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जल चेतना - तकनीकी पत्रिका, जनवरी 2015
गंगा जल में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखकर गंगा कार्य योजना शुरू करने का विचार सर्वप्रथम भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी के मन में आया था। इसके लिये सन 1979-80 में एक विस्तृत सर्वेक्षण की योजना बनाई गई। इस सर्वेक्षण के बाद केन्द्रीय प्रदूषण-नियंत्रण बोर्ड द्वारा दो विस्तृत प्रतिवेदन तैयार किये गए। ये ही दो प्रतिवेदन गंगा के प्रदूषण-नियंत्रण हेतु गंगा कार्य योजना (गंगा एक्शन प्लान) के आधार बने।
गंगा भारत की सबसे प्रमुख नदी है। यह भारत की राष्ट्रीय नदी भी घोषित की गई है। इस नदी के किनारे देश के कई प्राचीन नगर स्थित हैं जिनमें प्रयाग, काशी तथा पटना इत्यादि शामिल हैं। इस नदी द्वारा भारत के 11 राज्यों में लगभग 40 प्रतिशत लोगों को जल की आपूर्ति की जाती है।
वर्तमान समय में गंगा काफी प्रदूषित नदी मानी जाती है। लगभग 2.9 अरब लीटर मल जल (सीवेज) प्रतिदिन आकर गंगा में मिल रहा है जिसमें लगभग 20 करोड़ लीटर मल जल सिर्फ वाराणसी में इस नदी में शामिल हो रहा है। गंगा नदी 29 ऐसे बड़े नगरों से होकर गुजरती है जिनकी जनसंख्या एक लाख से अधिक है। जबकि इसके किनारे 23 ऐसे नगर बसे हुए हैं जिनकी जन संख्या 50 हजार से एक लाख के बीच है। इसके अलावा 48 छोटे-छोटे शहर भी गंगा के किनारे बसे हुए हैं। गंगा में मिलने वाला अधिकांश मल जल इन्हीं नगरों के आवासीय मकानों से निकलकर आता है। इसके अलावा गंगा किनारे चमड़े के कई कारखाने, रासायनिक यौगिकों को तैयार करने वाले कारखाने, कपड़े के कारखाने, शराब के कारखाने, कसाई खाने (स्लाॅटर हाउस) तथा अस्पताल भी बने हुए हैं।
इनसे निकलने वाला मल जल तथा अन्य प्रकार की गन्दगी भी गंगा में मिलती रहती है। हालांकि इन कारखानों द्वारा प्रवाहित किया जाने वाला मल जल गंगा में मिलने वाले कुल मल जल का सिर्फ 12 प्रतिशत है, परन्तु यह अधिक विषैला है तथा गंगा में स्नान करने वाले लोगों तथा इसमें रहने वाले जलचरों के लिये अधिक घातक है। सन 1854 में हरिद्वार में गंगा पर एक बाँध बनाया गया जिसके कारण इसकी धारा की गति में काफी ह्रास आ गया। इसके कारण भी प्रदूषण-स्तर बढ़ता गया।
गंगा जल में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखकर गंगा कार्य योजना शुरू करने का विचार सर्वप्रथम भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी के मन में आया था। इसके लिये सन 1979-80 में एक विस्तृत सर्वेक्षण की योजना बनाई गई। इस सर्वेक्षण के बाद केन्द्रीय प्रदूषण-नियंत्रण बोर्ड द्वारा दो विस्तृत प्रतिवेदन तैयार किये गए। ये ही दो प्रतिवेदन गंगा के प्रदूषण-नियंत्रण हेतु गंगा कार्य योजना (गंगा एक्शन प्लान) के आधार बने। अप्रैल 1985 में मंत्रिमंडल द्वारा गंगा कार्य योजना को शत-प्रतिशत केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रायोजित घोषित किया गया।
गंगा कार्य योजना सम्बन्धी नीति निर्धारण तथा उससे जुड़े कार्यक्रम की देख-रेख तथा पर्यवेक्षण हेतु सन 1985 में ही भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण (सेंट्रल गंगा अथॉरिटी संक्षेप में सी.जी.ए.) का गठन किया गया। आगे चलकर सन 1985 में ही इस प्राधिकरण का नया नामकरण किया गया ‘राष्ट्रीय नदी सरंक्षण प्राधिकरण (नेशनल रीवर कंजरवेशन अथॉरिटी संक्षेप में एन.आर.सी.ए.) जिसके चेयरमैन पदेन (एक्स औफिसियो) प्रधानमंत्री बनाए गए। सन 1985 में ही पर्यावरण विभाग के एक अंग के रूप में ‘गंगा परियोजना निदेशालय (गंगा प्रोजेक्ट डाइरेक्टोरेट या संक्षेप में जी.पी.डी.) का गठन किया गया जिसे केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण के निर्देशन में गंगा कार्य योजना को कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। सन 1994 में ‘गंगा परियोजना निदेशालय का नाम बदलकर नया नामकरण किया गया ‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय (नेशनल रीवर कंजर्वेशन डाइरेक्टोरेट या संक्षेप में एन.आर.सी.डी.)।
गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण (फर्स्ट फेज) के कार्यान्वयन की शुरुआत 14 जनवरी, 1986 को हुई तथा 31 मार्च, 2000 को इसे समाप्त घोषित किया गया। इस कार्य योजना का मुख्य उद्देश्य था आवासीय मकानों तथा कई प्रकार की औद्योगिक इकाइयों से निकलकर गंगा में मिलने वाले मल जल (सीवेज) तथा कुछ विषैले रासायनिक प्रदूषकों को रोकना, उनके रास्ते को बदलना तथा रासायनिक उपचारण (कैमिकल ट्रीटमेंट) द्वारा उसमें मौजूद प्रदूषकों को अलग कर देना जिससे सिर्फ शुद्ध जल ही गंगा में मिल सके।
मल जल उपचारण (सीवेज ट्रीटमेंट) के लिये नई प्रौद्योगिकी का उपयोग किये जाने की योजना बनाई गई। ऐसी प्रौद्योगिकी में प्रमुख है - अप फ्लो अनऐरोबिक स्लज ब्लैंकेट (जिसे संक्षेप में यू.ए.एस.बी. कहा जाता है)। साथ ही मल जल आने वाले रास्ते में वृक्षारोपण की योजना भी बनाई गई जिससे मल जल का अधिकांश भाग इन वृक्षों द्वारा शोषित कर लिया जाये। इसके अलावा कोमल आवरण वाले (शाॅफ्ट शेल्ड) कछुओं के पुनर्वास का लक्ष्य भी रखा गया। क्योंकि इस प्रकार के कछुए प्रदूषण को दूर करने में काफी सहायक पाए गए हैं। इस कार्य योजना में गंगा का प्रदूषण दूर करने के अलावा मीथेन उत्पादन के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त करने तथा मछली पालन का भी लक्ष्य रखा गया।
प्रथम चरण (फर्स्ट फेज) में कुल 69 परियोजनाओं पर कार्य पूरा किया गया। इस दौरान लगभग दस लाख लीटर मल जल प्रतिदिन या तो शुद्ध किया गया अथवा रास्ता बदलकर उसे गंगा में मिलने से रोका गया। प्रथम चरण के कार्यान्वयन पर लगभग नौ अरब रुपए खर्च किये गए। राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण द्वारा गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण में किये गए कार्यों के दौरान आने वाली विभिन्न समस्याओं तथा उस दौरान प्राप्त किये गए अनुभवों का आकलन तथा मूल्यांकन किया गया जिससे कि इन अनुभवों का लाभ दूसरे चरण के कार्यान्वयन के दौरान उठाया जा सके।
भारत सरकार द्वारा गंगा कार्य योजना के दूसरे चरण (सेकेंड फेज) की स्वीकृति कई चरणों में दी गई जिसकी शुरुआत सन 1993 में ही हो गई थी तथा बहुत बाद तक चलती रही। गंगा कार्य योजना के इस चरण में गंगा के अलावा उसकी सहायक नदियों को भी शामिल किया गया जिनमें प्रमुख थीं- यमुना, दामोदर तथा महानंदा। प्रदूषण नियंत्रण के लिये जो तरीके अपनाए जाने की योजना बनाई गई उनमें शामिल थे - (1) मल जल को या तो रास्ते में रोकना अथवा उसका रास्ता बदल देना, (2) मल जल के उपचारण (ट्रीटमेंट) हेतु उपकरणों की स्थापना, (3) कम खर्च की सेनिटेशन सुविधा का निर्माण तथा (4) विद्युत शवदाह गृहों या विकसित किस्म के काष्ठ शवदाह सुविधा का निर्माण।
आजकल गंगा कार्य योजना के दूसरे चरण पर काम चल रहा है। अब तक लगभग दस अरब से अधिक रुपए खर्च किये जा चुके हैं तथा 1064 एम.एल.डी. (मिलियन लीटर पर डे) मल जल के उपचारण (ट्रीटमेंट) की सुविधा का निर्माण पूरा किया जा चुका है। सन 2006 में गंगा जल के प्रदूषण के माप सम्बन्धी एक प्रतिवेदन तैयार किया गया जिसमें बताया गया कि प्रति 100 मिली गंगा जल में फीकल कोलिफाॅर्म 10 करोड़ एम.पी.एन. (मोस्ट प्रोबेबुल नंबर) तथा बी.ओ.डी. (बायोलाॅजिकल आॅक्सीजन डिमांड) 40 मिलीग्राम प्रतिलीटर है।
गंगा कार्य योजना के दूसरे चरण से सम्बन्धित एक परियोजना की स्वीकृति भारत सरकार की कैबिनेट कमेटी आॅन इकॉनोमिक अफेयर्स द्वारा 10 जून, 2010 को दी गई थी। यह परियोजना वाराणसी में जापान इंटरनेशनल काॅपरेशन एजेंसी के सहयोग से नेशनल गंगा रीवर बेसिन अथॉरिटी की देख-रेख में चलाई जा रही है। इस परियोजना पर कुल 496.90 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। इस खर्च का 85 प्रतिशत भाग (लगभग 427.73 करोड़ रुपए) केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा, जबकि शेष 15 प्रतिशत भाग (अर्थात 69.17 करोड़ रुपए) राज्य सरकार द्वारा इस परियोजना में प्रदूषण-नियंत्रण के साथ-साथ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाले गन्दे जल (एफ्लुएंट) का उपयोग सिंचाई हेतु किया जाएगा।
राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (नेशानल गंगा रीवर बेसिन अथॉरिटी) के निर्देशन में विश्व बैंक की सहायता से गंगा के प्रदूषण नियंत्रण हेतु चलने वाली एक परियोजना की स्वीकृति सन 2011 में दी जा चुकी है जिस पर लगभग 70 अरब रुपए खर्च आने का अनुमान लगाया गया है। इसमें विश्व बैंक द्वारा एक अरब अमरीकी डाॅलर की सहायता प्रदान की जाएगी। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य है प्रदूषण नियंत्रण हेतु बुनियादी ढाँचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) का निर्माण। विश्व बैंक द्वारा स्वीकृत उपर्युक्त राशि में से 80.1 करोड़ डाॅलर इंटरनेशनल बैंक फाॅर रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट द्वारा कर्ज के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा। जबकि शेष 19.9 करोड़ अमरीकी डाॅलर इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा प्रदान किया जाएगा। इस परियोजना के अन्तर्गत केन्द्र तथा राज्य स्तर पर संस्थानीय ढाँचे को निर्मित करने तथा उसे मजबूती प्रदान करने पर जोर दिया जाएगा। साथ ही एक गंगा ज्ञान केन्द्र (गंगा नोलेज सेंटर) की स्थापना की जाएगी।
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये हाल में समाज के कुछ जागरूक लोगों ने सरकार का ध्यान आकर्षित करने का सशक्त प्रयास किया है। सन 2011 के प्रारम्भ में स्वामी निगमानंद सरस्वती नामक एक सन्त ने हरिद्वार जिले में गंगा के आस-पास गैर कानूनी उत्खनन (माइनिंग) को रोकने हेतु आमरण अनशन किया। इस अनशन के कारण जून 2011 में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके आश्रम के प्रधान सन्त स्वामी शिवानंद ने 25 नवम्बर, 2011 को अनशन शुरू किया जो 11 दिनों तक चला। इससे उत्तराखण्ड सरकार हरकत में आई और हरिद्वार जिले में गैर कानूनी उत्खनन पर रोक लगा दी गई।
आई.आई.टी. कानपुर के भूतपूर्व प्राध्यापक डाॅ. जी.डी. अग्रवाल ने भी गंगा प्रदूषण को रोकने हेतु काफी लम्बे समय तक अनशन किया जिसका समर्थन अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता ने किया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने डाॅ. जी.डी. अग्रवाल की माँग पर विचार करने तथा आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया।
सन 2014 के संसदीय चुनाव के बाद जब श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारत के प्रधानमंत्री का पद सम्भाला तो उन्होंने गंगा की सफाई तथा उसके बढ़ते प्रदूषण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने का निश्चय किया। इसी उद्देश्य से ‘नमामि गंगा’ नाम की परियोजना शुरू करने की घोषणा जुलाई 2014 में की गई। इसके लिये 10 जुलाई, 2014 को वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी द्वारा प्रस्तुत किये गए बजट में 6300 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान रखा गया। इस रकम में से 2037 करोड़ रुपए गंगा की सफाई तथा प्रदूषण-नियंत्रण हेतु खर्च किये जाएँगे, तथा 4200 करोड़ रुपए नेविगेशन कॉरीडोर के विकास पर खर्च किये जाएँगे। इसके अलावा लगभग 100 करोड़ रुपए घाटों के विकास तथा उसके सौन्दर्यीकरण पर खर्च किये जाएँगे। रकम जुटाने हेतु ‘एन.आर.आई. फंड’ बनाया जाएगा जिसके अन्तर्गत विदेशों में कार्यरत भारतीयों से धन प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा। ‘नमामि गंगा’ परियोजना को लागू करने की दिशा में प्रथम कदम के रूप में गंगा किनारे स्थापित 48 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश जारी किया गया है।
सन्दर्भ
(1) वन इंडिया न्यूज, 10 जून, 2010
(2) प्रेस इनफाॅरमेशन ब्यूरो, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित सूचना, 9 अगस्त, 2011
(3) विकीपीडिया (पोल्युशन आॅफ गैंजेज)
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डॉ. विजय कुमार उपाध्याय, राजेन्द्र नगर, हाउसिंग कॉलोनी, केके सिंह कॉलोनी, पोस्ट जमगोरिया, वाया, जोघाडीह, चास, जिला बोकारो, झारखण्ड, पिनकोड- 827013