कैसा जमाना आया, पानी बिक रहा है

Submitted by Hindi on Wed, 12/23/2009 - 09:45

-दिलीप बीदावत

पानी कितना अमूल्य धरोहर है, यह बात तो मरू वासियों के जहन में सदियों से बैठी हुई है। लेकिन अपनी प्यास बुझाने के लिये पानी का भारी मूल्य चुकाना पड़ेगा, यह कभी यहां के लोगों ने सोचा नहीं था। पानी की एक-एक बूंद के लिये मोहताज थार के रेगिस्तान में पानी के करोड़ों के कारोबार का कथन अविश्वसनीय लग सकता है, किंतु यह बात सत्य है।

मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर और पाली जिले में पानी के क्रय-विक्रय का करोड़ों का कारोबार होता है। निजी टयूबवैल तथा ट्रेक्टर-हेंकर मालिक इस व्यवसाय से प्रति वर्ष करोड़ों रुपये कमाते हैं। सूखे जैसी स्थिति में इन पानी व्यवसाइयों की कमाई दोगुनी हो जाती है।

रेगिस्तान में पेयजल संकट से जूझने वाले शहरों, कस्बों तथा ग्रामीण इलाकों में आम जन के लिये पीने का पानी जहां एक बड़ा संकट है वहीं इन व्यवसाइयों के लिये आमदनी का जरिया बना हुआ है। एक तरफ सरकार का दावा है कि वह सभी गांवों में पीने का पानी उपलब्ध करा रही है। जबकि गांवों में सरकारी पेयजल योजनाएं ठप्प पड़ी है। गांवों में लोगों को महंगी दर पर पानी खदीदना पड़ रहा है।

ट्रैक्टर के पहियों पर पानी के करोड़ों के कारोबार का यह धन्धा मरूस्थलीय जिले जोधपुर, बाड़मेर तथा पाली के सैकड़ों पेयजल संकट से जूझ रहे तथा सरकारी पेयजल योजनाओं की उदासीनता वाले गांवों, कस्बों, ढाणियों में निर्बाध फलफूल रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि सरकार द्वारा प्रति वर्ष पेयजल योजनाओं पर पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी रेगिस्तान के हजारों गांवों में पेयजल संकट यथावत है जो पानी व्यापारियों के लिये वरदान साबित हो रहा है।

मानसून मेहरबान होता है तो वर्ष के चार महीनों में पानी की इतनी मारामारी नहीं होती। लेकिन शेष आठ माह में पेयजल संकट से ग्रस्त गांवों में रहने वाले लोगों को पानी खरीद कर ही पीना पड़ता है। गर्मी के मौसम में ट्रैक्टरों से पानी विपणन का कार्य जहां पीक पर होता है वहीं अकाल के समय में पानी के दाम बढ़कर दोगुने हो जाते हैं। कुछ ऐसे गांव और ढाणियां भी है जहां इस व्यवसाय में तेजी लाकर मुनाफा कमाने वाले ट्रेक्टर टेंकर मालिक सरकारी पेयजल योजनाओं तक को ठप्प करवा देते हैं। स्थानीय कर्मचारियों की मिलीभगत से गांवों की सप्लाई को कुछ समय तक बाधित कर देते हैं।

जोधपुर व बाड़मेर जिले के सुरजबेरा, आड़ागाला, डाबड़ भाटियान, दुर्गापुरा, बाघाबास गांवों में ट्रैक्टर वाले सप्लाई को बड़े योजनाबद्ध तरीके से बाधित करते हैं कि शिकायत करने पर भी पकड़ में नहीं आते। वे पानी सप्लाई करने वाले स्थानीय कर्मचारियों से इस प्रकार की तकनीकी गड़बड़ी करवाते हैं कि जल विभाग के उच्चाधिकारी भी कुछ नहीं कर पाते हैं। विद्युत मोटर में खराबी कर देना, पाइप लाइन को तोड़ देना आदि दर्जनों ऐसी तकनीकी गड़बड़ी के प्वाइंट हैं जिनके खराब होने से कुछ रोज के लिये सप्लाई बाधित हो जाती है।

अमीर हो या गरीब, पश्चिमी रेगिस्तान के पेयजल संकटग्रस्त गांवों में पानी सभी को खरीदना पड़ता है। तीन से चार हजार भराव क्षमता वाले एक ट्रैक्टर टेंकर की कीमत पानी उपलब्धता वाले स्त्रोत से दूरी, पानी के संकट की गंभीरता तथा पानी की गुणवत्ता के आधार पर 300 रुपये से लेकर अधिकतम 800 रुपये तक होती है।

गर्मी के मौसम एवं अकाल की स्थिति में यह कीमत प्रति टैंकर 100 रुपये से 300 तक बढ़ जाती है। पानी के उपभोग की कंजूसी के बाद भी एक सामान्य पांच-छ: सदस्यों एवं एक-दो पशु रखने वाले परिवार को प्रति माह एक टेंकर पानी खरीदना पड़ता है। प्रति माह पानी की उपलब्धता के लिये 300 से 800 रुपये प्रति परिवार खर्च की जाने वाली यह राशि शहरों में सरकारी पेयजल योजनाओं से पानी उपभोग करने वाले परिवारों से कई गुना अधिक है जबकि पानी कई गुना कम मिलता है।

तीन से चार हजार लीटर पानी की कीमत 300 से 800 रुपये खर्च करने वाले परिवार के प्रति सदस्य को प्रतिदिन 20 लीटर पानी उपभोग के लिये हिस्से में आता है। दूसरी तरफ इसी रेगिस्तानी शहर जोधपुर में 100 से 150 रुपये प्रतिमाह खर्च करने पर शहरी लोगों को सरकारी योजनाओं से असीमित पानी उपलब्ध होता है।

गांव सुरजबेरा की झम्मुदेवी, हेमी देवी, गौमती देवी ने बताया कि मानसून के 4 महीनों में हम अपने टांकों में बरसात का पानी एकत्रित कर काम चलाते हैं। इसके अतिरिक्त 08 महीने में प्रतिमाह एक टेंकर पानी खरीदना ही पड़ता है। प्रतिमाह 300 से 400 रुपये यानी वर्ष में लगभग चार हजार रुपये का पानी खरीदना पड़ता है।

पश्चिमी रेगिस्तान में सतही जल, पारंपरिक जल स्त्रोतो जैसे तालाब, बेरी, टांकों, झीलो से उपलब्ध होता है। इन स्त्रोतो में बरसात का पानी संग्रह करके रखा जाता है। भू-जल के रूप में कुछ स्थानों पर कुंओं, टयूबवैलों से पीने योग्य गुणवत्ता वाला पानी उपलब्ध होता है। पीने योग्य भूजल वाले क्षेत्रों में अधिकतर किसानों के निजी टयूबवैल तथा कुंए हैं। किसान इस पानी का उपयोग कृषि सिंचाई के अतिरिक्त ट्रेक्टर-टेंकर वालों को विक्रय करते हैं। किसान एक ट्रैक्टर टेंकर की भराई की कीमत 50 रुपये से 150 रुपये के बीच वसूलते हैं। इस प्रकार निजी टयूबवैल व कुंओं के मालिक भूजल का दोहन कर लाखो की कमाई करते हैं, वहीं दूसरी तरफ ट्रैक्टर-टेंकर मालिक उसी पानी को गांवों तक परिवहन कर 300 से 800 रुपये तक वसूलते हैं।

मानसून के मौसम में ट्रेक्टर हेंकर मालिक पारंपरिक जल स्त्रोतो से बिना किसी रुकावट के पानी उठाकर बेचते हैं। यहां उन्हें किसी प्रकार का शुल्क भी नहीं देना पड़ता। इस प्रकार पानी के यह व्यवसायी पारंपरिक जल स्रोतों को भी जल्दी खाली कर देते हैं जिससे गांवों में पानी का संकट बढ़ जाता है। ट्रैक्टर टेंकर मालिक आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक रूप से इतने प्रभावी हैं कि इन्हें पारंपरिक जल स्त्रोतो से पानी का दोहन करने से रोकने की किसी की हिम्मत नहीं होती।

बाड़मेर जिले के सिणधारी ब्लाक के 70 परिवारों की आबादी वाले गांव डाबड़भाटियान में लोग वर्ष भर में आठ माह ट्रैक्टरों से पानी खरीदते हैं। गांव में कोई भू-जल स्त्रोत नहीं है तथा सतही जल के रूप में एक छोटा तालाब है जिसमें वर्षा का पानी एकत्रित होता है। यह गांव सरकारी पेयजल योजना से जुड़ा है। गांव में पानी वितरण के लिये एक पाइप लाइन बिछाई गई है, लेकिन आज तक उसमें पानी सप्लाई नहीं हुआ है।

गांव के लगभग 40 परिवारों ने घरों में निजी टांके बना रखे हैं जिनमें बरसात का पानी एकत्रित कर तीन-चार माह गुजारा चलाते हैं तथा शेष महीनों में उन्हें पानी खरीदना पड़ता है। गांव के तालाब में बरसात के पानी से गांव का पांच-छ: माह गुजारा चल जाता है लेकिन टैक्टर वाले एक माह में ही पानी उठा कर बेच देते हैं।

यहां से 10 किलोमीटर दूर कौसले गांव हैं जहां कुछ निजी टयूबवैल हैं। यहां से ट्रैक्टर पानी भर कर गांव तक पहुंचाते हैं। एक ट्रैक्टर टेंकर की कीमत 450 रुपये है। गर्मी व अकाल में टेंकर की कीमत बढ़कर 500 से 600 रुपये हो जाती है। इस प्रकार इस छोटी सी बस्ती में रहने वाले 70 परिवार सालाना 5 से 6 लाख का पानी खरीदते हैं।

डाबड़भाटियान गांव के निवासी नरसिंगराम, तेजाराम, चूनाराम, तेजूदेवी, मोहरांदेवी व प्रयास संस्थान सिधाणरी के कार्यकर्ता वागाराम दयाल का कहना है कि गांव के अधिकांश पुरुष गुजरात में मजदूरी पर चले जाते हैं। गांव में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार की पेयजल योजना वर्षों से ठप्प पड़ी है। ऐसे में पानी की उपलब्धता के लिये प्रति परिवार सात से आठ हजार रुपये सालाना खर्च करने पड़ते हैं। आस-पास के गांवों में सैकड़ों ट्रैक्टर वाले हैं। हमारे गांव से एक टेंकर वाला सालाना चार से छ: लाख रुपये की आय प्राप्त करता है।

बाड़मेर जिले के बालोतारा ब्लाक के गांव सूरजबेरा, गोलिया, रिछौली, पाटियाल आदि दर्जनों गांवों में पेयजल संकट है तथा यहां भी पानी की आपूर्ति ट्रैक्टरों के पहियों पर होती है। 200 घरों की आबादी वाला गांव सूरजबेरा भी सरकारी योजना से जुड़ा है। लाखों रुपये पानी की तरह बहा कर बिछाई गई पाइप लाइन से गांव को एक दिन भी पानी की सप्लाई नहीं हुई है।

गांव से 15 किलोमीटर दूर भाखरसर (पाटौदी) में पांच-छ: निजी टयूबवैल हैं जहां से प्रति दिन सैकड़ों टेंकर भर कर आस-पास के गांवों में पानी सप्लाई करते हैं। यहां भी एक ट्रैक्टर-टेंकर की कीमत जल स्त्रोत से दूरी एवं दुर्गम रास्तों के आधार पर 400 से 600 रुपये प्रति टेंकर है। जबकि 20 किलोमीटर दूर पाटियाल में पानी पहुंचाने की टेंकर की कीमत 700 से 800 रुपये है।

आइडिया संस्था बालोतरा के सामाजिक कार्यकर्ता भगवान चंद का कहना है कि गांव में पेयजल वितरण में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। संस्था ने कुछ गरीब परिवारों के घरों में टांकों (भूमिगत जल होद) का निर्माण करवाया है जिनमें तीन से चार माह के उपभोग लायक पानी बरसात से एकत्रित हो जाता है। अकेले सुरजबेरा गांव के लोग सालाना सात से आठ लाख रुपये का पानी खरीदते हैं। दिलचस्प है कि इतनी राशि से एक नया ट्रैक्टर व टेंकर खरीदा जा सकता है।

स्वैच्छिक संस्थान आइडिया के कार्यकर्ता भगवान चंद का कहना है कि बालोतरा ब्लाक के अधिकांश गांव पेयजल संकट से ग्रसित हैं। खुद बालोतरा कस्बे में पानी टेंकरों से सप्लाई होता है। भूजल अत्यधिक खरा, लवण व फ्लोराइड युक्त है। कुछ-कुछ स्थान हैं जहां पर भूजल से मीठा पानी उपलब्ध होता है। सरकारी पेयजल योजनाएं अधिकांश गांवों में ठप्प हैं। ऐसे में गांवों के लोगों को ट्रैक्टर-टेंकरों से पानी खरीदना पड़ता है तथा अपनी आय का बहुत बड़ा हिस्सा पानी के लिये खर्च करना पड़ता है।

उन्होंने बताया कि गांव के गरीब परिवार जो टेंकर से पानी खरीदने में सक्षम नहीं हैं, उनको भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे परिवारों की महिलाएं आज भी पानी का मटका लिये मीलों दूर घूमती हैं। कुछ गरीब लोग गांव के तालाब में बनी बेरी जिसमें रिसाव से पानी एकत्रित होता है उससे एक-दो मटका पानी प्रतिदिन भर कर किसी तरह गुजर करते हैं। कुछ परिवार खारा पानी पीने को मजबूर हैं। कुछ गरीब व दलित परिवारों को तो एक मटका पानी के लिये बेगार तक करनी पड़ती है।

जोधपुर जिले के शेरगढ़ ब्लाक के गांव आड़ागाला में भूजल अत्यधिक लवणयुक्त व खारा है। गांव में एक तालाब है लेकिन कैचमेट ऐरिया नहीं होने से यह अनुपयोगी है। दलित समुदाय बाहुल्य इस गांव में काम करने वाली जय भीम विकास शिक्षण संस्था ने कुछ गरीब परिवारों के घरों में टांकों का निर्माण कराया है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस गांव के बीच से एक सरकारी पाइप लाइन गुजरती है जो आस-पास के गांवों में पानी की सप्लाई करती है।

गांव के ऊंचे टीले पर बड़ा होद बना है जहां से साई, हनीफसागर आदि गांवों को पानी सप्लाई होता है। लेकिन इस गांव के लोगों को इस पाइप लाइन से एक बूंद भी पानी सप्लाई नहीं होती। पेयजल संकट के दौरान गांव के अधिकतर बच्चे व महिलाएं होद पर चढ़कर रस्सी व बाल्टी से पानी खींच कर दो-चार मटके भर लेते हैं। गत वर्ष एक बच्चे की पानी खींचते समय होद में गिर जाने से मृत्यु हो गई थी।

गांव के कुछ परिवारों ने बताया कि गांव में एक खारे पानी का कुंआ था जिसमें जलदाय विभाग ने विद्युत मोटर लगाई थी। यह खारा पानी पशुओं के पीने व अन्य घरेलू उपयोग के काम आता था। लेकिन विधानसभा व लोकसभा के चुनावों के बाद नाराज स्थानीय नेताओं के कहने पर कुंए का विद्युत संबंध विच्छेद कर दिया गया। दो हैंडपंप लगे हैं जिनमें से खारा पानी निकलता है तथा कुछ गरीब परिवार इसे पीने के काम में लेते हैं।

गांव की लूणीदेवी, गबरीदेवी, सजनी, मूमल, गौरधानराम आदि ने बताया कि यहां से 3 किलोमीटर दूर सांई गांव में एक परिवार का निजी टयूबवैल है तथा उसी का ट्रैक्टर टेंकर है जिसकी मदद से पानी बेचा जाता है। इसके अतिरिक्त शेरगढ़ व हनुवंत नगर में पानी के स्त्रोत हैं जहां से ट्रैक्टर-टेंकर से पानी खरीदने पर 700 से 800 रुपये प्रति टेंकर कीमत अदा करनी पड़ती हैं।

मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, पाली जिले के गांवों में पानी की आपूर्ति ट्रेक्टर-टेंकरों के पहियों पर होती है। ट्रैक्टरों से पानी आपूर्ति का आलम यह है कि इन तीनों जिलों के ट्रैक्टर मालिक एक दिन के लिये ट्रैक्टरों के पहियों को ठप्प कर दें तो समूचे क्षेत्र में पानी के लिये मारामारी मच जाये। ट्रैक्टर मालिक जहां लाखों की आय कमाने से खुश है वहीं सरकार भी पेयजल आपूर्ति की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो कर राहत महसूस करती है।