दुनिया के बेहद खूबसूरत पर्यटन स्थलों में शुमार ‘केपटाउन’ दो साल पहले भीषण जल संकट से जूझ रहा था। सरकार ने यहां ‘डे-जीरो’ घोषित कर दिया था। यानी नलों में पानी की सप्लाई बंद कर दी गई थी। प्रशासन लोगों से पानी का संरक्षण करने की निरंतर अपील कर रहा था। साथ ही लोगों को 90 सेकण्ड में ही नहाने की हिदायत दी गई थी। जल संकट के कारण इस खूबसूरत शहर से लोग पलायन कर रहे थे। जिन लोगों ने रुकने का निर्णय लिया था, वें पानी के लिए लंबी-लंबी लाइनों में लगे रहते थे। हालात इतने खराब थे कि हाथ धोने के लिए लोग पानी की जगह सैनिटाइजर का उपयोग करते थे। नहाने, मुंह धोने और कपड़े धोने के बाद बचे पानी का उपयोग फ्लश करने के लिए किया जाता था, जबकि बर्तन धोने के बाद पानी को गमलों और क्यारियों में डाला जाता था।’’ एक तरह से केपटाउन के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हो गए थे। यही स्थिति अब ‘चिली’ की भी है।
प्रकृति की गोद में बसे ‘चिली’ में सैंकड़ों नदिया और झीले हैं। बर्फीले और हरे-भरे पहाड़ों की अलौकिकता की तरफ हर पर्यटक आकर्षित होता है। प्रकृति की असीम अनुकंपा होने के बावजूद भी चिली भयावह जल संकट से जूझ रहा है। पिछले दस सालों से चिली का तीन-चैथाई हिस्सा भीषण सूखे का सामना कर रहा है। जल संकट बढ़ने के कारण लोगों को पानी लेने के लिए काफी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। चिली की जल आंवटन प्रणाली बाजार आधारित है, जिस कारण निजी कंपनियों का इस पर नियंत्रण है। एक तरह से यहां नीतियां भी ज्यादा कारगर नहीं हैं, जिस कारण जल संकट की समस्या और ज्यादा बढ़ती जा रही है। यहां जल संकट का कारण शासन-प्रशासन की नीतियों के अलावा जलवायु परिवर्तन भी है। जिस कारण तापमान लगातार बढ़ रहा है। बारिश और बर्फबारी कम हो रही है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। बड़ी तादाद में जानवर मर रहे हैं। उपजाऊ और हमेशा फसलों से लहलहाने वाले जमीन बंजर होती जा रही है। जिस कारण चिली की सरकार ने अपने 16 में से 6 रीज़न में ‘कृषि आपातकाल’ घोषित कर दिया है। वल्र्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) के अनुसार ‘वर्ष 2040 तक चिली जल संकट से दुनिया का सबसे ज्यादा प्रभावित देश बन जाएगा।’’ पानी की कम के कारण चिली की नदी में जल स्तर कम हो गया है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 2070 तक चिली में साफ पानी की उपलब्धता 40 प्रतिशत तक कम हो जाएगी। इससे देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी प्रभावित होगी। इन दोनों जगहों की तरह ही भारत में जल संकट गहरा रहा है।
भारत में ‘‘डग-डग रोटी, पग-पग नीर’’ की कहावत प्रचलित थी। यानी देश में पानी इतनी प्रचुर मात्रा में था। आजादी से पहले भारत में करीब सात लाख गांव हुआ करते थे। बंटवारे में पाकिस्तान के अलग देश बनने के बाद लगभग एक लाख गांव पाकिस्तान में शामिल हो गए। हर गांव में करीब पांच जल संरचनाएं हुआ करती थी, यानी आजाद भारत में 30 लाख जल संरचनाएं थीं, लेकिन अति उपयोग व लगातार दोहन और पर्यावरण चक्र बिगड़ने के कारण बीस लाख तालाब, कुएं, पोखर और झील आदि पूरी तरह सूख चुके हैं। दस साल पहले देश में लगभग 15 हजार नदियां हुआ करती थीं, लेकिन 30 प्रतिशत यानी लगभग 4500 नदियां पूरी तरह से सूख कर केवल बरसाती नदियां बनकर रह गई हैं। राजस्थान और हरियाणा में 20 प्रतिशत स्थानों का भूजल स्तर 40 मीटर या इससे अधिक नीचे चला गया है, जबकि गुजरात में 12 प्रतिशत, चंडीगढ़ में 22 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 4 प्रतिशत स्थानों का भूजल स्तर 40 मीटर या इससे अधिक चीने चला गया है। राजस्थान में यदि तालाबों की बात की जाए तो शहरी इलाकों में 772 तालाब और बावड़ियों में से 443 में पानी है, जबकि 329 सूख चुके हैं या इन पर अतिक्रमण है। पेयजल और सिंचाई के उपयोग में आने वाली राजस्थान की 11 प्रमुख नदियों में ज्यादातर बरसाती हैं, लेकिन जल संरचनाओं की जितनी उपेक्षा उत्तर प्रदेश में हुई शायद ही कहीं हुई होगी। उत्तर प्रदेश के 1 लाख 77 हजार कुओं में से पिछले पांच सालों में 77 हजार कुएं सूख चुके हैं। 24 हजार 354 तालाब व पोखरों में से 23 हजार 309 में ही पानी है, तो वहीं 24 में से 12 झीलें बीते पांच सालों में पूरी तरह सूख चुकी हैं। बिहार की स्थिति में इससे इतर नहीं है।
बिहार में 4.5 लाख हैंडपंपों में पानी आना बंद हो गया है, यानी ये भूजल गिरने से सूख गए हैं। 8386 में से 1876 पंचायतों में भूजल स्तर कम हो गया है। बीते 20 वर्षों में सरकारी और निजी तालाबों की संख्या राज्य में 2.5 लाख से घटकर 98 हजार 401 रह गई है। 150 छोटी-बड़ी नदियों में से 48 सूख चुकी हैं। देश के अन्य राज्यों की स्थिति भी इससे इतर नहीं है और उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कनार्टक, तमिलनाडु, दिल्ली, हैदराबाद, महाराष्ट्र सहित देश के अन्य राज्य भी पानी के भीषण संकट से जूझ रहे हैं। जिसका मुख्य कारण वर्षा जल का संरक्षण न करना और कृषि में पानी का अति उपयोग करना आदि हैं। तो वहीं नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भी कहा है कि ‘‘भारत की 60 करोड़ आबादी जल संकट का सामना कर रही है। चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता, कानुपर सहित देश के 21 बड़े शहरों में भूजल समाप्त होने की चेतावनी नीति आयोग ने दी थी। चेन्नई का जल संकट तो हम पिछले साल देख ही चुके हैं, जब चेन्नई का भूजल स्तर समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया था। इसके अलावा नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि ‘‘भारत में 5 मिलियन स्प्रिंग्स हैं, जिनमें से 3 मिलियन स्प्रिंग्स इंडियन हिमालयन रीजन में हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश तो सूख चुके हैं या सूखने की कगार पर हैं।’’ आलम ये है कि भारत का शायद ही कोई राज्य होगा, जहां जल संकट न हो। इनमें महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, झारखंड, छत्तीसगढ़ में समस्या ज्यादा गंभीर है। कई इलाके तो ऐसे है, जहां लोगों को मीलों चलकर पानी लाना पड़ता है, लेकिन फिर भी भारत में पानी का सबसे ज्यादा उपयोग खेती में किया जाता है।
भारत में खेती के लिए उपलब्ध पानी का लगभग 76 प्रतिशत हिस्सा देश में सिचांई के उपयोग में लाया जाता है, जबकि उद्योगों में 7 प्रतिशत, घरों में 11 प्रतिशत और अन्य कार्यों में 6 प्रतिश पानी का उपयोग किया जाता है, लेकिन इस समस्या को दूर करने के लिए भारत में अभी तक वर्षा जल संरक्षण करने की परंपरा विकसित नहीं हुई है। दरअसल, भारत में हर साल 4 हजार घन मीटर बारिश होती है। जिसमें से हम केवल 17 प्रतिशत यानी 700 अरब घनमीटर का ही उपयोग करते हैं और 2131 अरब घन मीटर वर्षा जल का वाष्पीकरण हो जाता है, लेकिन वर्षा जल संरक्षण की ओर देश की सरकारों ने भी ध्यान नहीं दिया, जिस कारण वर्षा जल संरक्षण में भारत अन्य देशों से पिछड़ रहा है। यदि आंकड़ों पर नजर डाले तो अमेरिका 6 हजार मीटर क्यूब प्रति व्यक्ति वर्षा जल संग्रहित करता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया 5 हजार, चीन 2500, स्पेन 1500 और भारत केवल 200 मीटर क्यूब प्रति व्यक्ति बारिश का पानी जमा करता है। देश की 16 करोड़ से अधिक आबादी की पहुंच साफ पानी से दूर है, जबकि इथोपिया 6.1 करोड, नाइजीरिया 5.9 करोड़, चीन 5.8 करोड़ और कांगो की 4.7 करोड़ जन संख्या की पहुंच साफ पानी से दूर है। नीति आयोग की रिपोर्ट में चेताया गया है कि ‘‘2030 तक 40 प्रतिशत लोगों की पहुंच पीने के पानी तक खत्म हो जाएगी।’’ ऐसे में करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद भी इस बात की गारंटी नहीं दी सकती की देश की जनता को साफ पानी उपलब्ध होगा।
पानी के इस गहराते संकट का कारण मानवीय गतिविधियां तो हैं ही, साथ जलवायु परिवर्तन के कारण ये और बढ़ती जा रही है। इससे न केवल पानी कम हो रहा है, बल्कि जमीन बंजर होकर मरुस्थल में तब्दील हो रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी ‘स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019’ की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2013 के बीच भारत का मरुस्थलीय क्षेत्र 18.7 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। तो वहीं दुनिया का 23 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण का शिकार हो चुका है और विश्वभर में प्रति मिनट 23 हेक्टेयर भूमि मरुस्थल में तब्दील हो रही है। भारत के सूखा प्रभावित 78 जिलों में से 21 जिलों की 50 प्रतिशत से अधिक जमीन मरुस्थल में बदल चुकी है। वर्ष 2003 से 2013 के बीच देश के नौ जिलो में मरुस्थलीकरण 2 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो गुजरात में 04 जिले, महाराष्ट्र में 3, तमिलनाडु में 5, पंजाब में 2, हरियाणा में 2, राजस्थान में 4, मध्य प्रदेश में 4, गोवा में 1, कर्नाटक में 2, केरल में 2 जिले, जम्मू कश्मीर में 5 और हिमाचल प्रदेश में 3 जिले मरुस्थलीकरण की चपेट में है। तो वहीं पंजाब का 2.87 प्रतिशत, हरियाणा का 7.67 प्रतिशत, राजस्थान का 62.9 प्रतिशत, गुजरात का 52.29 प्रतिशत, महाराष्ट्र का 44.93 प्रतिशत, तमिलनाडु का 11.87 प्रतिशत, मध्य प्रदेश का 12.34 प्रतिशत, गोवा का 52.13 प्रतिशत, कर्नाटक का 36.24 प्रतिशत, केरल का 9.77 प्रतिशत, उत्तराखंड का 12.12 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश का 6.35 प्रतिशत, सिक्किम का 11.1 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश का 1.84 प्रतिशत, नागालैंड का 47.45 प्रतिशत, असम का 9.14 प्रतिशत, मेघालय का 22.06 प्रतिशत, मणिपुर का 26.96 प्रतिशत, त्रिपुरा का 41.69 प्रतिशत, मिजोरम का 8.89 प्रतिशत, बिहार का 7.38 प्रतिशत, झारखंड का 66.89, पश्चिम बंगाल का 19.54 प्रतिशत और ओडिशा का 34.06 प्रतिशत क्षेत्र मरुस्थलीकरण से प्रभावित है।
स्पष्ट तौर पर कहें तो विश्व भर में करीब 23 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में है और हर मिनट करीब 23 हेक्टेयर जमीन मरुस्थल में तब्दील हो रही है। इसी मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए यूएनसीसीडी सदस्य देशों ने बीते दो वर्षों में 6.4 बिलियन डाॅलर यानी करीब 46 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जिसका खुलासा ग्लोबल एंवायरमेंट फेसिलिटी (जीईएफ) की काॅप 14 में जारी की गई रिपोर्ट में हुआ। इन स्थितियों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में स्थिति कितनी भयावह है। एक तरह से भारत अगला केपटाउन और चिली बनने की तरफ बढ़ रहा है। तो वहीं भारत में भी अलग अलग स्थानों में छोटे-छोटे केपटाउन बन रहे हैं। जहां लोगों को पानी की भीषण किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। जल संकट को दूर करने के लिए हमारी सरकारें भले ही प्रयासरत हो, लेकिन उनके प्रयास पर्याप्त नही हैं और धरातल पर कम तथा फाइलों में कार्य होते हुए ज्यादा दिखते हैं। जनता में भी पर्यावरण और जल संरक्षण के प्रति जागरुकता का अभाव है। ऐसे में भविष्य में देश के सामने एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी है। जिसके लिए अभी से सभी को एकजूट होकर कार्य करने की जरूरत है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)