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ग्राविस, जोधपुर, मार्च 2002
खडीन खेत के किनारे सिद्ध-पाल बाँधकर वर्षा-जल को कृषि भूमि पर संग्रह करने तथा इस प्रकार संग्रहीत जल से कृषि भूमि में पर्याप्त नमी पैदाकर उसमें फसल उत्पादन करने की एक परम्परागत तकनीक है।
मरुस्थल में जल-संग्रह तकनीकों का विवरण बिना खडीन के नाम से अधूरा है। पश्चिमी राजस्थान के जल विशेषज्ञ भी इस तकनीक को जल-संग्रह की महत्त्वपूर्ण तकनीक के रूप में देखते हैं तथा इसे आज के परिप्रेक्ष्य में भी जरूरी मानते हैं। खडीन को धोरा भी कहा जाता है।
राजस्थान के थार मरुस्थलीय क्षेत्र में पानी की कमी के कारण फसलें बहुत प्रभावित होती हैं। भूमि में जल की कमी तथा भूमिगत जल की क्षारीयता के कारण यह समस्या और भी जटिल हो जाती है। ऐसे में वर्षा-जल ही शुष्क खेती का एकमात्र स्रोत है। खडीन द्वारा वर्षा-जल को रोकना, एक अतिउपयोगी तकनीक बन जाती है।
खडीन एक विशेष प्रकार की भूमि पर बनाया जाता है। इसके लिये कठोर, पथरीली तथा अत्यन्त कम ढालदार ‘जेन्टिल स्लोप’ भूमि अनुकूल रहती है। उक्त भूमि पर जब वर्षा होती है तो वर्षा-जल खडीन के अन्दर इकट्ठा हो जाता है, जो सामान्यतया एक या दो फसलों के लिये पर्याप्त नमी प्रदान करता है।
सूखा पड़ने की स्थिति में भी खडीन भूमि पर कुछ न कुछ फसल व चारे की पैदावार अवश्य हो जाती है। अध्ययनों द्वारा यह साबित हो चुका है कि खडीन काश्तकार, खडीन बिन काश्तकार से बेहतर स्थिति में जी रहे हैं।
ऐसा कहा जाता है कि खडीन सर्वप्रथम पन्द्रहवीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा जैसलमेर क्षेत्र में बनाई गई। उस दौरान पालीवाल ब्राह्मणों को जमीन खडीन बनाने के लिये दी जाती थी तथा उसका स्वामित्व राजा के पास ही होता था। उस जमीन पर की गई फसल का चौथा हिस्सा राजा को दिया जाता था। यह तकनीक इसके बाद जोधपुर, बाडमेर और बीकानेर के क्षेत्रों में भी अपनायी गई।
इस तकनीक के समान दुनियाँ में और भी प्रयोग हुए हैं, जैसे कि उर लोग (आज के अरब) 4500 ई.पू. में और बाद में मध्य पूर्व के नेबेतियन। इसी तरह करीब 4500 वर्ष पूर्व नेगेव मरुस्थल के लोग तथा 500 वर्ष पूर्व दक्षिण पश्चिमी कोलोराडो के लोग इसे प्रयोग में लाते थे।
खडीन एक क्षेत्र विशेष पर बनने वाली तकनीक है जिसे किसी भी आम जमीन पर नहीं बनाया जा सकता। बढ़िया खडीन बनाने के लिये अनुकूल जमीन में दो प्राकृतिक गुणों का होना आवश्यक है।
1. ऐसा आगोर (जलग्रहण - कैचमेंट क्षेत्र) जहाँ भूमि कठोर, पथरीली, एवं कम ढालदार हो, जिससे मिट्टी की मोटी पाल बान्ध कर अधिक मात्रा में जल को रोका जा सके।
2. खडीन बांध के अन्दर ऐसा समतल क्षेत्र होना चाहिए जिसकी मिट्टी फसल उत्पादन के लिये उपयुक्त हो।
खडीन एक अर्द्ध चन्द्राकारनुमा कम ऊँचाई (5 फीट से 8 फीट) वाला मिट्टी का एक बाँध है जो ढाल की दिशा के विपरीत बनाया जाता है, जिसका एक छोर वर्षा-जल प्राप्त करने के लिये खुला रहता है। किसी भी खडीन को बनाने में तीन तत्व महत्त्वपूर्ण होते हैं:- 1. पर्याप्त जलग्रहण क्षेत्र, 2. खडीन बाँध तथा 3. फालतू पानी के निकास के लिये उचित स्थान पर नेहटा (वेस्ट वीयर) बनाना तथा पूरे पानी को बाहर निकालने के लिये खडीन की तलहटी में पाइप लाइन (स्लूस गेट) लगाना।
सामान्य समय में मोखा बन्द रखा जाता है। स्लूस गेट (निकास) का उपयोग उस समय अत्यन्त आवश्यक हो जाता है, जब वर्षाजल इकट्ठा हो जाए और फसल को पानी की आवश्यकता नहीं हो। यदि उस समय पानी को नहीं निकाला जाए तो फसल सड़ जाने का खतरा रहता है। खडीन 150 मी. से 1000 मी. तक लम्बा हो सकता है। इसका आकार साधारणतया उस क्षेत्र की औसर वर्षा, आगोर का ढाल तथा भूमि की गुणवत्ता पर ही निर्भर करता है।
खडीन बाँध (पाल) के ऊपर (टॉप) की चौड़ाई 1 से 1.5 मीटर तक तथा बाँध की दीवार में 1 :1.5 का ढाल होना चाहिए। खडीन का आकार (क्रास सेक्शन) नीचे दर्शाया गया है।
खडीन से लाभः-
1. सामान्य वर्षा होने पर खडीन क्षेत्र में अनाज तथा चारे की फसलों का उत्पादन बिन खडीन वाली भूमि से 2.5 से 3.5 गुना अधिक होता है।
2. कम वर्षा होने पर भी खडीन क्षेत्र में चारे का उत्पादन अवश्य हो जाता है, जबकि बिना खडीन वाले क्षेत्र में उत्पादन शून्य हो जाता है।
3. खडीन क्षेत्र में पानी के साथ बारीक तथा उपजाऊ मिट्टी के कण आकर जमा होते रहते हैं। लम्बे समय तक नमी बने रहने के कारण सूक्ष्म जीव क्रिया (माइक्रोबियल एक्टीविटी) तेज हो जाती है। अतः खडीन क्षेत्र की मिट्टी अधिक उपजाऊ हो जाती है।
4. खडीन क्षेत्र में मिट्टी में पर्याप्त नमी होने के कारण बड़ी संख्या में झाड़ियाँ तथा पेड़ तेजी से विकसित हो जाते हैं।
5. खडीन क्षेत्र की विद्युत सुचालकता, बिन खडीन वाली भूमि से कम होती है।
6. खडीन क्षेत्र में भूजल की क्षारियता, बिन खडीन वाली भूमि के भूजल की क्षारियता से कम होती है।
7. आगोर से जानवरों का मल भी बह कर खडीन क्षेत्र में आ जाता है, जो खाद के रूप में भूमि की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करता है।
खडीन के संबंध में सावधानियाँ एवँ कुछ महत्त्वपूर्ण बातें
1. खडीन तकनीक के अच्छे परिणाम पाने के लिये आगोर में पेड़ पौधे लगवाने चाहिए, जिससे आगोर की मिट्टी का कटाव रुक कर कम से कम मिट्टी बह कर खेती वाले क्षेत्र में आ पाए।
2. पालतू जानवरों को कुछ हद तक आगोर क्षेत्र में चरने देना चाहिए, इससे उनके मल जो बहकर खेती क्षेत्र में आते हैं, खाद का काम करते हैं।
3. कृषि क्षेत्र को बराबर समतल करते रहना चाहिए, जिससे पानी समान रूप से सब ओर वितरित हो सके, अन्यथा पानी किसी कोने में इकट्ठा हो जाता है और पानी का उपयोग सीमित हो जाता है।
4. कई बार तेज वर्षा से बहाव के साथ रेतीली मिट्टी और कंकड़ बह कर खडीन क्षेत्र में आ जाते हैं। इसे समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए।
5. जमीन की क्षारियता को भी समय-समय पर मापना चाहिए। अगर क्षारियता बढ़ रही हो तो पहली एक दो वर्षा के पानी को खडीन क्षेत्र से बाहर निकास द्वारा निकाल देना चाहिए।
6. खडीन बाँध को भी ठीक हालात में रखना चाहिए। इसकी ऊँचाई 1.5 मी.से कम नहीं होनी चाहिए। खडीन बाँध पर पौधे उगाने चाहिए।
7. खडीन बनाते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि दूसरों के खेत का वर्षा-जल खडीन में न आयें, जिससे काश्तकारो में पानी के बँटवारे को लेकर मनमुटाव न हो।
8. खडीन क्षेत्र में जरूरत से अधिक पानी आने पर निष्कासित कर देना चाहिए, अन्यथा अधिक जल भी फसलों को खराब कर सकता है।
9. असावधानी, बाढ़ व बाँध की देखभाल नहीं होने से खडीन बाँध में दरारें आ जाती है। इसकी प्रतिवर्ष वर्षा से पहले मरम्मत कर लेनी चाहिए।
10. काफी स्थानों पर यह पाया गया है कि खडीन बाँध के दूसरी ओर कुंआ खोदा जाता है। इससे पीने और अन्य घरेलू कामों के लिये तो पानी उपलब्ध होता ही है, इसके साथ ही खडीन क्षेत्र की क्षारीयता भी कम होती है।
खडीन जो कि धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे थे, जोधपुर स्थित ग्रामीण विकास विज्ञान समिति (ग्राविस) ने इसके पुनरुत्थान के लिये सराहनीय और सार्थक प्रयास किए हैं। ग्रामीण विकास विज्ञान समिति ने अब-तक जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर और बीकानेर क्षेत्रों में 1500 से अधिक खडीनों का निर्माण किया है। इससे न केवल खेती के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई बल्कि लोगों की भूजल पर निर्भरता भी कम हुई है।
ग्राविस ने अपने अनुभवों के आधार पर पक्का नेहटा तथा तलीय निकास (स्लूस गेट) का निर्माण खडीनों में किया है। जिससे जल नियंत्रण एवं खडीन की सुरक्षा बढ़ी है।
साथ ही ग्राविस ने यह भी पाया है कि खडीन की पाल की ऊँचाई, चढ़ती हुई ढलान के साथ कम करके निर्माण लागत को कम किया जा सकता है।
नाडी के बारे में और जानकारी के लिये निम्न संस्था से सम्पर्क करें -
ग्राविस, ग्रामीण विकास विज्ञान समिति 3/458, मिल्कमैन कॉलोनी, पाल रोड, जोधपुर-342008 (राजस्थान), फोन - 0291 - 741317, फैक्स - 0291 - 744549, ईमेल - publications@gravis.org.in, Visit us - www.gravis.org.in