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उत्तराखण्ड आज, 10 मार्च, 2016
लोहाघाट। चम्पावत नगर क्षेत्र के नौले प्राचीन धरोहर के साथ ही हमारे पूर्वजों की पर्यावरण के प्रति जागरुकता को भी दर्शाते हैं। प्रत्येक नौले के निकट किसी-न-किसी प्रजाति का वृक्ष होता है। इन नौलों/धारों के आस-पास पीपल, वट आदि के पेड़ और ऊँचाई वाले क्षेत्र में प्रयः बांज, देवदार आदि के पेड़ नजर आते हैं। हमारी परम्पराओं में जल संस्कृति के अनेक स्वरूप हैं। शायद तभी जल-संरक्षण को पारम्परिक एवं सामाहिक व्यवस्था से भी जोड़ा गया है। प्राचीन समय में बने ऐतिहासिक महत्त्व के अनेक नौले आज भी कुमाऊँ क्षेत्र में विद्यमान हैं। ये नौले वास्तु, शिल्प, संस्कृति धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था के अनुसार तत्कालीन व्यवस्था को समझने में भी सहायक हैं। कुमाऊँ में चन्द शासकों की मन्दिर स्थापत्य कला की बेजोड़ धरोहर स्थापित हैं। इन्हीं धरोहरों में से एक मन्दिर के पास बालेश्वर का नौला 12वीं सदी में चंद शासकों ने बनाया, जहाँ अन्य नौलों में भगवान विष्णु आदि देवताओं की मूर्तियाँ होती हैं किन्तु इस नौले में भगवान बुद्ध की मूर्ति है। चम्पावत नगर की उत्तर दिशा में ढकना गाँव के आगे देवदार वनों के बाद शुरू होने वाले बांज के जंगल में एक हथिया नौला आज भी स्थापत्य कला प्रेमियों के लिये आकर्षण का केन्द्र है।
जनसूची के अनुसार एक शिल्पी के माध्यम से किसी राजा ने पूर्व में कहीं पर कोई बेजोड़ रचना बनवाई थी। उस रचना को पुनः न बनाया जा सके इसलिये उस शिल्पी के दाएँ हाथ को कटवा दिया गया। शिल्पी ने एक हाथ से ही पुनः उससे अच्छी रचना के रूप में इस नौले का निर्माण किया। इस वजह से नौले का नाम एकहथिया नौला पड़ा। यह नौला आज भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, लेकिन वीरान जगह होने के कारण इस नौले की दुर्दशा हमारी धरोहरों के अस्तित्व के समापन को समझने के लिये काफी है। जनपद चम्पावत में ही लोहाघाट के समीप पाटनी गाँव में कालशन मन्दिर के समीप बना पाटन का नौला भी स्थापत्य कला का अनूठा प्रयास है। यह नौला भी 14वीं सदी के आसपास निर्मित हुआ, ऐसा बताया जाता है। पाटन के नौले के सामने की ओर भगवान विष्णु की मूर्ति, दाँयी ओर भगवान गणेश व बाँयी ओर सम्भवतः भगवान वरुण की मूर्ति काले पत्थर पर आकर्षक रूप से बनाई गई है।
लोहाघाट-चम्पावत के मध्य मानेश्वर में प्राचीन शिवालय है। यह स्थान ऊँचाई पर स्थित होने के बावजूद भी यहाँ के मन्दिर परिसर में स्वच्छ जल का एक सुन्दर नौला उपलब्ध है। कहते हैं कि पांडव जब अज्ञातवास में थे तो पांडु की श्राद्ध तिथि के दिन श्राद्ध के लिये पांडवों को मानसरोवर के जल की आवश्यकता थी। अर्जुन ने तीर चलाकर जमीन से मानसरोवर का जल उपलब्ध करा दिया। इसके अतिरिक्त जनपद चम्पावत में देखने योग्य अनेक नौले हैं। यहाँ प्रत्येक स्थान पर कोई-न-कोई नौला प्रसिद्ध है। नौले प्राचीन समय से ही लोगों की प्यास बुझाते आये हैं। समय के साथ कई चीजें बदली हैं। विकास की आँधी में नए किस्म की समझ का विस्तार हुआ और मौजूदा समय में पेयजल के लिये अपने परम्परागत स्रोतों की जगह सरकारी स्तर के पाइप लाइनों से जलापूर्ति का विकल्प चुना गया।
धीरे-धीरे नौलों पर से निर्भरता समाप्त होने लगी। जब सरकार घरों तक पानी नहीं पहुँचा पाई या जिन जल स्रोतों से बनी योजनाएँ कामयाब नहीं हुई तो लोगों को अपने ही नौले याद आने लगे हैं। दुर्भाग्य से गाँवों में कई नौले विकास की भेंट चढ़ गए हैं। अपनी धरोहर को बचाने के प्रति जागरुकता के अभाव में विभिन्न निर्माण कार्यों, खेल के मैदान, भूकम्पीय हलचलों और नौलों के आस-पास परम्परागत रूप से आने वाली वनस्पति और वृक्ष के नुकसान की इन जलस्रोतों को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। आज यहाँ की सामाजिक ताने-बाने से जुड़ी महत्त्वपूर्ण धरोहर माने जाने वाले ये जलस्रोत और नौले-धारे खत्म होने की कगार पर हैं।