चीन के तिब्बत से निकलने वाली मेकांग नदी विश्व की प्रमुख नदियों में से एक है, जो म्यांमार, थाईलैंड, लाओस और कंबोडिया से होते हुए वियतनाम तक करीब 4350 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती है। लंबाई के हिसाब से मेकांग दुनिया की 13वीं और प्रवाह के आयतन के हिसाब से विश्व की 10वीं सबसे बड़ी नदी है। जिस प्रकार भारत में गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी का महत्व है, उसी प्रकार दक्षिण पूर्व एशिया में मेकांग नदी है। करोड़ों लोगों की आजीविका इस नदी पर ही निर्भर है। इन देशों के लोग खेती और मछली पालन आदि के लिए मेकांग नदी पर ही निर्भर हैं। कोरोना संकट के बीच जब पर्याप्त स्वच्छता बनाए रखने के लिए लोगों की साफ पानी की जरूरत बढ़ गई, ऐेसे में चीन ने मेकांग नदी का पानी रोक दिया है। जिस कारण थाईलैंड़, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में सूखा पड़ने लगा है।
छह देशों की जीवन रेखा है मेकांग नदी
लगभग 4300 किलोमीटर लंबी मेकांग नदी तिब्बत से निकलकर चीन के यूनान प्रांत से होते हुए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम से होकर बहती है। दक्षिण-पूर्व एशिया की गंगा कही जाने वाली मेकांग पर 6 देशों के लगभग 10 करोड़ आबादी निर्भर है। चूंकि मेकांग की उत्पत्ति और बाद का आधा सफर चीन में ही है, इसलिए चीन इसके पानी के उपयोग को लेकर मेकांग के निचले हिस्से के देशों की चिंता नहीं करता है। मेकांग के विशेषज्ञ और थाईलैंड के महासरखाम यूनिवर्सिटी के लेक्चरर चैनरोग सेटचुआ ने न्यूयार्क टाइम्स से अपनी बातचीत में कहा कि ‘यह चीन के कारोबारी विकास का हिस्सा है लेकिन मेकांग नदी पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर रहने वाले लोगों को इस से बाहर कर दिया गया है।."
तिब्बत के पठार से निकलने वाली मेकांग नदी के ऊपरी हिस्से पर चीन का नियंत्रण है। नदी के प्रवाह पर चीन ने कई बांध बनाए हैं। जिस कारण नदी की अविरलता कम होने से निचले इलाकों में नदी लगभग सूखने की कगार पर पहुंच गई है। क्योंकि नदी की जिस धारा पर चीन ने बांध बनाया है, उसी धारा से 70 प्रतिशत पानी नीचे की धाराओं में आता है। इससे न केवल लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है, बल्कि पानी की बड़ी समस्या भी खड़ी हो गई है। बांध बनने से नदी में पानी का प्रवाह साल भर एक समान भी नहीं रहता है। बरसात के कारण जब बांध में पानी बढ़ जाता है, तो चीन पानी को निचली धाराओं में छोड़ देता है, इससे निचले इलाकों सहित इन देशों में कभी भी बाढ़ आ जाती है। कई बार तो लंबे समय तक पानी ही नहीं छोड़ा जाता, तो ऐसे में सूखे की स्थिति तक खड़ी हो जाती है। ऐसे में किसानों के सामने समस्या खड़ी हो गई है, क्योंकि कभी पानी की कमी के कारण फसल नहीं हो पाती, तो कभी बाढ़ पूरी फसल को चौपट कर देती है, लेकिन इस समय चीन ने कोरोना संकट के बीच सबसे ज्यादा जरूरत के समय नदी का पानी रोका है, जिससे थाईलैंड और कंबोडिया पानी की काफी कम महसूस कर रहे हैं। नवभारत टाइम्स ने इस खबर को न्यूयाॅर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए छापा है।
रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई थी। फरवरी माह के अंत तक चीन में कोराना वायरस अपने चरम पर था। उस दौरान चीन के विदेश मंत्री लाओस गए थे। यहां मेकांग नदी में पानी के कम प्रवाह को लेकर किसानों और मछुआरों ने उनका जबरदस्त विरोध किया था। विदेश मंत्री ने कहा था कि हम किसानों और मछुआरों का दर्द समझते हैं। उन्होंने लाओस में ये तक दावा कर दिया कि इस साल चीन सूखे का सामना कर रहा है, जिस कारण मेकांग नदी में पानी कम हो रहा है, लेकिन अमेरिकी जलवायु विज्ञानियों ने चीन के इस झूठ की पोल खोल दी। विज्ञानियों ने एक शोध किया, जिसमें बताया गया कि चीन पहली बार सूखे का सामना नहीं कर रहा है। चीन के इंजीनियरों ने ही नदी के प्रवाह को काफी कम कर दिया है और पानी को बड़ी मात्रा में चीन में ही रोक कर रखा है। इन परिस्थितियों में ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर भी चीन पर संदेह होने लगा है। क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी भले ही भारत की प्रमुख नदियों में से एक है, लेकिन ये चीन के तिब्बत से होती हुई ही भारत में प्रवेश करती है। चीन की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना ‘‘जम हाइड्रोपावर स्टेशन’’ भी ब्रह्मपुत्र नदी पर ही बनाई गई है और चीन इसके पानी का भरपूर उपयोग करता है।
लेखक - हिमांशु भट्ट (8057170025)
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