कुदरती खेतीः बिना कर्ज, बिना जहर

Submitted by Hindi on Wed, 04/06/2011 - 09:50
Source
अर्थशास्त्र विभाग, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक
कर्ज और जहर बगैर खेती के कई रूप और नाम हैं- जैविक, प्राकृतिक, जीरो-बजट, सजीव, वैकल्पिक खेती इत्यादि। इन सब में कुछ फर्क तो है परन्तु इन सब में कुछ महत्वपूर्ण तत्त्व एक जैसे हैं। इसलिये इस पुस्तिका में हम इन सब को कुदरती या वैकल्पिक खेती कहेंगे। कुदरती खेती में रासायनिक खादों, कीटनाशकों और बाहर से खरीदे हुए पदार्थों का प्रयोग या तो बिल्कुल ही नहीं किया जाता या बहुत ही कम किया जाता है। परन्तु कुदरती खेती का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि यूरिया की जगह गोबर की खाद का प्रयोग हो इसके अलावा भी इस खेती के अनेक महत्वपूर्ण तत्त्व हैं जिन की चर्चा हम आगे करेंगे।

एक बात शुरू में ही स्पष्ट करना आवश्यक है कि कुदरती खेती अपनाने का अर्थ केवल हरित क्रांति से पहले के तरीकों, अपने बाप दादा के तरीकों पर वापिस जाना नहीं है। इन पारम्परिक तरीकों को अपनाने के साथ-साथ पिछले 40-50 वर्षों में हासिल किए गए ज्ञान और अनुभव का भी प्रयोग किया गया है। कुदरती खेती अपनाने का उद्देश्य यह है कि किसान को सम्मानजनक और सुनिश्चित आमदनी मिले, छोटी जोत की खेती भी सम्मानजनक रोजगार और जीवन दे, हर इंसान को स्वास्थ्यवर्द्धक और पर्याप्त भोजन मिले। इसके अलावा पर्यावरण संतुलन में भी कुदरती खेती का महत्वपूर्ण योगदान है।

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