खत्म होता उत्तर प्रदेश में पानी, सीएम योगी ने बताए बचाने के उपाय

Submitted by Shivendra on Wed, 07/22/2020 - 20:29

फोटो - Patrika

भारत जल संकट के सबसे भयानक दौर का सामना कर रहा है। नीति आयोग से लेकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के शोध व रिपोर्ट में भी भारत में गहराते जल संकट के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात आदि राज्यों में जल संकट हर साल चर्चा का विषय बनता है।  राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018 में पानी के कारण 838 आपराधिक घटनाएं दर्ज की गई थी। इनमें से पानी को लेकर हुए विभिन्न झगड़ों में 92 लोगों की हत्याएं भी कर दी गई थीं। सबसे ज्यादा हत्याएं गुजरात में हुई थी, तो वहीं देश की सबसे ज्यादा आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश में पानी के विभिन्न झगड़ों में 12 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन पानी की ये समस्या और झगड़े समय के साथ रुके नहीं, बल्कि बढ़ते चले गए। साथ ही उत्तर प्रदेश में पानी के गिरते जलस्तर ने भी लोगों के लिए समस्या खड़ी कर दी।

उत्तर प्रदेश के भूजल विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 820 ब्लाॅक में से 572 ब्लाॅक के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2009 से 2018 तक के प्री-मानसून में हर साल राज्य के 147 ब्लाॅक के भूजल स्तर में 1 से 10 सेंटीमीटर की गिरावट आई थी, जबकि 138 ब्लाॅक में 10 से 20 सेंटीमीटर, 83 ब्लाॅक में 20 से 30 सेंटीमीटर, 59 ब्लाॅक में 30 से 40 सेंटीमीटर, 45 ब्लाॅक में 40 से 50 सेंटीमीटर, 23 ब्लाॅक में 50 से 60 सेंटीमीटर और 77 ब्लाॅक ऐसे थे, जहां जलस्तर में 60 सेंटीमीटर से ज्यादा की गिरावट देखी गई थी। हालांकि, 248 ब्लाॅक में पानी का स्तर स्थिर या बढ़ रहा था। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में पानी गंभीर रूप से प्रदूषित भी होता जा रहा है। नदियां, तालाब आदि नाला बनते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जल प्रदूषण का जीवंत उदाहरण लखनऊ में गोमती नदी और कानपुर में गंगा नदी हैं। तो वहीं भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की बढ़ती मात्रा के कारण प्रदेश की जतना पानी की बूंद बूंद में ज़हर पी रही है।

विकासखण्डवार भूजल स्तर गिरावट का वार्षिक ट्रेण्ड (वर्ष 2009 से 2018 तक के प्री-मानसून भूजल स्तर आंकड़ों पर आधारित) आंकड़े - भूजल विभाग, उत्तर प्रदेश

भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि मान्य सीमा 1.0 पीपीएम है। तो वहीं आर्सेनिक की मान्य सीमा 0.01 पीपीएम और अधिकतम मान्य सीमा 0.05 पीपीएम है। पानी में बढ़ते आर्सेनिक और फ्लोराइड के मामलों एवं दुष्प्रभावों के सामने आने पर, पानी की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2015-16 में उत्तर प्रदेश के वाॅटर एंड सेनिटेशन मिशन को केंद्र सरकार ने 150 करोड़ रुपए की धनराशि दी थी। मिशन को इस धनराशि से राज्य के हर गांव, कस्बे और शहर में पेयजल के स्त्रोतों का जियोग्राफिकल क्वालिटी टेस्टिंग सर्वे करवाकर रिपोर्ट पोर्टल से सार्वजनिक करनी थी। दोनों एजेंसियों नेे सर्वे किया। सर्वे में सामने आया कि राज्य के 63 जनपदों में फ्लोराइड की मात्रा 3 पीपीएम और 25 जनपदों में आर्सेनिक की मात्रा 1 पीपीएम पाई गई, जबकि 18 जिले तो ऐसे हैं, जहां भूजल में फ्लोराइड और आर्सेनिक दोनों ही मानक से अधिक पाए गए हैं। इस बात का खुलासा उत्तर प्रदेश के वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन द्वारा दी गई एक आरटीआइ के जवाब में किया गया है, जिसे डाउन टू अर्थ ने भी प्रकाशित किया था। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में जलस्तर भी लगातार गिरता जा रहा है, जिसे खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वीकारा भी है।

फ्लोराइड प्रभावित जिले

आगरा, अलीगढ़, ज्योतिबाफुलेनगर, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर, कासगंज, कौशाम्बी, लखीमपुर खीरी, ललितपुर, लखनऊ, महामायानगरअम्बेडकर नगर, अमेठी, औरैया, बागपत, बहराइच, बलरामपुर, बाँदा, बाराबंकी, बिजनौर, बदायूं, बुलंद शहर, चन्दौली, चित्रकूट, एटा, इटावा, फैज़ाबाद, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, फ़िरोज़ाबाद, गौतम बुद्ध नगर, गाज़ियाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, हमीरपुर, हापुड़, हरदोई, जालौन, जौनपुर, झाँसी, महाराजगंज, महोबा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ,  मिर्ज़ापुर, मुज़फ्फरनगर, प्रतापगढ़, रायबरेली, रामपुर, सहारनपुर, संभल, संतकबीर नगर, संतरविदास नगर, शाहजहाँपुर, शामली, श्राबस्ती, सीतापुर, सोनभद्र, सुल्तानपुर, उन्नाव तथा  वाराणसी।

आर्सेनिक प्रभावित जिले

अलीगढ़, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर, पीलीभीत,  संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर, सिद्धार्थ नगर, सीतापुर तथा उन्नाव, आजमगढ़, बहराइच, बलिया, जौनपुर, झांसी, ज्योतिबाफुले नगर, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, बाराबंकी, देवरिया, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, गोरखपुर।

आर्सेनिक तथा फ्लोराइड दोनों से प्रभावित जिले

अलीगढ़, बहराइच,  बाराबंकी, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, जौनपुर, झाँसी, ज्योतिबाफुलेनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर,  संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर,  सीतापुर तथा  उन्नाव।

भूजल पर उत्तर प्रदेश की निर्भरता। फोटो - State of India's Environment 2020 in Figures

 

सीएम योगी ने बताए जल बचाने के उपाय

भूगर्भ जल के गिरते स्तर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि भूगर्भ जल के अतिदोहन के परिणाम हमें देखने को मिल रहे हैं। जल प्रकृति की अमूल्य संपदा है। प्रकृति के उपहारों के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता, नहीं तो उसकी बहुत बड़ी कीमत हमें चुकानी पड़ेगी। हालांकि, उत्त्तर प्रदेश में भूगर्भ जल संरक्षण के लिए हो रहे काम पर उन्होंने संतोष भी जताया। सीएम योगी ने कहा कि भूजल के संरक्षण और उचित उपयोग हेतु आमजन की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि जनसामान्य को भूजल के महत्व के प्रति जागरूक किया जाए और इसी उद्देश्य से पूरे प्रदेश में भूजल सप्ताह का आयोजन किया गया। 

उत्तर प्रदेश में 16 से 22 जुलाई तक आयोजित भूजल सप्ताह का समापन बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सरकारी आवास पर आयोजित कार्यक्रम में किया। उन्होंने कहा कि हमारे पास पर्याप्त मात्रा में भूजल भी है और सतही जल की भी कमी नहीं है, लेकिन यदि प्रकृति प्रदत्त इस अमूल्य उपहार का हम उपयोग कर रहे हैं तो हमें इसके संरक्षण की भी चिंता करनी होगी। जब हम दुनिया के परिप्रेक्ष्य में भूजल की बात करते हैं तो उत्तर प्रदेश इस दृष्टि से काफी समृद्धशाली राज्य है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन-चार दशकों के दौरान अत्यधिक मात्रा में भूजल दोहन के कारण प्रदेश के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में व्यापक विषमता देखने को मिली है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश के 823 में से 287 विकासखंडों में भूजल में 20 सेंटीमीटर तक की गिरावट प्रतिवर्ष देखने को मिली है। प्रदेश में भूजल की उपलब्धता निरंतर कम हो रही है। साथ ही जल संसाधन पर दबाव चिंताजनक स्थिति में बढ़ रहा है। योगी ने कहा कि जिन क्षेत्रों में भूगर्भीय जल में खारापन, आर्सेनिक और फ्लोराइड की समस्या देखने को मिल रही है, उसका कारण भूगर्भ जल का अति दोहन है। भूजल को सुरक्षित और प्रदूषण से मुक्त रखना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

जल शक्ति विभाग की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भूजल सप्ताह का आयोजन करके विभाग ने जल संरक्षण के प्रति जागरुकता का जो व्यापक और अभिनव काम किया है, वह सराहनीय है। भूजल के संरक्षण के लिए आमजन की सहभागिता बहुत जरूरी है। पिछले तीन वर्षों में वर्तमान सरकार के प्रयासों से भूजल के प्रति गंभीरता से काम किया गया है। अब चरणबद्ध रूप से रिवर बेसिन को चिन्हित करते हुए भूजल गुणवत्ता का परीक्षण कराया जाना है और इसके बाद सभी रिवर बेसिन की गुणवत्ता का समग्र आकलन किया जा सकेगा। उत्तर प्रदेश ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट एंड रेगुलेशन अधिनियम-2019 को भी उन्होंने बड़ा कदम बताया। मुख्यमंत्री ने लोगों से अपील की है कि अपने भवन में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का प्रबंध करें, जिससे भूजल समस्या का दीर्घकालीन समाधान हो सके। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कानपुर, झांसी, बांदा, मेरठ व ललितपुर के भूजल विशेषज्ञों से बात भी की।


हिमांशु भट्ट (8057170025)