तापमान बढ़ने के साथ ही 30 मार्च को मुखबा गांव के समीप ही एक बर्फीला तूफान यानि एवलांच आया और उसने गंगा-भागीरथी की राह कुछ देर रोक ली। इसके चलते वहां झील बन गयी और स्थिति खतरनाक हो गई। हालांकि यह स्थिति कुछ मिनटों तक ही रही लेकिन इस दौरान भागीरथी ने विकराल रूप ले लिया था। इसके बाद जिला आपदा प्रबंधन ने मुखबा के ग्रामीणों और पर्यटकों को सतर्क रहने के लिए कहा है। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन यहां का तापमान 14 डिग्री था। अप्रैल माह में तापमान बढ़ने की संभावना के साथ ही बर्फ के पहाड़ों के दरकने की आशंका बढ़ गई है।
सूक़्खी टाॅप सबसे अधिक खतरनाक
हर्षिल घाटी के लिए सबसे अधिक खतरा सूक़्खी टाॅप से है। यह पहाड़ अंदर से खोखला हो चुका है और इसके अंदर कई कलियासौड रुद्रप्रयाग का धंस रहा गांव समा सकते हैं। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र के निदेशक डा. एमपीएस बिष्ट भी मानते हैं कि सूक्खी टाॅप भविष्य में और अधिक खतरनाक हो सकता है। यहां एक ओर देवदार का घना जंगल है तो दूसरी ओर पहाड़ तेजी से फोल्ड हो रहा है। अवाणा का डांडा से लेकर झाला पुल तक खतरा ही खतरा है। इस परिधि में मुखबा समेत आठ गांव आते हैं। यह टाॅप अब यहां नासूर बनता जा रहा है।
खतरनाक साबित हो सकता है ऑल वेदर रोड
वैज्ञानिकों का मानना है कि पहाड़ में सड़कें स्थिर होने में 20 से 25 वर्ष का समय लेती है। मौजूदा समय में गंगोत्री मार्ग पर ऑल वेदर रोड का कार्य चल रहा है। नीति-नियंताओं ने बिना कुछ सोचे ही झाला फुल को जोड़ने के लिए सूखी टाप के रास्ते का उपयोग करने की सोची। इससे गंगोत्री की दूरी 8 किलोमीटर कम हो जाती लेकिन आठ गांव की रोजी-रोटी संकट में पड़ जाती। इस मुद्दे पर यूसैक ने संज्ञान लिया और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को अवगत कराया, इसके बाद ही यह रोड आठ किलोमीटर के फेर में बनी रही।
सुखी टॉप दरका तो डूब जाएगी भैरवघाटी
वैज्ञानिकों का मानना है कि पहाड़ में सड़कें स्थिर होने में 20 से 25 वर्ष का समय लेती है। मौजूदा समय में गंगोत्री मार्ग पर ऑल वेदर रोड का कार्य चल रहा है। नीति-नियंताओं ने बिना कुछ सोचे ही झाला फुल को जोड़ने के लिए सूखी टाप के रास्ते का उपयोग करने की सोची। इससे गंगोत्री की दूरी 8 किलोमीटर कम हो जाती लेकिन आठ गांव की रोजी-रोटी संकट में पड़ जाती। इस मुद्दे पर यूसैक ने संज्ञान लिया और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को अवगत कराया, इसके बाद ही यह रोड आठ किलोमीटर के फेर में बनी रही।
यूसैक के डायरेक्टर डा. एमपीएस बिष्ट भी मानते हैं कि सूखी टाॅप सबसे अधिक खतरनाक है। उनके अनुसार यह पहाड़ धीरे-धीरे अंदर से खोखला हो चुका है। इसके सहारे यदि सड़क बनती तो यह तेजी से दरकता। उनके अनुसार हिमालय अभी कच्चा पहाड़ है और इसकी प्लेट्स तिब्बतियन प्लेट्स के साथ लगातार टकरा रही हैं और इससे घर्षण पैदा होता है। उनके अनुसार यदि पहाड़ पर दबाव बढ़ा तो चट्टानें अधिक तेजी से फोल्ड होंगी और पहाड़ दरकेगा। वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि सूखी टॉप दरका तो यह गंगा का बहाव रोक देगा और यहां 14 किलोमीटर लंबी झील बन सकती है जो मंदाकिनी की तर्ज पर विनाश लाने का काम करेगी। वह भी मानते हैं कि ऑल वेदर रोड यदि मानकों पर नहीं बनी और पर्यावरण के हितों को नजरअंदाज किया गया तो यह खतरनाक साबित हो सकती है।
सन 1700 में यहां आई थी विनाशकारी आपदा
गंगोत्री घाटी में वर्ष 1700 में विनाशकारी आपदा आई थी। इसमें हजारों की संख्या में लोग मारे गए थे। इस आपदा के बाद अब दोबारा से यहां ऐसे हालात पैदा होने लगे हैं।
हिमालय के पहाड़ों पर आड़े-तिरछे फाल्ट
इंडियन प्लेट्स उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व दोनों में ही निरंतर दबाव बढ़ रहा है। इसके कारण पहाड़ों में कर्व यानी सिंटेसिक्स यानी आड़े-तिरछे फाल्ट आ रहे हैं। यह फाल्ट नार्थ-साउथ फाल्ट है। इसलिए सूखा टाॅप के निकट वैली बन रही है। सब नदी नाला, बारिश का पानी वैली में ही जाता है लेकिन लोग वैली के निकट या नदी के निकट ही बसना चाहते हैं और यह आत्मघाती कदम है।
पहाड़ पर बना रहे शीश महल
डा. बिष्ट कहते हैं कि पहाड़ दरक रहा है और हम उस दरकते पहाड़ पर शीशमहल बना रहे हैं तो इसके लिए दोषी कौन है? हमें पहाड़ की स्थिति को समझना होगा। विकास जरूरी है लेकिन विकास के नाम पर रेल, पुल और बांध जैसे कार्य हिमालय के लिए खतरनाक हैं।