उस दिन भी यमुना से गुजरा। पुल से ही यमुना पर नजर डाली और हल्की उदासी से घिर गया। दिल्ली में यमुना पार ही रहता हूं। रोज यमुना से ही गुजरता हूं। वहां से गुजरते हुए अक्सर सोचता हूं कि क्या यमुना को हम जीते हैं, यमुना तो बस शहर से गुजरती है। लेकिन हमें कहां एहसास होता है कि एक महान नदी हमारे बीच बहती है, यमुना से हम बस आर-पार ही होते हैं। कितनी अजीब बात है कि इस महानगर को --- फीसदी पानी देने वाली नदी के साथ हम इस तरह बर्ताव करते हैं। हम सिर्फ नदी को इस्तेमाल करते हैं। उससे कोई लगाव महसूस नहीं करते। उससे पानी लेते हैं और अपनी तमाम गंदगी उसमें डाल देते हैं। यमुना का क्या हाल बना डाला है हमने? सचमुच नाले जैसी लगती है यमुना। फिर भी कोई अगर कह देता है कि यमुना नाला हो गई है तो हमें दुख होता है।
यमुना की सफाई के लिए खासा हंगामा होता रहता है। उसकी सफाई के लिए एक एक्शन प्लान बना था। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यमुना एक्शन प्लान पर सवाल उठाए हैं। जाहिर है कि पिछले दस साल में यमुना और मैली ही हुई है। हम नदी को देवी मानते हैं। शायद ब्रहमपुत्र को छोड़कर सब नदियां देवी ही हैं। ब्रहापुत्र अकेला देव है। लेकिन उसे तो अभिशप्त माना जाता है। नदी सचमुच देवी होती है। आखिर कितना कुछ देती है वह हमें। जो देता वही देवता और देने वाली ही देवी होती है।
यमुना नदी को देखकर महसूस होता है कि हम अपने देवी-देवताओं के साथ भी क्या कर सकते हैं? देवी तो अलग बात है, हमने उसे एक साफ-सुथरी नदी भी नहीं रहने दिया है। वह देश की राजधानी में बहती है। पिछले साल यमुनोत्री पर गया था। वहां उसके उद्वम पर खड़ा-खड़ा सोचता रहा कि क्या यही यमुना है, जो मेरे शहर तक जाती है। यहां कैसी है यमुना और बहते-बहते क्या हो जाती है यमुना? खासतौर पर दिल्ली से गुजरते हुए। सीएसई की एक रिपोर्ट कहती है कि यमुना दिल्ली में घुसते ही बदल जाती है।
क्या यह वही यमुना है, जिसके किनारे कभी कृष्ण ने रासलीला की थी। कृश्ण और यमुना का तो गजब का साथ रहा है। काका साहेब कालेलकर कहते थे कि ''द्वारकावास को यदि छोड़ दें तो, श्री कृष्ण के जीवन के साथ अधिक से अधिक सहयोग कालिंदी ने ही किया है। जिस यमुना ने कालियामर्दन देखा, उसी यमुना ने कंस का शिरच्छेदन भी देखा। जिस यमुना ने हस्तिनापुर में कृष्ण की सचिव वाणी सुनी, उसी यमुना ने रण कुषल श्रीकृष्ण की योगमूर्ति कुरूक्षेत्र पर विचरती निहारी। जिस यमुना ने वृंदावन की प्रणय बांसुरी के साथ अपना कलरव मिलाया, उसी यमुना ने कुरूक्षेत्र पर रोमहर्षण गीतावाणी को प्रतिध्वनित किया।'' सचमुच कृष्ण को लेकर हमारा दीवानापन बना हुआ है। लेकिन कृष्ण की यमुना का हमने क्या कर डाला है? वह बहती जरूर है, लेकिन...। आज यमुना जयंती है। मैं पश्चाताप से घिरने लगता हूं। हे देवी यमुने, हमें माफ करना।
---राजीव कटारा