वनों से ग्लेशियर तक फैला प्रदूषण का प्रभाव

Submitted by Hindi on Wed, 12/07/2011 - 15:55
Source
नई दुनिया, 04 दिसम्बर 2011

अवैध खनन की मार प्रदेश की नदियों पर ऐसी पड़ी है कि गंगा, यमुना, टोंस, कोसी, रामगंगा आदि नदियों ने कई स्थानों पर अपना रास्ता तक बदल दिया है। अकेले हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे 41 स्टोन क्रशर चल रहे हैं। मातृ सदन के संत स्वामी दयानंद के मुताबिक इन सभी स्टोन क्रशरों को पत्थरों की आपूर्ति गंगा से ही होती है जिस कारण गंगा नदी का प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हो गया है।

उत्तराखंड देश का अकेला राज्य है जहां 65 प्रतिशत क्षेत्र में वन हैं। देश को पर्यावरण सुविधाएं प्रदान करने के एवज में राज्य सरकार तीस हजार करोड़ से अधिक का ग्रीन बोनस केंद्र सरकार से मांगती रही है। राज्य सरकार का दावा है कि उत्तराखण्ड के वन देश को 30 हजार करोड़ रुपए से अधिक की ऑक्सीजन सेवा दे रहे हैं। लेकिन उत्तराखण्ड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र की रिपोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के राज्य में पैसठ प्रतिशत वन क्षेत्र होने के दावों पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। इस संस्था द्वारा जारी मानचित्रों के मुताबिक राज्य गठन के बाद तेज हुए शहरीकरण, औद्योगीकरण, सड़क निर्माण और अन्य परियोजनाओं के कारण राज्य का वन क्षेत्र लगातार कम हुआ है। यहां तक कि राज्य का सघन वन क्षेत्र भी लगातार घट रहा है।

हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान के निदेशक पर्यावरणविद् सुरेश भाई का कहना है कि राज्य में सघन वन क्षेत्र केवल 36 प्रतिशत ही बचा है। शेष भूमि जिसे सरकार वन बता रही है दरअसल खाली हो चुके मैदान हैं। उत्तराखंड राज्य गठन से पहले से ही तेज हो रही पर्यावरण की चिंता राज्य गठन के बाद और तेज हो गई है। गंगा नदी में हो रहे खनन ने तो इस नदी की सूरत बदल कर रख दी है। राजधानी बनने के बाद दस सालों में अकेले देहरादून शहर में सरकारी व निजी योजनाओं के लिए लगभग 50 हजार पेड़ काटे गए हैं। सीटिजन फॉर ग्रीन दून के डॉ. नितिन पाण्डे का कहना है कि इसमें से 20 हजार पेड़ तो राजधानी की आंतरिक सड़कों के चौड़ीकरण के लिए ही काटे गए हैं जबकि सूचना के अधिकार के तहत वन विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी यह बताती है कि इसके बदले में वन विभाग दो हजार पेड़ लगाने में भी कामयाब नहीं हो पाया।

उत्तराखंड में सड़क निर्माण के लिए कितने पेड़ काटे जा रहे हैं इसका सबसे ताजा उदाहरण देहरादून-हरिद्वार फोरलेन सड़क है। इस सड़क को फोर लेन करने में 9978 पेड़ काटे जाने हैं। वनों के काटे जाने का यह सिलसिला पूरे प्रदेश में चल रहा है। वन विभाग हर साल वृक्षारोपण के लिए बड़े-बड़े कार्यक्रम तो चलाता है लेकिन उसकी हकीकत समय-समय पर सामने आती रही है। उत्तराखंड में औद्योगीकरण के कारण भी पर्यावरण पर खासा असर हो रहा है। तराई के इलाकों काशीपुर, पंतनगर, रूद्रपुर आदि में हुए औद्योगीकरण का असर वहां की हवा में तो महसूस हो ही रहा है वैज्ञानिकों ने इसके असर को वहां के भूजल में भी प्रमाणित कर दिया है।

पर्यावरण प्रदूषण के असर से ग्लेशियर भी अछूते नही हैं। डेढ़ साल पहले जिस गंगोत्री ग्लेशियर की लंबाई 30 किलोमीटर थी वह आज मात्र 18 किलोमीटर है। सर्वे ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक गंगोत्री ग्लेशियर 25300 वर्ग मीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से पिघल रहा है। प्रदूषण की चपेट से नदियां भी अछूती नहीं हैं। अवैध खनन की मार प्रदेश की नदियों पर ऐसी पड़ी है कि गंगा, यमुना, टोंस, कोसी, रामगंगा आदि नदियों ने कई स्थानों पर अपना रास्ता तक बदल दिया है। अकेले हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे 41 स्टोन क्रशर चल रहे हैं। मातृ सदन के संत स्वामी दयानंद के मुताबिक इन सभी स्टोन क्रशरों को पत्थरों की आपूर्ति गंगा से ही होती है जिस कारण गंगा नदी का प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हो गया है।