लेखक रस्किन बांड की कविता में छलका पर्यावरण के प्रति दर्द

Submitted by Shivendra on Fri, 09/10/2021 - 14:17

 रस्किन बॉंड ने सोशल मीडिया पर इस तस्वीर के साथ अपनी कविता साझा की,फोटो:रस्किन बांड फेसबुक पेज

रस्किन बांड एक वो नाम है जो साहित्य के क्षेत्र में बड़े अदब से लिया जाता है और उत्तराखंड में मसूरी की पहचान भी है कई  कहानियां और उपन्यास लिख चुके रस्किन बांड आजकल अपनी एक कविता को लेकर चर्चाओं में है वैसे आमतौर पर रस्किन बांड कविता नहीं लिखते लेकिन कई दशकों से मसूरी में रहते हुए अब उन्होंने कुछ ऐसा महसूस किया है जिसने उन्हें कुछ लिखने पर मजबूर कर दिया है  पर्यावरण के लिए चिंतित रस्किन बांड ने एक ऐसी कविता लिख डाली जो न सिर्फ चर्चा का विषय बानी हुई है बल्कि अगर उसे आप ध्यान से पढ़ेंगे तो  अपनी आंखों में आंसुओं को आने से नहीं रोक पाएंगे , ( i wonder where the old folks go ,the nursing homes will surely know)  जिसका हिंदी में अनुवाद कुछ इस तरह है:-

मुझे ताज्जुब है वो पुराने साथी कहां हैं!

अस्पताल वाले जानते हों, वो जहां हैं

दूषित होते पर्यावरण की वजह से जिन बीमारियों ने जन्म लिया उसकी चपेट में कोई किसी का अपना आया और वो अब कहाँ है जाहिर सी बात है अस्पताल इसके बारे में बेहतर जानते है कुछ ऐसा ही कहने की कोशिश कर रहे है कवि  और लेखक रस्किन बांड खास तौर से देहरादून और मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य को निर्माण और विकास के नाम पर की गई दुर्गति को इस कविता में  उकेरा है.

देहरादून और मसूरी को उत्तराखंड में एक ज़माने में 'खुशी के जुड़वां शहर' कहा जाता था.आंकड़ों की मानें तो यहां लगातार आबादी का बढ़ना, पर्यावरण की कीमत पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और बड़े बड़े भवनों का खड़ा होना साफ कारण रहा है कि यहां वेस्ट मैनेजमेंट बदतर हुआ है और जलस्रोतों को भारी नुकसान पहुंचा है. पिछले कुछ ही समय में ग्लेशियर से लेकर बादलों के फटने तक से भारी आपदाएं भी उत्तराखंड के प्राकृतिक असंतुलन की कहानी कहती हैं.  रस्किन बांड का पहाड़ों के प्रति समर्पण और देहरादून व मसूरी के प्रति काफी गहरा लगाव था। रस्किन का दून घाटी के प्रति गहरा भावात्मक लगाव से ही  दून घाटी की खूबसूरती व प्राकृतिक सौंदर्य उनके लेखन में उभर कर आई। 

साल 2016 में एक कार्यक्रम में  उत्तराखंड के राज्यपाल डा कृष्णकांत पाल ने  रस्किन बांड को  सम्मानित किया था। इसी  दौरान बॉन्ड ने देहरादून- मसूरी  के लिये अपने लगाव  को बुद्धिजीवियों के साथ साझा किया। उन्होंने अपने किशोरावस्था में देहरादून से लंदन जाने तथा लंदन से वापस देहरादून की खूबसूरत वादियों में लौट आने , दोस्तों, पहाड़ों, पेडों और देहरादून की पर्यावरण से जुड़ी अपनी स्मृतियों के बारे में बताया । जो उनके पर्यावरण के प्रति प्रेम को दर्शाता  है 

रस्किन बांड  के कई ऐसे लेखन है जिसमें उन्होंने प्रकृति से जुड़ाव  को एक अलग अंदाज में बताया है । उनके उपन्यास  ‘पैन्थर्स मून’ की बात  करें तो इसमें जंगली जीव  और इंसानों  के संबंधों  को बड़ी खूबसूरती से पेश किया है। जो वाकई में वास्तविकता को दर्शाता है । उनका यह  लेख एक खूंखार तेंदुए पर आधारित तथा लेकिन उन्होंने इसके जरिये शिकारियों के लालच  और  अंधाधुंध विकास  के  आतंक  से  प्रकृति को नुकसान पहुँचने  और   जानवरों को भी अप्राकृतिक बनने को मजबूर करने की वास्तक़िता से लोगों को रूबरू कराया। 

 आज पहली बार उनके लेख में जलवायु परिवर्तन के प्रति चिंतन देखा गया है। उन्होंने अपना ये दर्द किसी उपन्यास से नही एक छोटी कविता से साझा किया है। आखिर वहां चिंतित क्यों ना हो, वो कई साल से देहरादून और मसूरी की उन वादियों में रह रहे है जो अपनी प्रकृतिक खूबसूरती  के लिए देशभर में मशहूर है । रस्किन 1964 में पहली बार मसूरी आये थे तब से वह यहाँ रह रहे है मसूरी में अपने 57 साल के जीवन काल में  उन्होंने जरूर पर्यावरण के बदलते प्रभाव को महसूस किया होगा। अगर हम रस्किन के बिताए वर्षों को उनकी कविता से महसूस करें तो हमें भी मसूरी की वादियों में   जलवायु परिवर्तन का एहसास होगा।

 
रस्किन बांड की कविता का हिंदी अनुवाद

 

मुझे ताज्जुब है वो हरी घास कहां खो गई!

नये ज़माने के सीमेंट में पूरी दफ़्न हो गई.

 

मुझे ताज्जुब है वो पंछी कहां उड़ गए!

नये घोंसलों की खोज में कहीं मुड़ गए.

 

मुझे ताज्जुब है वो पैदल रास्ते कहां चले गए!

बरख़ुरदार! ठीक तुम्हारी कार के तले गए.

 

मुझे ताज्जुब है वो पुराने साथी कहां हैं!

अस्पताल वाले जानते हों, वो जहां हैं.

 

मेरी आंखों के सामने इतनी जल्दी ये क्या बदल गया?

लाखों मक्खियां, ये कूड़ा कचरा पल गया.

 

क्या यही वो मुक़ाम है, जिसका है गुणगान?

गपशप में तुमने किया इसका बड़ा बखान!

लेकिन... जब तक मैं यह सब जान पाया,

यही हो चुका था नसीब का सामान.

इस कविता को अपने अकाउंट से पोस्ट करने के बाद बॉंड ने अपने प्रशंसकों और पाठकों को शुभकामनाएं देकर उन्हें प्रकृति के साथ जुड़े रहने को भी कहा।