अमेरिका ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. जैसे तैसे रोडमैप पर सहमति जताई तो अब अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश कह रहे हैं कि कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए विकासशाली देशों को उत्साहित नहीं किया जा रहा है जो चिंता की बात है. यानि कोई न कोई पेंच बनाए बिना अमेरिका को संतुष्टि नहीं मिलने वाली.

यह बात सही है कि सिर्फ़ विकसित देशों के प्रयास से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से नहीं निपटा जा सकता और इसमें विकासशील देशों की भागीदारी को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए. इसी मुद्दे को लेकर अमेरिका हठधर्मिता का प्रदर्शन कर रहा है. इसीलिए बाली में अमेरिका के रूख़ की आलोचना हुई. दो दिन पहले यूएनओ ने अमेरिका व अन्‍य विकसित देशों पर सम्‍मेलन को विफल बनाने का आरोप जड़ा था.

इसके बाद काफी प्रयास किए गए और जलवायु परिवर्तन पर सभी पक्षों में एक रोडमैप पर सहमति बनी है जिसके आधार पर ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लए नया समझौता तैयार होगा. रोडमैप के दस्तावेज़ के मुताबिक अगले दो वर्षों में बातचीत के आधार एक नया समझौता तैयार होगा जो 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल की जगह लेगा. क्योटो समझौते की सीमा वर्ष 2012 में ख़त्म हो रही है और इसे अमरीका का समर्थन प्राप्त नहीं है.

कमियां भी हैं:


खबरों के अनुसार सम्मेलन में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के दस्तावेज़ पर आरंभिक सहमति तो बन गई लेकिन लक्ष्य तय नहीं हो सके जिसके लिए योरपियन संघ ज़ोर लगा रहा था. समझौते के प्रारुप पत्र से यह भी स्पष्ट नहीं है कि कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने में विकासशील देशों की कितनी भागीदारी होगी.

योरपियन संघ काफ़ी बढ़ चढ़कर कह रहा था कि विकसित देशों को ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना चाहिए और पहले के दस्तावेज़ में उसे प्रमुखता से जगह मिली थी मगर इस दस्तावेज़ में वो हिस्सा महज़ फ़ुटनोट बनकर रह गया है यानी मुख्य दस्तावेज़ के पीछे जोड़ी गई टिप्पणियाँ और आँकड़े. साथ ही वर्ष 2050 तक उत्सर्जन को आधा करने की जो बात थी वो भी इस दस्तावेज़ से बाहर कर दी गई है.

अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि अगर प्रदूषण फैलाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कोई बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित किया गया तो वह इसे स्वीकार नहीं करेगा. अमेरिका के लिए चिंता का विषय था ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने की अनिवार्य शर्तें, इस बारे में दस्तावेज़ की भाषा अस्पष्ट सी रखी गई दिखती है.

इसमें विकसित देशों से ज़रूरी प्रतिबद्धताओं और क़दमों को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन देने की बात कही गई है, अमेरिका हमेशा से ही ऐसी भाषा का पक्षधर रहा है. मगर इसमें ये भी कहा गया है कि ये समर्थन अनिवार्य शर्तों के रूप में भी हो सकता है. इस भाषा के साथ अमेरिका में आने वाले नए प्रशासन को वर्ष 2009 के अंत तक वैधानिक रूप से अनिवार्य सीमा तय करने की छूट मिल सकती है.

खबरों के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख ईवो ड बुए नम आँखों के साथ सम्मेलन कक्ष के बाहर जाते दिखे. पर्यावरण से जुड़े संगठनों और अन्य प्रतिनिधियों ने दस्तावेज़ की इस भाषा को कमज़ोर बताते हुए इसे गँवाया हुआ एक अवसर कहा है.

इस खबर के स्रोत का लिंक: