कुछ महीनों पहले बड़े-बड़े दावे किए गए थे कि इन्दौर शहर के बीचोंबीच से बहने वाली खान नदी को अहमदाबाद में साबरमती की तर्ज पर साफ-सुथरा बनाकर इसके किनारों को सुन्दर और विकसित किया जाएगा, लेकिन विडम्बना की बड़ी बात यह है कि अब तक करीब 300 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च करने के बाद भी खान नदी को गन्दले नाले से नदी भी नहीं बनाया जा सका है। साबरमती नदी की तर्ज पर विकसित करने की बात अब तक बेमानी ही साबित हुई है।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की ताजा रिपोर्ट ने ऐसे तमाम दावों की पोल खोलकर रख दी है, इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में सनसनीखेज बात भी सामने आई है कि सहायक नदी होने से खान के प्रदूषित होने का असर उज्जैन में बहने वाली क्षिप्रा नदी की तासीर पर भी पड़ रहा है। खान नदी के साथ बहकर आने वाली गन्दगी की वजह से उज्जैन में स्नान के लिये प्रसिद्ध रामघाट, गऊ घाट, त्रिवेणी और सिद्धघाट में नदी का पानी बहुत गन्दा हो गया है।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वाटर क्वालिटी इंडेक्स के लिये सितम्बर 16 में खान नदी के जल शुद्धिकरण संयंत्र कबीटखेड़ी तथा शक्करखेड़ी पर उपलब्ध पानी के जो सैम्पल लिये हैं, वे दूषित बताए गए हैं। इससे साफ है कि यहाँ करीब 200 करोड़ की लागत से लगाए गए ट्रीटमेंट प्लांट का कोई फायदा नहीं हो रहा है।
यहाँ जाँच में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा डीओ क्रमशः 4.2 तथा 5 मिग्रा प्रति लीटर, बायोकेमिक ऑक्सीजन डिमांड बीओडी 13 तथा 9 मिग्रा प्रति लीटर, फीकल कोलिफॉर्म की तादाद 300 तथा 24 एमपीएन प्रति सौ मिली और टोटल कोलिफोर्म की तादाद 1600 तथा 620 एमपीएन प्रति सौ मिली ही पाई गई है। किसी भी जलस्रोत में पानी के लिये बायोकेमिक ऑक्सीजन डिमांड बीओडी मानक रूप से 3 मिग्रा प्रति लीटर से कम होनी चाहिए। इसलिये मण्डल ने यहाँ के पानी की गुणवत्ता को असन्तोषजनक बताया है।
खान नदी के दूषित पानी के असर से उज्जैन के क्षिप्रा नदी रामघाट पर बायोकेमिक ऑक्सीजन डिमांड बीओडी 10, त्रिवेणीघाट पर 06 तथा सिद्धघाट पर 12 मिग्रा प्रति लीटर हो चुकी है। छह महीने पहले सिंहस्थ के दौरान इन घाटों पर साफ-स्वच्छ पानी में करोड़ों श्रद्धालुओं ने स्नान किया था, लेकिन अब उन्हीं घाटों पर दूषित पानी बह रहा है। गौरतलब है कि सिंहस्थ अवधि में दो महीने तक खान नदी का पानी पाइपलाइन के जरिए 75 करोड़ रुपए की लागत से उज्जैन से बाहर निकालकर वहाँ क्षिप्रा में मिलाया गया था।
दरअसल खान नदी मध्य प्रदेश के मिनी मुम्बई कहे जाने वाले इन्दौर महानगर के बीचोंबीच से गुजरती है और यहीं से शुरू होता है इस नदी के गन्दले नाले में तब्दील होने का सिलसिला। कभी यह नदी इन्दौर के प्राकृतिक सौन्दर्य वैभव के लिये पहचानी जाती थी। यहाँ तक कि इस रियासत के राजा-महाराजाओं का अन्तिम संस्कार भी इसी नदी के तट पर किया जाता रहा। यहाँ आज भी इसके किनारे पर इन्दौर रियासत के राजाओं की सुन्दर स्थापत्य में समाधि की छतरियाँ देखी जा सकती हैं।
ये छतरियाँ आज भी इस नदी के वैभव की कहानी सुनाती खड़ी है पर बीते 30-40 सालों में जिस गति से अनियोजित कथित विकास हुआ उसने इस नदी के अस्तित्व पर ही गहरा संकट खड़ा कर दिया है। पूरे शहर की गन्दगी से लबरेज गन्दे नालों का रुख इस नदी की ओर कर दिया गया। लोगों ने इसे गन्दगी और पुराने मकानों के मलबों से पाटना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह नदी कब गन्दले नाले में तब्दील हो गई, किसी को पता ही नहीं चला।
इसके लगातार गन्दी होते जाने और इससे आसपास के लोगों की सेहत को होने वाले नुकसान को लेकर इन्दौर शहर के पर्यावरणविद किशोर कोडवानी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल में एक जनहित याचिका दायर की थी। कुछ महीनों पहले ट्रिब्युनल ने इसे साफ रखने और इसके आसपास हुए अतिक्रमण हटाने के निर्देश इन्दौर नगर निगम को दिये थे।
ट्रिब्युनल में सुनवाई के दौरान खान नदी की सफाई और अतिक्रमण नहीं हटाने पर खेद जताया था और माना कि समय-समय पर ट्रिब्युनल के निर्देशों का पालन नहीं हुआ है। बाद में ट्रिब्युनल के सख्त निर्देश पर नगर निगम ने भी अमल शुरू किया। अतिक्रमण हटाया गया और अन्य कामों के साथ कबीटखेड़ी में 122 एमएलडी क्षमता वाला ट्रीटमेंट प्लांट भी शुरू किया गया। भानगढ़ पुल के पास हर दिन 180 एमएलडी पानी को उपचारित किया जा रहा है।
औद्योगिक क्षेत्र के अपशिष्ट से दूषित पानी की सफाई के लिये एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट भी अब बनकर तैयार है, उसे भी एक हफ्ते में शुरू किया जा सकता है। हालांकि इसे सिंहस्थ से पहले शुरू किया जाना था लेकिन तब अधूरा होने से इसे अब शुरू किया जा रहा है। लेकिन बड़ी बात यह है कि अब तक प्रदूषण फैलाने वाली कम्पनियों के खिलाफ सरकारी स्तर पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हो सकी है।
इन्दौर कलेक्टर पी नरहरी भी मानते हैं कि खान नदी को 6 गन्दे नाले प्रदूषित करते हैं। बीते दिनों खान नदी को साफ करने के लिये कई सरकारी प्रयास किये गए हैं। हमारा फोकस है कि रिवर और सीवर आपस में न मिल सके, इसके लिये नालों के किनारे लाइन बिछाई जा रही है।
खान नदी इन्दौर के पास रालामण्डल की पहाड़ियों से निकलती है और 11 किमी का सफर तय करते हुए इन्दौर के कृष्णपुरा पुल के पास शहर के बीचोंबीच पहुँचती है। यहाँ एक और नदी सरस्वती से इसका मिलन होता है। सरस्वती नदी भी इन्दौर से करीब 35 किमी दूर माचल गाँव के जंगलों से निकलती हुई यहाँ पहुँचती है। इन दोनों नदियों के केचमेंट क्षेत्र में ही बिलावली, पिपल्याहाना, पीपल्यापाला, सिरपुर तथा लिम्बोदी के बड़े-बड़े तालाब बने हुए हैं जो हर साल हजारों हेक्टेयर में सिंचाई करते हैं।
बीते दो सालों से इसे साफ-सुथरा बनाकर 2719 करोड़ लागत से अहमदाबाद के साबरमती की तर्ज पर विकसित करने की एक बड़ी सरकारी योजना को मूर्त रूप देकर अधिकारी अब तक बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं लेकिन प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की इस ताजा रिपोर्ट ने इन दावों की हवा निकाल दी है। वहीं इस पर किये गए भारी-भरकम खर्च पर भी सवालिया निशान लगता है।
क्षिप्रा की सहायक नदी होने के बाद भी खान इतनी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है कि इसका पानी जहरीला हो गया है। इसके पानी के उपयोग पर भी पूरी तरह से पाबन्दी है। दरअसल कई गन्दे नालों का पानी और कुछ उद्योगों का हानिकारक अपशिष्ट रसायन मिलने से इस नदी की यह हालत हुई है। यह नदी उज्जैन से पहले क्षिप्रा नदी में मिलती है। उज्जैन में अप्रैल 2016 में क्षिप्रा नदी के किनारे सिंहस्थ का मेला लगने के दौरान प्रशासन ने खान नदी को उज्जैन के पहले से लेकर उज्जैन के बाहर तक नदी के लिये वैकल्पिक रास्ता पाइपलाइन के जरिए बनाया था।
मध्य प्रदेश सरकार की इस महती योजना में 75 करोड़ रुपए खर्च कर करीब 1700 मीटर तक खान नदी को क्षिप्रा में मिलने से रोकने की रणनीति बनाई और बकायदा खान नदी का रास्ता बदलकर इसे पाइपलाइन के रास्ते उज्जैन से पहले ही राघोपीपल्या से बदलकर उज्जैन के बाहर कालियादेह गाँव के आगे छोड़ा गया ताकि सिंहस्थ क्षेत्र में त्रिवेणी से मंगलनाथ, सिद्धनाथ तक क्षिप्रा को बचाया जा सके। लेकिन सिंहस्थ खत्म होते ही सब कुछ उसी तरह शुरू हो गया है। अब खान नदी का पानी फिर से पुरानी तर्ज पर ही क्षिप्रा नदी में मिल रहा है और उज्जैन शहर के बीच से बहने वाली क्षिप्रा नदी को बुरी तरह प्रदूषित कर रहा है।
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