पहाड़ों का जीवन सुखभरा और सुकूनप्रिय होता है, जहां हवा के हर कण में शुद्धता का एहसास और प्रकृति की मिठास होती है। स्प्रिंग्स को पहाड़ों की जीवनरेखा कहा जाता है। इन्ही से लोगों को पीने और खेती सहित विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जल की प्राप्ति होती है। पहाड़ों से निकलकर स्प्रिंग्स का पानी नदियों में मिल जाता है और नदियों की धारा के साथ बहते हुए मैदानी इलाकों में पानी की जरूरतों को पूरा करता है। यदि स्प्रिंग्स को नदियों की जीवनरेखा कहें, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक अनुमान के मुताबिक भारतवर्ष में करीब 5 मिलियन स्प्रिंग्स हैं। जिनमें से करीब 3 मिलियन स्प्रिंग्स इंडियन हिमालयन रीजन में हैं। जिन पर देश के 12 हिमालयन राज्यों के करीब 50 मिलियन लोग निर्भर हैं, लेकिन पहाड़ों की जीवनरेखा कहे जाने वाले 50 प्रतिशत से ज्यादा स्प्रिंग्स सूख गए हैं।
देश के मैदानी इलाकों में ही नहीं, बल्कि पहाड़ी इलाकों में भी हर साल जल संकट गहराता है। शिमला के जल संकट को हम प्रत्यक्ष तौर पर देख ही चुके हैं, जिसका कारण स्प्रिंग्स का सूखना है। यही समस्या इंडियन हिमालय रीजन के विभिन्न शहरों में है। जल संकट की इस समस्या से गंगा, यमुना और अलकनंदा जैसी नदियों का उद्गम स्थल ‘उत्तराखंड’ भी अछूता नहीं है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड का अल्मोड़ा जिला पानीदार हुआ करता था। यहां करीब 360 प्राकृतिक स्प्रिंग्स (नौले धारे आदि) थे। घरेलू और खेती की पानी संबंधी जरूरतों के लिए लोग इन्हीं पर निर्भर थे। एक तरह से पहाड़ों की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं, नौले-धारे। पहाड़ों में इन्हें विष्णु भगवान का रूप मानते हुए इनकी पूजा की जाती है, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि बीते 150 वर्षों में अल्मोड़ा में करीब 83 प्रतिशत स्प्रिंग्स सूख गए हैं। यहां अब लगभग 60 ही स्प्रिंग्स बचे हैं। जिस कारण जल संकट गहरा रहा है। सिक्किम और मेघालय भी स्प्रिंग्स के सूखने के कारण जल संकट का सामना कर रहे हैं।
पर्वतीय इलाकों में स्प्रिंग्स के सूखने का अहम कारण बढ़ती आबादी के साथ पानी की बढ़ती मांग, पर्वतीय क्षेत्रों का पारिस्थितिक क्षरण और भूमि का सस्टेनेबल उपयोग न हो पाना है। इससे जल की समस्या सबसे ज्यादा गर्मियों में गहराती है। गर्मियां शुरु होते ही पानी की मांग बढ़ जाती है, तो वहीं गर्मी का असर स्प्रिंग्स पर भी पड़ता है और वे सूखने लगते हैं या जल की मात्रा कम हो जाती है। लोगों के लिए पानी की समस्या खड़ी न हो, इसके लिए अप्रैल मई के महीने में हर साल स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट का कार्य किया जाता है। इस कार्य के अंतर्गत स्प्रिंग्स के रिचार्ज एरिया का पता लगाने के लिए हाइड्रोलाॅजिकल और जियोलाॅजिकल सर्वे किया जाता है। इसके बाद गांव में जल की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई गई जल उपभोकता समितियो के माध्यम से स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट के कार्यों को अंजाम दिया जाता है। इसका उद्देश्य एक्यूफरों को रिचार्ज करना होता है, ताकि बरसात के दौरान पानी जमीन के अंदर तक पहुंचे और लोगों के सामने जल संकट खड़ा न हो। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि इस वर्ष पहाड़ों में भीषण जल संकट गहरा सकता है।
हिम्मोत्थान के सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर डाॅ. सुनेश कुमार शर्मा ने बताया कि वे लोग हर साल स्प्रिंगशेड मैनेजमैंट का कार्य करते हैं, जो मानसून से पहले, यानी अप्रैल-मई तक किया जाता है, लेकिन लाॅकडाउन के कारण सभी कार्य रुके हुए हैं। सर्वे का काम भी अभी तक शुरु नहीं किया जा सका है। कुछ समय बाद लाॅकडाउन खुलता भी है तो सभी कार्यो को समानांतर रूप से करना होगा, तभी जुलाई तक कार्यों को पूरा किया जा सकेगा। स्प्रिंगशेड का कार्य न होने पर जल संकट खड़ा हो सकता है। उन्होंने बताया कि यदि स्प्रिंगशेड का कार्य समय पर न हुआ तो फिर डिमांड मैनेजमेंट पर जोर देना होगा, ताकि लोगों के सामने समस्या खड़ी न हो।
स्प्रिंग्स के सूखने से जल संकट केवल पहाड़ी इलाकों में ही नहीं, बल्कि मैदानी इलाकों में भी है। स्प्रिंग्स सूखने से नदियों की धाराओं में पानी कम हो गया है। जमीन के अंदर पानी न पहुंचने से एक्यूफर सूखते जा रहे हैं। ऐसे में मैदानी इलाकों में भी पानी की जरूरतों को पूरा करना चुनौती रहता है। कोरोना ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है। क्योंकि कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए जो स्वच्छता बनाए रखने और हाथों को धोने की हिदायत दी जा रही है, उसने पानी की मांग को बढ़ा दिया है। जल संस्थान के एक अधिकारी का कहना है कि पानी की मांग लाॅकडाउन के बाद से करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ गई है। यदि ऐसा लंबे समय तक चला तो बढ़ा संकट खड़ा हो सकता है। इन सभी पहलुओं पर गौर करें तो समस्या बड़ी विकट है। एक तरफ तो हाथ धोने और स्वच्छता बनाए रखने के लिए जल की जरूरत है तो वहीं दूसरी तरफ जल संकट के बादल गहराते जा रहे हैं।
मैदानी इलाकों में तो लोगों को जैसे तैसे पानी मिल ही रहा है, लेकिन पहाड़ी इलाकों में जहां लोग स्प्रिंग्स पर ही निर्भर हैं, वहां लोगों के लिए ये चुनौती बना हुआ हैै। वे स्प्रिंग्स तक पानी लेने जाते हैं, तो सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रख देते हैं। यहां लोगों में ये मानसिकता भी घर कर गई है कि कोरोना वायरस मैदानी इलाकों में है, पहाड़ों में नहीं। डाॅ. सुनेश कुमार शर्मा ने बताया कि चंबा के जिस क्षेत्र में वे कार्य कर रहे हैं, वहां गांव की समितियों को पहले ही सोशल डिस्टेंसिंग के लिए हिदायत दी गई है। लोगों से कहा गया है कि वे पानी लेने एक ही समय में न जाकर, अलग-अलग समय, या कुछ समय के अंतराल पर जाएं।’’ हालाकि 20 अप्रैल के बाद पानी और खेती से संबंधी कुछ कार्यों को मनरेगा के अंतर्गत करने की छूट मिलने की संभावना है। इसलिए देखना ये होगा कि जनहित को ध्यान में रखते हुए क्या स्प्रिंगशेड के कार्य भी किए जाते हैं ? ऐसे समय में जनता को भी जल संरक्षण के प्रति जागरुकता दिखाने की जरूरत है। प्रयास करें कि हाथ धोने के लिए कम से कम पानी का उपयोग किया जाए। इसके अलावा बरसात में ज्यादा से ज्यादा पानी का संरक्षण करें। तभी हम पानीदार रह पाएंगे और कोरोना जैसी महामारी को हरा पाएंगे।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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