चित्रकूट से 15 किमी. दूर सती अनुसुइया से निकलने वाली मन्दाकिनी नदी चित्रकूट, कर्वी से होते हुए बाँदा के राजापुर गाँव के पास यमुना में विलय हो जाती है। लगभग इस 50 किमी. के सफर में मन्दाकिनी कहीं नाले में तब्दील दिखाई देती है तो कहीं बिल्कुल सूखी हुई नजर आती है।
पहले यह नदी सदानीरा रही है और इसके 2003 की बाढ़ के रौद्र रूप के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए हैं पर अब यह नदी नाले के रूप में सिकुड़ चुकी है। पूरे चित्रकट का लगभग 70% पीने का पानी इसी सप्लाई होता है। दिनों-दिन नदी के कैचमेंट एरिया में नयी-नयी इमारतें बनती नजर आती हैं पाप हरने वाली मंदाकिनी नदी आज अपने दुर्दशा के दिनों से गुजर रही है। यह बात सही है कि आज मंदाकिनी का पानी बढ़ते प्रदूषण की वजह से आचवन करने लायक भी नहीं रह गया है।
हर नदी का अपना कैचमेंट एरिया होता है जिससे बारिश का पानी बहकर नदी में आता है और नदी बहने के साथ भूजल को भी रीचार्ज करती है। मन्दाकिनी सती अनुसुइया से निकलकर राजापुर गाँव के पास यमुना में मिलती है। इसका अधिकतम कैचमेंट एरिया पहाड़ी है। पर पहले जहाँ इसके आसपास पहाड़ियाँ थीं वहाँ बड़े-बड़े मन्दिर, इमारतें व होटल बने नजर आते हैं जिससे इसका कैचमेंट एरिया प्रभावित हुआ है। इसी वजह से इसके बेस फ्लो में भी गिरावट दर्ज हुई है साथ ही चित्रकूट का भूजल स्तर भी गिरा है। पहले जहाँ से पानी बहकर आता था अब वहाँ इमारतें बन जाने से या कहें विकास हो जाने से नदी का विनाश हो रहा है जिसका अन्दाजा राज और समाज कोई नहीं लगा पा रहा है।अगर कोई नदी मृत या खत्म होती है तो वह केवल एक नदी नहीं मरती, मरता है उसके साथ एक कल्चर, एक सभ्यता, एक फ्लोरा और फौना का संसार.. इसलिये मन्दाकिनी को हर हाल में बचाना होगा क्योंकि मन्दाकिनी नहीं रही तो चित्रकूट का अस्तित्व भी नहीं रहेगा।