केंद्र सरकार ने देश में कोविड-19 के प्रसार पर नियंत्रण के लिये लागू लॉकडाउन के दौरान स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता और इसके प्रबंधन को सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकारों के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये हैं। सरकार के अनुसार, साबुन से नियमित रूप से हाथ धोने को कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी उपाय माना गया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ‘केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय’ ने देश के सभी के लिये स्वच्छ और पीने योग्य जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर बल दिया है।
केंद्र सरकार ने राज्यों के ‘जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग’ और अन्य संबंधित बोर्डों तथा निगमों को स्वच्छ पेयजल के संकट से जूझ रहे क्षेत्रों में जल की आपूर्ति बढ़ाने के प्रयासों को प्राथमिकता देने को कहा है। केंद्र सरकार ने इस दौरान अधिकारियों को समाज के कमजोर वर्ग के लोगों जैसे- राहत शिविरों, क्वारंटीन सेंटरों, अस्पतालों, वृद्धाश्रमों, झुग्गी-बस्तियों में रह रहे लोगों का विशेष ध्यान रखने का निर्देश दिया है।
राज्य सरकारों को इसके लिये आवश्यक रसायनों जैसे- क्लोरीन टैबलेट, ब्लीचिंग पाउडर, सोडियम हाइपोक्लोराइट घोल और फिटकरी आदि की उपलब्धता का आंकलन करने की सलाह दी गई है। (इन उत्पादों को ‘अति आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955’ के तहत अति आवश्यक वस्तुओं की सूची में रखा गया है)। इस दौरान ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने हेतु सार्वजनिक जल आपूर्ति स्रोतों (नल, टैंकर आदि) पर लोगों की संख्या बढ़ने की स्थिति में जल आपूर्ति के समय में वृद्धि करने के निर्देश दिये गए हैं। साथ ही राज्य सरकारों को ग्रामीण क्षेत्रों में टेस्ट किट भेजकर जल संसाधनों की नियमित जाँच करने और 24 घंटे जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये गए हैं। हालाँकि हाथों की स्वच्छता या हाथों को नियमित रूप से साफ रखने को कोरोनावायरस से बचने का एक प्रभावी तरीका माना गया है, परंतु सभी के लिये स्वच्छ जल का उपलब्ध न होना पिछले कई वर्षों से देश के लिये एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
वर्ष 2017 में ‘केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय’ (वर्ष 2019 में ‘केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय’ में विलय से पूर्व) द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार, देश में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2001 (1820 घनमीटर) से घटकर वर्ष 2011 में 1545 घनमीटर तक पहुँच गई थी। आँकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2025 तक घटकर 1341 घनमीटर और वर्ष 2050 तक 1140 घनमीटर तक पहुँच सकती है। सरकार के अनुसार, वर्षा में उच्च अस्थाई और क्षेत्रीय भिन्नताओं के कारण देश के कई हिस्सों में जल की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत से बहुत नीचे है और ऐसे क्षेत्रों को जल प्रतिबल या जल संकट के क्षेत्रों के रूप में रखा जा सकता है।
- जल प्रतिबलः ऐसे क्षेत्र जहाँ वार्षिक रूप से प्रतिव्यक्ति जल की औसत उपलब्धता 1700 घनमीटर से कम हो।
- पानी की कमीः ऐसे क्षेत्र जहाँ वार्षिक रूप से प्रतिव्यक्ति जल की औसत उपलब्धता 1000 घनमीटर से कम हो।
जल और स्वच्छता पर काम करने वाली संस्था ‘वाटरऐड’ द्वारा जारी वर्ष 2018 की वार्षिक रिपोर्ट में भारत को विश्व में शीर्ष उन 10 देशों की सूची में रखा गया था जिनमें लोगों के घरों के नजदीक स्वच्छ जल की उपलब्धता सबसे कम है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के संदर्भ में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 16.3 करोड़ बताई गई थी, जिनके घरों के नजदीक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हो पाता। भारत के वर्तमान जल संकट के प्राकृतिक कारणों में पिछले कुछ वर्षों में अनियमित और कम वर्षा का होना, सूखा और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव प्रमुख हैं। मानवीय गतिविधियों के कारण प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रदूषण। साथ ही कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पादन में वृद्धि के लिये जल के अनियंत्रित दोहन ने जल संकट में कई गुना वृद्धि की है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत राज्यों तथा केंद्र के उत्तरदायित्त्वों को तीन सूचियों में विभाजित किया गया है। संघ सूची ,राज्य सूची व समवर्ती सूची। भारतीय संविधान में जल को राज्य सूची में 17वीं प्रविष्टि के रूप में शामिल किया गया है, इसके अनुसार, जल, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी और तटबंध, जल संग्रहण और जल शक्ति, जो कि सूची-1 (संघ सूची) की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के अधीन है।
वर्तमान में कोविड -19 से सबसे अधिक खतरा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को है, इस समूह के लोग प्रायः घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ सबके लिये स्वच्छ जल की उपलब्धता बहुत कठिन है। ऐसे में क्षेत्रीय प्रशासन द्वारा प्रत्येक परिवार तक स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिये। स्वयं सहायता समूहों एवं अन्य हितधारकों के सहयोग से अति आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के साथ कोविड -19 के बारे में जागरुकता बढ़ाई जानी चाहिये, जिससे इस बीमारी से संक्रमित लोगों की पहचान कर उन्हें चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराई जा सके। जल का अनियंत्रित दोहन और प्रदूषण वर्तमान जल संकट का सबसे प्रमुख कारण हैं अतः स्वच्छ जल की आपूर्ति को सुनिश्चित करने हेतु इस पर नियंत्रण करना बहुत ही आवश्यक है। प्राकृतिक जल संरक्षण और जल के पुनर्प्रयोग को बढ़ावा देकर जल संकट के दबाव को कम किया जा सकता है।
लेखक
डाॅ. दीपक कोहली, उपसचिव
वन एवं वन्य जीव विभाग, उत्तर प्रदेश
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