कुंभ से अमृत छलकाने की तैयारी

Submitted by Hindi on Sat, 01/12/2013 - 10:37
Source
नेशनल दुनिया, 06 जनवरी 2013

इलाहाबाद में संगम पर आस्था का सैलाब उमड़ने को तैयार है। सरकार भी जी-जान से तैयारियों में जुटी है। दंडी स्वामियों के साधना-स्थल पर कार्य गतिशील है। अखाड़ों के विशालकाय प्रवेश-द्वार वाले बैनर टंग चुके हैं। बांस की सीमा-रेखा बनाकर, टिन से घेर कर तंबुओं की परिधि बनाने में संन्यासी जुटे दिखने लगे हैं। अखाड़ों की धर्मध्वजा ईशान कोण में फहरा रही हैं। कई प्रख्यात धर्माचार्यों के पंडाल और प्रवेश-द्वार चकाचौंध पैदा कर रहे हैं। लैपटॉप और मोबाइल लिए साधु अपने निर्माण कार्य की निगरानी करते तथा परंपरा और आधुनिकता की संस्कृति में रचे-बसे दिख रहे हैं। सारा वातावरण किसी विशाल यज्ञ की तैयारियों में जुटा जान पड़ता है।

भारतीय जनमानस की अंतश्चेतना में आधुनिकता के मोहपाश के बावजूद धर्म और अध्यात्म के प्रति आस्था की जड़ें कितनी मजबूत हैं, इसका साक्षात्कार रेत पर बसे आस्था के शहर से गुजरते हुए आसानी से हो सकता है। कुंभ के लिए बसाए गए इस शहर में-
‘चंवर जमुन अरु गंग तरंगा।
देखि होहिं दुख दारिद भंगा’।।


की पवित्र भावना से लोक-परलोक सुधारने के लिए जुटे श्रद्धालुओं, संतों-महात्माओं, नागाओं और धर्मभीरुओं की आस्थाएं न डगमगाएं इसलिए सरकार ने भी खासी मेहनत-मशक्कत कर रखी है। लंबी तैयारी है। लेकिन स्नान से पहले इन तैयारियों की परीक्षा संभव नहीं है।

छोटे-बड़े तंबुओं में शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों, अखाड़ों व अन्य साधु-संतों तथा कल्पवास करने वालों के लिए बिजली, सड़क, शौचालय और पानी आदि की तैयारी जोरों पर है। हालांकि इस तैयारी के बाद सिर्फ एक, दो और तीन सेक्टर ही पूरी तरह विकसित हो पाए हैं। त्रिवेणी बाग के नीचे सेक्टर चार के रेतीले मैदान में अखाड़ों द्वारा ध्वजा लहराने का काम पूरा हो गया है। अखाड़ों के भव्य शिविर बनकर लगभग तैयार हैं। रेतीली भूमि, जो पंद्रह दिन पहले वीरान और शांत थी, अब धीरे-धीरे कोलाहल और भीड़-भाड़ को समेटते हुए जीवंत हो रही है। अखाड़ों में बस चुके साधु-संतों और नागाओं के दर्शन करने के लिए शहर और आसपास के गांव के श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने लगी है। संगम और अरैल तट पर क्रमशः त्रिवेणी आरती और गंगा आरती में भाग लेने के लिए श्रद्धालु जुटने लगे हैं। दंडी स्वामियों के साधना स्थल पर कार्य तेजी पर है। अखाड़ों के विशालकाय प्रवेश द्वार वाले बैनर टंग चुके हैं। बांस की सीमा-रेखा बनाकर टिन से घेर कर तंबुओं की परिधि बनाने में संन्यासी जुटे दिखने लगे हैं। अखाड़ों की धर्मध्वजा ईशान कोण में फहरा रही हैं। कई प्रख्यात धर्माचार्यों के पंडाल और प्रवेश द्वार चकाचौंध पैदा कर रहे हैं। लैपटॉप और मोबाइल लिए साधु अपने निर्माण कार्य की निगरानी करते तथा परंपरा और आधुनिकता की संस्कृति में रचे-बसे दिख रहे हैं। मुख्य पंडालों में आकर्षक नक्काशी तथा कलात्मक प्रकाश की व्यवस्था की जा रही है। गुजराती और बंगाली कलाकारों व शिल्पकारों द्वारा पंडालों को आकर्षक साज-सज्जा दी जा रही है। जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि व इस्कॉन के विशाल शिविर भी मेले में बेजोड़ भव्यता बयां कर रहे हैं। कल्पवासियों द्वारा लगाए जा रहे टैंटो का विस्तार भी धीरे-धीरे एक विशाल विश्व ग्राम का आकार लेने लगा है। शिविरों के मध्य स्थित कुटियों (छोलदारी) के बीच रोपे जा रहे तुलसी के पौधे वातावरण को पावनमय कर रहे हैं। देश के कोने-कोने से लाए गए हजारों कारीगरों और श्रमिकों द्वारा निष्ठा व भक्ति भाव के साथ मेहनत से शिविरों को आकर्षक स्वरूप दिया जा रहा है। कुंभ में स्थापत्य कला और कारीगरी का भी संगम देखने को मिल रहा है। भक्ति पंडाल और स्विस कॉटेज की व्यस्था ने श्रद्धालुओं को कुंभ में एक नए आकर्षण का सबब दिया है।

यह बात दीगर है कि वर्ष 2001 में 44 दिनों के लिए आयोजित इस बार का कुंभ मेला 55 दिनों के लिए होगा। यही नहीं, वर्ष 2001 के कुंभ में जहां मकर संक्रांति के दिन एक करोड़ लोगों ने स्नान किया था। वहीं इस बार यह संख्या दस लाख और अधिक बढ़ जाने का अनुमान है। जबकि बीते कुंभ में बसंत पंचमी के दिन सबसे अधिक पौने दो करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई थी। जबकि इस साल के कुंभ में बसंत पंचमी पर एक करोड़ 93 लाख लोगों के गंगा स्नान का अनुमान लगाया गया है। इसकी वजह देश एवं प्रदेश की जनसंख्या में बीते दस सालों में हुआ इजाफा है। वर्ष 2001 में भारत की जनसंख्या 102.87 करोड़ थी। जो बढ़कर तकरीबन 121.02 करोड़ हो गई है। उप्र की भी वर्ष 2001 में जनसंख्या 16.61 करोड़ दर्ज की गई थी। जिसके दस साल बाद हुई जनगणना में 19.96 करोड़ होने का आंकड़ा है। बीते दस सालों में इलाहाबाद नगर निगम की जनसंख्या में भी 2.72 लाख का इज़ाफा दर्ज हुआ है। पावर कॉरपोरेशन, सिंचाई, लोकनिर्माण, जलनिगम, विकास प्राधिकरण, नगर पंचायत, आवास विकास परिषद, पर्यटन विभाग, नगर निगम और गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई ने मिलकर इस बार के कुंभ पर्व में 668.81 करोड़ रुपए खर्च करने के लिए कमर कसी है। इसमें से 455.03 करोड़ रुपए जारी भी किए जा चुके हैं। यह आंकड़ा प्रथम चरण का है। द्वितीय चरण में इन विभागों के साथ ही परिवहन निगम, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, प्रादेशिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति, वन विभाग, उद्यान विभाग, पुलिस महकमा, सूचना तथा जनसंपर्क विभाग ने मिलकर 491.81 करोड़ रुपए मेले की व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के लिए लगाए हैं। 1997.06 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण हुआ है, जिसमें मेला प्रशासन की जमीन का हिस्सा 172.11 हेक्टेयर, रक्षा विभाग के स्वामित्व वाली 217.03 हेक्टेयर भूमि, रेलवे महकमे की 7.41 हेक्टेयर जमीन तथा इलाहाबाद जिले की सदर, फूलपुर और करछना के 44 गांवों के काश्तकारों की अस्थायी रूप से अधिग्रहीत भूमि का हिस्सा 1356.77 हेक्टेयर के आसपास है। गंगा नदी व गांव सभा की भूमि भी 183.23 हेक्टेयर बैठती है। इस अधिग्रहीत भूमि के हिस्से में से 1488.48 हेक्टेयर जमीन संत-महंत अखाड़ों और विभिन्न विभागों तथा श्रद्धालुओं के कैंपों के लिए रखी गई है। जबकि 448.08 हेक्टेयर भूमि पार्किंग के लिए छोड़ी गई है। पहली बार तीन श्रेणियों में- इनर, मिडिल और आउटर 99 पार्किंग साइट्स बनाई गई हैं। जबकि 2001 में 35 और 2007 में 44 पार्किंग साइट्स बनाई गई थीं। इनर तथा मिडिल पार्किंग स्थल पर वाहनों की पार्किंग के साथ-साथ जनसुविधा और पेयजल मुहैया होंगे। आउटर पार्किंग में तीन स्थलों के होर्डिंग एरिया को एक में विकसित किया जाएगा। जहां बस, रेल और अन्य यातायात से संबंधित सूचनाएं क्षण-प्रतिक्षण उपलब्ध कराई जाएंगी। पिछले कुंभ की तुलना में 29.5 फीसदी अधिक जमीन अधिग्रहीत की गई है। हालांकि 2007 के अर्धकुंभ की अपेक्षा यह आंकड़ा सिर् 19.9 फीसदी बढ़ा है। कुंभ मेला का इस बार अधिसूचित क्षेत्रफल 58.03 वर्ग किमी है। मेले को कुल चार सेक्टर में विभाजित किया गया है। जिसमें 12 सेक्टर त्रिवेणी संगम से उत्तरी क्षेत्र में तथा दो सेक्टर अरैल क्षेत्र में बसाए गए हैं। सेक्टर एक से चार तक को छोड़कर अन्य सेक्टरों में बुनियादी सुविधाओं में कार्य बहुत पिछड़ा हुआ है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की समीक्षा के बावजूद 40 फीसदी काम अधूरा पड़ा है। धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं और कल्पवासियों को भूमि आवंटन का महज 45 फीसदी काम पूरा हो पाया है।

एक अभिनव प्रयोग के तहत हर सेक्टर में सेक्टर मार्केट की व्यवस्था की गई है। पहली बार जीपीएस मैपिंग कराई गई है। इससे दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर मेला क्षेत्र स्थित सरकारी कार्यालय, संस्था और किसी व्यक्ति विशेष की लोकेशन जानी जा सकेगी। इलाहाबाद जाने वाले सभी राजमार्गों पर चुने हुए स्थानों पर प्रारंभिक चिकित्सा और जीवन रक्षा के उपकरणों से सुसज्जित एंबुलेंस मौजूद होंगी। मेला क्षेत्र को पॉलीथिन और उससे निर्मित उत्पादों के लिए पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। एक केंद्रीयकृत शिकायत निवारण प्रकोष्ठ संचालित किए जाने की भी व्यवस्था की गई है। जो सभी सेक्टरों पर स्थिति शिकायत प्रकोष्ठ से जुड़ा रहेगा। शांति व्यवस्था बनाए रखने व तीर्थ यात्रियों की सहायता के लिए 30 पुलिस थाने स्थापित किए गए हैं, जिनमें 12,461 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है। जबकि 2001 और 2007 में 28-28 थाने खोले गए थे तथा 9,965 व 10,913 पुलिसकर्मियों को तैनात किए गया था। इसी के साथ बाढ़ कंपनी सहित पीएसी की 46 कंपनियां और आरएएफ समेत केंद्रीय अर्धसैनिक बल की चालीस कंपनियां मेला क्षेत्र में काम करेंगी। जबकि 2001 और 2007 में पीएसी की क्रमशः 35 और 45 व अर्धसैनिक बल की सात एवं 40 कंपनियों को तैनाती मिली थी। मेला क्षेत्र में कुल 61 सौ होमगार्ड लगाए जाएंगे जिसमें 5,900 पुरुष तथा 200 महिला होमगार्ड शामिल होंगे। 2001 के कुंभ मेले में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे थे। लेकिन इस बार 85 सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। हालांकि 2007 के अर्धकुंभ में भी 19 कैमरे लगाए गए थे। कुंभ मेले में पहली बार तीस वैरिएबुल साइनेज बोर्ड लगाए गए हैं। तीस फायर स्टेशन खोले गए हैं। परिवहन निगम ने छह हजार बसे चलाने का फैसला लिया है।

कुंभ मेला क्षेत्र में 264 चिकित्सक और 838 स्वास्थ्य कर्मी तैनात किए गए हैं। 75 एंबुलेंस मेले में लगाई गई हैं जो हर वक्त उपलब्ध रहेंगी। हर सेक्टर में 20 शय्या का अस्पताल बनाया जा रहा है। 100 शय्या के केंद्रीय अस्पताल का निर्माण भी पूरा हो चुका है। पीआरए टाइप के 35 सौ शौचालय और 340 सेट जन शौचालय स्थापित किए गए हैं। हर 10 सेट जन शौचालय पर तीन सफाईकर्मी 24 घंटे तैनात रहेंगे। भारतीय डाक विभाग ने चार सचल डाक घर खोले हैं। उत्तर मध्य रेलवे कुंभ में चौकस सुरक्षा व्यवस्था के तहत इलाहाबाद जंक्शन और नैनी समेत आसपास के रेलवे स्टेशनों पर पैनी नजर रखने के लिए 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाने में जुटा है। स्टेशनों पर 1500 से अधिक प्रशिक्षण आरपीएफ के जवान मुस्तैद रहेंगे। मीडिया कर्मियों की सुविधा के लिए त्रिवेणी रोड पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया शिविर, लाल सड़क पर विशाल नेशनल मीडिया सेंटर, स्थानीय मीडिया सेंटर, बांध के नीचे इलेक्ट्रानिक मीडिया शिविर बनाए गए हैं।

एक अनुमान के मुताबिक रोजाना करीब 50 हजार लीटर दूध की खपत का आंकड़ा तैयार करके दूध की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। मेला क्षेत्र में 80 हजार लीटर पेयजल की आपूर्ति की जाएगी। इसकी आपूर्ति के लिए 550 किमी. लंबाई के अस्थाई पाइप लाइन बिछाने की व्यवस्था की गई है। खाद्य एवं रसद महकमे ने 25 हजार 28 सौ टन खाद्यान्न के आवंटन का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसमें 16,200 टन गेहूं, 9,600 टन चावल, छह हजार टन चीनी का आवंटन किया गया है। दौ सौ लीटर केरोसिन तेल तथा चार हजार लीटर दूध अभी आवंटित किया गया है। अनाज वितरण के लिए मेला क्षेत्र में 125 सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानें स्थापित की गई हैं तथा 50 दुग्ध वितरण केंद्र खोले गए हैं। मेला क्षेत्र में दो लाख राशन कार्ड बनाने का लक्ष्य रखा गया है। एलपीजी के मेला अवधि तक के लिए 18 हजार गैस कनेक्शन एवं 60 हजार रिफिल नॉन डोमेस्टिक एग्जेमटेड दरों पर 13 रुपए सिलेंडर फिलहाल रहेगा। आठ अस्थाई पेट्रोल पंपों की स्थापना भी की गई है। जिसमें प्रत्येक समय दो-दो हजार लीटर पेट्रोल और डीजल आरक्षित रहेगा। मेला क्षेत्र में मीना बाजार खोले जा रहे हैं जिसमें 284 दुकानें होंगी। त्रिवेणी रोड पर मीना बाजार सज रहा है।

पुराना जीटी रोड-अरैल मार्ग, तुलसी से बदरा सुनौरी मार्ग, शंकराचार्य मार्ग, बिरला मंदिर से श्मशान घाट सहित मेला क्षेत्र के 45 फीसदी रास्तों पर चकर्ड प्लेट बिछाने और क्लीपिंग क काम अधूरा है। कुल 156 किलोमीटर की सड़कों पर चकर्ड प्लेट लगानी है। इनमें से 92 किलोमीटर की सड़कों पर ही प्लेटें लग पाई हैं। सेक्टर-6,7,8,9 व 10 में बिजली लाइन के विस्तार का काम अधूरा है। अखाड़ा क्षेत्र में पेयजल पाइप लाइन में लीकेज है। पुरानी जीटी रोड सहित अनेक महत्वपूर्ण मार्गों की मरम्मत का काम अपूर्ण है। मेला क्षेत्र से जुड़े मोहल्लों में सड़क-गली निर्माण कार्य पिछड़ा हुआ है। स्ट्रीट लाइट व्यवस्था ध्वस्त है। समुद्र कूप, छतनाम सहित चार पांटून पुलों का निर्माण अभी तक नहीं हो सका है।

बिजली संरक्षण और बेहतर प्रकाश के लिए मेला क्षेत्र में एक लाख सीएफएल लगाए गए हैं। यह पहला मौका होगा जब महाकुंभ सीएफएल की रोशनी से जगमगाने जा रहा है। मेला क्षेत्र में 22 हजार स्ट्रीट लाइट प्वाइंट लगाए जा रहे हैं। घाटों और मेला क्षेत्र के मुख्य स्थानों पर सौ हाई मार्क्स लग रहे हैं। एलटीई लाइन और 65 किलोमीटर एचटी विद्युत लाइन का विस्तार किया जा रहा है। मेला क्षेत्र में 2 गुणे चार सौ केबीएच क्षमता वाले 50 विद्युत सब-स्टेशन स्थापित किए गए हैं। एक लाख से अधिक अस्थाई विद्युत कनेक्शन किए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने मेला क्षेत्र ही नहीं इलाहाबाद क्षेत्र को भी एक जनवरी से बिजली कटौती से मुक्त कर दिया। मेला प्रशासन संत महात्माओं और अन्य संस्थाओं को तकरीबन 23 करोड़ रुपए की सुविधाएं देने जा रहा है।

इलाहाबाद में त्रिवेणी के तट पर स्नान करते श्रद्धालुइलाहाबाद में त्रिवेणी के तट पर स्नान करते श्रद्धालुमेले में शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती, शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती, शंकराचार्य स्वामी अधोछजानंद सरस्वती, जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, श्रीश्री रविशंकर, योगगुरू बाबा रामदेव, कथावाचक आसाराप बापू, मुरारी बापू, सुधांशु महाराज, रमेश भई ओझा, पं. देव प्रभाकर शास्त्री दद्दा, श्री महंत नरेंद्र गिरि, अखिल भारतीय दंडी समिति के अध्यक्ष स्वामी विमल देव महाराज, महंत नृत्य गोपाल दास, योगी आदित्यनाथ, स्वामी चिन्मयानंद, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी ज्ञानदास, महामंत्री हरि गिरि, राम विलास वेदांती, साध्वी ऋतंभरा सहित अनेक प्रमुख संत अपना आसन जमाएंगे। मेले में विदेश से भी कई साधु-संतों का आगमन हो रहा है। कांग्रेस और भाजपा की आंखों की किरकिरी बने अरविंद केजरीवाल की आप (आम आदमी की पार्टी) भी कुंभ में सियासी मंथन करेगी। मेला क्षेत्र में आप को सेक्टर-7 में 3200 वर्ग मीटर जमीन आवंटित हुई है।

संस्कृति की निरंतरता का अमृत-घट है कुंभ


अखाड़ा शब्द का सामान्य अर्थ मल्ल युद्ध है इसे कुश्ती का अभ्यास स्थल भी कहते हैं पर धर्म और कुंभ के संदर्भ में इसका अर्थ बिल्कुल बदल जाता है। धर्म के क्षेत्र में सधुओं के उन संगठनों को अखाड़ा कहते हैं, जिन्हें धर्म रक्षा हेतु शंकराचार्य एवं अन्य आचार्यों ने स्थापित किया। अखाड़ों को लेकर विस्मय और रोमांच तो है ही, तमाम किंवदंतियां भी पसरी पड़ी हैं। यही वजह है कि अखाड़ों का नाम आते ही कौतूहल और जिज्ञासा से भरी निगाहें अखाड़ों के संतों, महंतों और नागाओं पर ठहर-सी जाती है। भारतीय संस्कृति की निरंतरता एवं अक्षुण्णता के प्रतीक अखाड़े कुंभ की शोभा होते हैं। अखाड़ों का कुंभ में विशेष महत्व है। कुंभ अखाड़ों के लिए अमृत पर्व है। प्राचीन काल में ये अखाड़े श्रद्धालुओं और जनसाधारण को स्वधर्म में दृढ़ रहने के लिए आश्वस्त करते थे। अखाड़ों के पेशवाई और शाही स्नान के जुलूस कुंभ में आए लोगों के आकर्षण का सबब भी होता है। पेशवाई को ही आगमनी जुलूस कहते हैं, यह मेला क्षेत्र में प्रवेश के समय का होता है। जिसमें विभिन्न स्थानों के संत व शस्त्रधारी नागा संन्यासी अनोखे करतब दिखाते, हाथी-घोड़े, ऊंट व पालकी की सवारी में बैठे संत भव्य अलंकृत रथों पर सवार महामंडलेश्वर तथा मंडलेश्वर बैंड-बाजों की धुन पर करतब दिखाते साधुओं की जमात के साथ रेत के मैदान में बसे आस्था के शहर में रहने के लिए प्रवेश करते हैं। पूरी सामरिक साज-सज्जा, शानों शौकत के साथ धर्म-पताका लेकर संगम स्नान करने जब अखाड़ों के लोग कूच करते हैं तो उसे शाही जुलूस कहते हैं। पेशवाई जुलूस तो अखाड़े अपनी सुविधानुसार निकालते हैं। किंतु शाही जुलूसों का क्रम, समय तथा मार्ग मेला प्रशासन तथा अखाड़ा परिषद की पारस्परि सहमति से तय होता है। स्नान के क्रम से अखाड़ों की हैसियत का भी अंदाज लगता है। इसी से अखाड़ों की धार्मिक महत्ता स्थापित होती है। नतीजतन, इसे लेकर काफी वाद-विवाद और वितंडा भी होता है।

एक समय आवाहन अखाड़े ने जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान न करने को लेकर उच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया। यह बात दीगर है कि अदालत ने इस मामले में दखल करने से इनकार कर दिया। क्योंकि अखाड़ों की समस्याओं की आपसी विवाद के निस्तारण हेतु अखाड़ों की सहमति से अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई है। कुंभ के आला हुक्मरानों की परेशानी का सबसे बड़ा सबब यही जुलूस होते हैं। विभिन्न अखाड़ों के शाही जुलूस में आगे-आगे बिगुल और तुरही की नाद करते हुए साधु, उसके बाद, ध्वज फहराते व अस्त्र-शस्त्रों को धारण कर करतब दिखाते सैनिकों की भांति नागा संन्यासी होते हैं। अंत में भव्य रथों पर या स्वर्ण जड़ित पालकियों में विराजमान महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, महंत तथा घोड़ों पर सवार वरिष्ठ संन्यासी चलते हैं। कुछ अखाड़ों के साथ पैदल श्रद्धालु भी शाही जुलूस में शरीक होते हैं। पहले शाही जुलूस में हाथी भी होते थे। अब इनकी जगह घोड़ों और महंगी कारों ने ले ली है। शाही जुलूस, घुड़सवार एवं पैदल पुलिस तथा मजिस्ट्रेट-प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों द्वारा सम्मान से संगम ले जाए जाते हैं। जहां अखाड़ों के लिए संगम का एक एक भाग सुरक्षित रखा जाता है।

देशी श्रद्धालुओं एवं विदेशी पर्यटकों की असंख्य भीड़ इन जुलूसों को देखने के लिए उमड़ती है पर उनके तीन प्रमुख स्नानों में छह दशनामी संन्यासी अखाड़े, तीन वैष्णव अखाड़े, दो उदासीन अखाड़े व एक निर्मल अखाड़ा स्नान करते हैं। संयासियों के अखाड़ों में महानिर्वाणी और अटल अखाड़ों की संगती है। तपोनिधि निरंजनी और आनंद अखाड़े की संगति है। जूना-आवाहन एवं ब्रह्मचारी, इसी अग्नि अखाड़ा भी कहा जाता है, की संगति है। वैष्णवों के अखाड़े में दिगंबर, निर्मोही एवं निर्माणी (अति) का साहचर्य है। उदासीन नानक पंथी अखाड़ों में उदासीन बड़ा अखाड़ा, उदासीन अखाड़ा और निर्मल अखाड़ा का साम्य है। इन सभी अखाड़ों के मेला क्षेत्र में शिविर स्थापित हो चुके हैं। यानी पेशवाई हो चुकी है। बसंत पंचमी तथा मौनी अमावस्या को पहले निर्वाणी फिर दिगंबर और उसके पश्चात निर्मोही अखाड़े के संत-महंत और नागा स्नान करते हैं। मगर मकर संक्राति के दिन पहले निर्मोही, फिर दिगंबर और उसके बाद निर्वाण अखाड़े के संत-महंत और नागा स्नान करते हैं। तीसरे क्रम में उदासीन अखाड़े का नंबर आता है। सबसे पहले नया पंचायती अखाड़ा, उसके बाद बड़ा पंचायती अखाड़ा स्नान करता है। सबसे आखिर में निर्मल अखाड़ा स्नान करता है। शाही जुलूस में प्रदर्शन अनेक स्थानों पर अखाड़ों के बीच आपसी हिंसा और तनाव का कारण भी बना है। अखाड़ों के स्नान की महत्ता के बारे में जनविश्वास है कि पापियों के पाप धोते-धोते गंगा कलुषित हो उठती है। कुंभ पर्व के समय जब ये तपोनिष्ठ साधु-संन्यासी उसमें स्नान करते हैं तो गंगा उनके संचित पुण्य कर्म लेकर पुनः उज्जवला बन जाती हैं। इसीलिए इन्हें स्नान का विशेषाधिकार प्राप्त है। अखाड़ों के साधु-संन्यासी मात्र विरक्त संसार त्यागी नहीं होते हैं। यह शापादपि शशि-दपि सिद्धांत पर विश्वास रखते हैं। धर्म रक्षा हेतु शास्त्र धारण एवं शस्त्र संचालन की कला का अभ्यास करते रहते हैं। मध्य युग में इन अखाड़ों ने धर्मांध विधर्मियों से कई बार मोर्चा लेकर सनातन धर्म की रक्षा की। इनकी इसी अनूठी परंपरा के कारण ही इन्हीं अखाड़ों की संज्ञा मिली।

राम तेरी गंगा इतनी मैली हो गई


महाकुंभ के अवसर पर मोक्षदायिनी पवित्र गंगा करोड़ों लोगों का मैल और संचित पाप धोते-धोते खुद प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है। पर्व शुरू होने के अब मात्र चंद दिन शेष रह गए हैं लेकिन गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लापरवाही कार्यशैली के चलते गंगा में गिरते नालों पर रोक लगाने के कारगर कदम नहीं उठाए गए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सख्त निर्देश के बावजूद गंगा-यमुना में शहर के लगभग दो दर्जन नालों का सीवेज पानी गिर रह है। एक अनुमान के मुताबिक गंगा में 235 एमएलडी और यमुना में 200 एमएलडी गंदा पानी गिरता है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा निर्माण कराए जा रहे नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का काम भी अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। जबकि इस काम को कुंभ मेले के बहुत पहले पूरा हो जाना था। यही नहीं नैनी, बक्शी का बांध तथा सलोरी पर बना एसटीपी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है। हाल यह है कि नैनी एसटीपी में मात्र तीस और सलोरी में दस एमएलडी प्रदूषित पानी ही साफ हो पाता है। प्रशासन इस स्थिति से बेपरवाह दिखता है। धार्मिक और सामाजिक संगठन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने हेतु आंदोलनरत हैं।

गंगा मुक्ति अभियान के कार्यकर्ता डॉ. दीनानाथ शुक्ल कहते हैं कि प्रशासनिक सजगता और जन सहभागिता से ही गंगा को निर्मल बनाया जा सकता है। जबकि समाजसेवी कमलेश सिंह का आरोप है कि शासन कुंभ में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में गंभीर नहीं है। यही वजह है कि उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद गंदा पानी गंगा में जा रहा है। कुल मिलाकर अगर समय रहते गंगा में प्रदूषणकारी तत्वों को प्रवाहित करने से नहीं रोका गया तो अधिकांश श्रद्धालुओं को गंगा के शुद्ध जल की जगह प्रदूषित पानी में ही डुबकी लगानी पड़ेगी। क्योंकि कंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा हाल ही में ंगगा प्रदूषण को लेकर पानी की गुणवत्ता पर जारी की गई रिपोर्ट इसकी चुगली भी करती है। ऋषिकेश में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 1.48 मिग्री प्रति लीटर है। जबकि हरिद्वार में यह 1.90 मिग्रा. गढ़मुक्तेश्वर में 2.19 मिग्रा. कन्नौज में 4.58 मिग्रा, कानपुर में 4.16, इलाहाबाद में 5.51 मिग्रा, बनारस में 3.79 मिग्रा, पटना में 2.20 मिग्रा, राजमहल में 1.63 मिग्रा लीटर है।

कुंभ पर्व का आगमन इस प्रकार होता है


हरिद्वार मेष संक्रांति के दिन कुंभ राशि में बृहस्पति रहते हैं।
प्रयाग अमावस्या के दिन वृष राशि में बृहस्पति, मकर के सूर्य।
उज्जैन पूर्णिमा के दिन सिंह राशि में बृहस्पति के रहते, मेष के सूर्य।
नासिक अमावस्या के दिन सिंह राशि में बृहस्पति व सूर्य के रहते हुए।

कुंभ इतिहास के पन्नों में


वर्ष 629 सम्राट हर्ष के राज्य में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था। उसने अपनी यात्रा के संस्मरणों में प्रयाग के कुंभ का उल्लेख किया है।
वर्ष 1514 के प्रयाग कुंभ में श्री चैतन्य महाप्रभु भी शामिल हुए थे।
वर्ष 1751 में संगम पर्व पर एकत्रित नागा संयासियों ने फर्रुखाबाद वंगरा के अफगान सरकार अहमद खां सेना पर हमला कर उसे इलाहाबाद से भगा दिया और अपहृत उच्चकुलों की महिलाओं को अपगानी सेना से मुक्त कराया।
वर्ष 1740 के प्रयाग कुंभ मेले में एक प्रोटेस्टेंट मिशनरी ने दस दिन रहकर इसाई धर्म का प्रचार किया था।
वर्ष 1846 के प्रयाग कुंभ में उदासीन साधुओं के मतभेद के बाद महात्मा सूरदास की प्रेरणा से उदासीन पंचायती नया अखाड़ा स्थापित किया।
वर्ष 1855 के प्रयाग कुंभ में दशनाम संयासियों के शिविर में दस्त बाबा के समक्ष नाना साहब, धुंदु पंत बाला साहब पेशवा, तात्या टोपे, अजीमुल्ला खां और जगदीशपुर के कुंवर सिंह ने तमाम साधु-संतों के साथ ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया।
वर्ष 1882 के प्रयाग कुंभ में पहली बार सुव्यवस्थित स्वरूप में अखाड़ों की भूमि दी गई जहां सुविधाओं से युक्त शिविरों का निर्माण हुआ था।
वर्ष 1896 के प्रयाग कुंभ में हैजा फैलने से स्नान पर रोक लगा दी गई थी। यहां आए हुए यात्रियों को रेल से वापस भेज दिया गया।
वर्ष 1906 के प्रयाग कुंभ में वैष्णव अनुयायियों में निर्वाणी पक्ष और निर्मोही व दिगंबर पक्ष के बीच जुलूस को लेकर संघर्ष हुआ।
वर्ष 1954 के प्रयाग कुंभ में मुख्य स्नान पर्व पर भगदड़ से सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इस दुर्घटना के बाद बैठी जांच समिति में वासुदेव मुखर्जी ने सलाह दी कि मुख्य स्नान पर्व पर अति विशिष्ट लोगों को नहीं आने देना चाहिए।
वर्ष 1959 में प्रयाग के अर्ध कुंभ के अवसर पर शाही स्नान के मार्ग के प्रश्न पर मेला प्रशासन व अखाड़ों में विवाद हो गया जिस पर प्रथम शाही स्नान षड् दर्शन अखाड़ों ने बहिष्कार किया बाद में एक अखिल भारतीय षड् दर्शन परिषद का गठन किया गया। प्रशासन की अनुनय-विनय के बाद शाही स्नान हुआ।
वर्ष 1995 के प्रयाग अर्ध कुंभ में मेला प्रशासन पर दुर्व्यवस्था का आरोप लगाते हुए 13 प्रमुख अखाड़ों द्वारा मकर संक्रांति के शाही स्नान का बहिष्कार हुआ। नए शंकराचार्य, नए अखाड़े व सात शक्ति पुरियों की स्थापना कर उनमें महिला संतों का अभिषेक आदि की घोषणाओं के कारण नया विवाद उठा।
वर्ष 2001 में नकली स्वयंभू शंकराचार्यों व महामंडलेश्वर के विरोध में अखाड़ों द्वारा मेला प्रशासन की ओर से उन्हें भूमि आवंटित करने का विरोध किया गया। मेले में होटल खोले जाने का विरोध हुआ और बंद कराया गया।

नदी के तट पर खींचता विश्वास


यह घटना (समुद्र मंथन-कुंभ प्राप्ति) मन की प्रवृत्ति दर्शाती है। हमारे मन में अच्छी बातें सोचने वाला भगवान तथा बुरी बाते सोचने वाला दानव है अर्थात अच्छाई और बुराई दोनों हैं। हमारी आत्मा जब अध्यात्म के अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ने लगती है तो दूसरा मन उसे रोकने की कोशिश करता है। कुंभ का मतलब है, स्वयं का संपूर्ण ज्ञान जिसने भगवान रूपी अमृत धारण किया हुआ है। वह हमारी रक्षा करता है। चंद्र वैश्विक मन तथा गुरू वैश्विक ज्ञान का प्रतीक है। संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का यह साधन है। इसलिए कुंभ यानी आत्मा द्वारा संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जो हमें आनंदमय भगवान की ओर ले जाता है।
आदिशंकराचार्य (युधिष्ठिर संवत 2639 गत कालि 2593)

और फिर कुंभ मेला आया। मेरे लिए एक खास मौका था। मैंने पवित्रता या आध्यात्मिकता, यात्री के रूप में खोजने की कभी कोशिश नहीं की पर सत्रह लाख लोग एक साथ सम्मोहित नहीं हो सकते।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा से

अपने ही शहर इलाहाबाद में या हरिद्वार के स्नानों में या कुंभ मेले में मैं जाता और देखता हूं कि वहां लाखों आदमी गंगा नहाने के लिए आते हैं उसी तरह जिस तरह कि उनके पुरखे सारे हिंदुस्तान से हजारों बरस पहले आते रहे हैं। चीनी यात्रियों के तेरह सौ बरस पहले के इन मेलों के बयानों को याद करता हूं। उस समय भी ये मेले बड़े प्राचीन माने जाते थे और कब से इनका आरंभ हुआ। यह कहा नहीं जा सकता। मैंने सोचा कि यह भी कितना गहरा विश्वास है जो हमारे देश के लोगों को अनगिनत पीढ़ियों से इस मशहूर नदी की ओर खींचता रहा है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू

लार्ड लिनलिथगो 1936 से 43 तक भारत के ब्रिटिश वायसराय थे। उन्होंने सन् 1942 में लगे कुंभ मेले का भ्रमण करना चाहा। उन्होंने महामन पं. मदनमोहन मालवीय के साथ हवाई जहाज में बैठकर ऊपर से मेले का निरीक्षण किया। मेले में जनसमूह का जो सागर उमड़ा था, उसे देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने मालवीय जी से प्रश्न किया-मालवीय जी इस स्थान पर एकत्रित होने के लिए जो निमंत्रण भेजे गए होंगे। उसमें काफी धनराशि लगी होगी। आपका अंदाजा क्या है कि इसके संगठनकर्ताओं को कितना खर्च करना पड़ा होगा। मालवीय जी ने हंसकर जवाब दिया- सिर्फ दो पैसे।

लॉर्ड लिनलिथगो ने कहा कि पंडित जी, क्या आप मजाक तो नहीं कर रहे हैं। मालवीय जी ने अपनी जेब से एक पंचांग निकाला और कहा कि इसकी कीमत दो पैसे है। इसी से लोग जानकारी प्राप्त कर लेते हैं कि कौन सा खास दिन और समय मेले के लिए पवित्र होगा और स्नान के लिए यहां अपने आप चले आते हैं। प्रत्येक आगंतुक को व्यक्तिगत निमंत्रण भेजकर यहां बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती।
महामना मदन मोहन मालवीय का अभिमत