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पंचायतनामा डॉट कॉम
राज्य में कुल सिंचित क्षेत्र करीब 8 से 10 प्रतिशत है। जो कुल कृषि भूमि के करीब 24.25 प्रतिशत है। यानी हर खेत को पानी पहुंचाने का लक्ष्य अब भी 75.75 प्रतिशत बाकी है। यह तब है, जब चौथी पंचवर्षीय योजना से ही छोटानागपुर और संथाल परगना में सिंचाई के संसाधन विकसित करने के लिए कई बड़ी परियोजनाओं को स्वीकृति दी गयी। इनमें से ज्यादातर परियोजनाएं अब भी आधूरी हैं, जबकि समय के साथ इनका बजट सौ गुना से भी ज्यादा हो गया। ऐसी सिंचाई परियोजनाएं हाथी के दांत हैं। राज्य में 16 नदी घाटियां हैं, जिन पर 32 बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजनाएं हैं। ये परियोजाएं जल संसाधन विभाग की है। कृषि विभाग ने भी झारखंड बनने के बाद सिंचाई संसाधन को विकसित करने के लिए कई योजनाएं शुरू की। पंचायतों में भी सिंचाई की योजनाएं चल रही है। इसके अलावा मनरेगा के तहत भी सिंचाई के साधन तैयार करने पर सरकार के करोड़ों रुपये खर्च किये हैं। इतने प्रयासों के बाद भी खरीफ के मौसम में भयंकर सुखाड़ की स्थिति किसानों को झेलनी पड़ती है। खेतों को पानी नहीं मिल पाता। आखिर यह स्थिति क्यों है? बड़ी, मध्यम और लघु सिंचाई परियोजनाओं के साथ-साथ कृषि विभाग की सिंचाई संबंधी योजनाओं की असलियत क्या है? इस मद में सरकार के खर्च का कितना फायदा किसानों को मिल रहा है? कहां है गड़बड़ी? यह आप पता कर सकते हैं। इसके लिए आप सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करें।
जल संसाधन विभाग ने पुरानी सिंचाई परियोजनाओं की बहाली और उनके रखरखाव को नयी सिंचाई परियोनाओं से ज्यादा सस्ता और उपयोगी माना। इस पर 2000 लाख की वार्षिक योजना 2010-11 के दौरान प्रस्तावित थी। इसका उद्देश्य खरीफ और रबी दोनों के लिए खेतों को पानी उपलब्ध कराना था। इस वार्षिक योजना की वास्तविकता क्या है? इसमें कितनी सफलता विभाग को मिली और कितना सिंचित क्षेत्र बढ़ा है? यह आप सूचनाधिकार का इस्तेमाल कर जान सकते हैं। इस वार्षिक कार्य योजना के ब्लू प्रिंट और एक-एक पैसे का हिसाब आप मांग सकते हैं। आप चाहें, तो किसी परियोजना की संचिका भी देख सकते हैं। यह सूचना आप जल संसाधन विभाग के कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।
आजादी के बाद कनाडा सरकार की मदद से मयूराक्षी नदी पर मसानजोर में डैम का निर्माण किया गया। इस डैम का निर्माण पन बिजली उत्पादन तथा झारखंड (तब बिहार) और पश्चििम बंगाल को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने के लिए किया गया है। लेकिन डैम के सभी नहरों का निर्माण आज तक पूरा नहीं हुआ। इस डैम का ज्यादा लाभ पश्चिाम बंगाल को मिलता रहा है। डैम को लेकर दोनों राज्यों के बीच हुए अनुबंध की मियाद पूरी हो चुकी है, लेकिन मियाद खत्म होने की तिथि 20 साल पुरानी नहीं है। इसलिए आप सूचनाधिकार के तहत उस अनुबंध की प्रति की मांग सकते हैं। इससे इस बात का भी खुलासा हो सकेगा कि इस डैम को लेकर राज्य सरकार सूचना के मामले में कितनी अद्यतन है। यह सूचना आप जल संसाधन विभाग से मांग सकते हैं।
कृषि विभाग लगभग 35 तरह की योजनाएं चला रहा है। इनमें माइक्रो एरिगेशन प्रोजक्ट भी शामिल है। सरकार हर साल आठ से नौ करोड़ रुपये खर्च करती है। इसका उद्देश्य किसानों को सीधा-सीधा लाभ पहुंचाना है। इस खर्च का आप हिसाब मांगिए। अगर आप किसान हैं और इस लाभ के हकदार भी हैं, लेकिन अधिकारी आपकी उपेक्षा कर रहे हैं, तो आप आवाज उठाइए। आपके गांव या आपकी पंचायत में अगर ऐसी कोई योजना अधूरी है, तो आप उसकी खोज-खबर लें। इन सब के लिए आप सूचनाधिकार का इस्तेमाल करें। यह सूचना आप प्रखंड कृषि पदाधिकारी, जिला कृषि पदाधिकारी या कृषि सचिव के कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।
सिंचित कृषि क्षेत्र को बढ़ाने और सिंचाई सुविधा को सुगम बनाने के लिए सरकार ने लिफ्ट एरिगेशन पर फोकस किया। यह माइक्रो लेवल पर बड़ी पहल थी। आप अपनी पंचायत के लिफ्ट एरिगेशन का हाल सूचनाधिकार के तहत जान सकते हैं। सूचना मांगेंगे, तब विभाग भी सक्रिय होगा और उन्हें सक्रिय कराने की आप भी पहल कर सकेंगे।
राज्य में पिछले एक दशक में बड़ी संख्या में चेक डैम का निर्माण कराया गया। मनरेगा के तहत भी चेक डैम का निर्माण हुआ है। कई जिलों में लघु सिंचाई विभाग ने इस काम को किया है। चेक डैम निर्माण में सबसे ज्यादा कमीशनखोरी लघु सिंचाई विभाग में हुई। इसने ऐसे-ऐसे स्थानों पर चेक डैम का निर्माण कराया, जहां पानी का कोई स्रोत ही नहीं है। इस सच को कुछ आरटीआई एक्टिविस्टों ने पहले भी उजागर किया है। इसके बाद भी विभाग का यह खेल अलग-अलग जिलों में हुआ है। कृषि विभाग ने भी वाटर हार्वेस्टिंग योजना के तहत चेक डैम का निर्माण कराया। राज्य में कितने चेक डैम बने और उनसे सिंचित कृषि क्षेत्र का कितना विस्तार हुआ, यह आप संबंधित विभाग (लघु सिंचाई विभाग, कृषि विभाग) से पूछ सकते हैं। आप उनसे सूचना मांग सकते हैं। अगर अपनी पंचायत में ऐसा चेक डैम हो, जिसका निर्माण गलत स्थान पर गलत तरीके से हुआ है, तो आप उस मामले को भी सूचनाकार के तहत उजागर कर सकते हैं।
राज्य में बड़े पैमाने पर सिंचित क्षेत्र विकसित करने और जल प्रबंधन के लिए जलछाजन कार्यक्रम चलाया गया है। इसके लिए वर्ष 2009 में झारखंड राज्य जलछाजन मिशन का गठन किया गया और सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत इसका रजिस्ट्रेशन कराया गया। मिशन की साधारण सभा के सभापति विकास आयुक्त एवं उप सभापति ग्रामीण विकास विभाग के सचिव होते हैं। राजस्व एवं भूमि सुधार, जल संसाधन, कृषि एवं गत्रा विकास तथा वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव एवं वित्त सचिव आदि इसके पदेन सदस्य होते हैं। राज्य कार्यकारिणी के अध्यक्ष ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव हैं। जिलों में जिला जलछाजन विकास इकाई है। उपायुक्त इसके अध्यक्ष, उप विकास आयुक्त उपाध्यक्ष तथा अपर समाहर्ता, डीएफओ, जिला कृषि पदाधिकारी, जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी आदि इसके पदेन सदस्य होते हैं। यानी यह उच्चस्तरीय संगठन है। राज्य भर में जलछाजन कार्यक्रम चलाया गया। इस कार्यक्रम की सफलता के प्रतिशत तथा इससे कृषि योग्य सिंचित भूमि के विस्तार, इस पर हुए खर्च आदि की आप जानकारी मांग सकते हैं। अगर आपकी पंचायत की जलछाजन योजना में किसी तरह की गड़बड़ी है, तो सूचनाधिकार का इस्तेमाल कर उसे उजागर कर सकते हैं।
राज्य की सभी तरह की सिंचाई व्यवस्था का नियंत्रण।
सिंचाई के क्षेत्र में अनुसंधान, जांच, डिजाइन, योजना और निर्माण।
फ्लो और लिफ्ट सिंचाई तथा जल संरक्षण।
उनके ढांचे, रखरखाव और प्रशासनिक नियंत्रण।
तेनुघाट परियोजना की निर्माण लागत और प्रबंधन का बोध।
परियोजनाओं और विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए भूमि अधिग्रहण।
बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी से संबंधित काम।
अंतर्देशीय जल तरीके (राष्ट्रीय जल तरीके सहित) जलमार्ग की पवित्रता के लिए उनके रखरखाव एवं संरक्षण।
झारखंड हिल एरिया लिफ्ट सिंचाई निगम का नियंत्रण।
बड़ी परियोजना
अजय बराज परियोजना
गुमानी बराज परियोजना
कोनार सिंचाई परियोजना
सुवर्ण जलाशय परियोजना
पुनासी परियोजना
अमानत बराज परियोजना
उत्तर कोयल जलाशय परियोजना
मध्यम परियोजना
सोनुआ जलाशय योजना
सुरंग जलाशय योजना
केसजोर जलाशय योजना
पुंचखेरो जलाशय योजना
अपर शंख जलाशय योजना
कंस जलाशय योजना
झरझरा जलाशय योजना
नकटी जलाशय योजना
सुरु जलाशय योजना
रामरेखा जलाशय योजना
केशो जलाशय योजना
हैरवा जलाशय योजना
गरही जलाशय योजना
बटने जलाशय योजना
कतरी जलाशय योजना
धनसिंह टोला जलाशय योजना
कांति जलाशय योजना
सुकरी जलाशय योजना
तजना जलाशय योजना
जन सूचना पदाधिकारी, झारखंड राज्य जलछाजन मिशन, एफएफपी बिल्डिंग, एचइसी परिसर, रांची
जन सूचना पदाधिकारी, जल संसाधन विभाग, नेपाल हाउस, डोरंडा, रांची 834002
तोड़ दीन क्यारी, खेत गा उजारी।
(यदि पानी को खेत में रोक रखनेवाली क्यारी को तोड़ दिया जाय, तो खेत उजाड़ हो जायेगा यानी उसमें उपज नहीं होगी।)
लेखक सम्पर्क : मो. – 9431177865
2000 लाख का मांगें हिसाब
जल संसाधन विभाग ने पुरानी सिंचाई परियोजनाओं की बहाली और उनके रखरखाव को नयी सिंचाई परियोनाओं से ज्यादा सस्ता और उपयोगी माना। इस पर 2000 लाख की वार्षिक योजना 2010-11 के दौरान प्रस्तावित थी। इसका उद्देश्य खरीफ और रबी दोनों के लिए खेतों को पानी उपलब्ध कराना था। इस वार्षिक योजना की वास्तविकता क्या है? इसमें कितनी सफलता विभाग को मिली और कितना सिंचित क्षेत्र बढ़ा है? यह आप सूचनाधिकार का इस्तेमाल कर जान सकते हैं। इस वार्षिक कार्य योजना के ब्लू प्रिंट और एक-एक पैसे का हिसाब आप मांग सकते हैं। आप चाहें, तो किसी परियोजना की संचिका भी देख सकते हैं। यह सूचना आप जल संसाधन विभाग के कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।
मसानजोर डैम की अनुबंध प्रति मांगें
आजादी के बाद कनाडा सरकार की मदद से मयूराक्षी नदी पर मसानजोर में डैम का निर्माण किया गया। इस डैम का निर्माण पन बिजली उत्पादन तथा झारखंड (तब बिहार) और पश्चििम बंगाल को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने के लिए किया गया है। लेकिन डैम के सभी नहरों का निर्माण आज तक पूरा नहीं हुआ। इस डैम का ज्यादा लाभ पश्चिाम बंगाल को मिलता रहा है। डैम को लेकर दोनों राज्यों के बीच हुए अनुबंध की मियाद पूरी हो चुकी है, लेकिन मियाद खत्म होने की तिथि 20 साल पुरानी नहीं है। इसलिए आप सूचनाधिकार के तहत उस अनुबंध की प्रति की मांग सकते हैं। इससे इस बात का भी खुलासा हो सकेगा कि इस डैम को लेकर राज्य सरकार सूचना के मामले में कितनी अद्यतन है। यह सूचना आप जल संसाधन विभाग से मांग सकते हैं।
माइक्रो एरिगेशन का कितना लाभ
कृषि विभाग लगभग 35 तरह की योजनाएं चला रहा है। इनमें माइक्रो एरिगेशन प्रोजक्ट भी शामिल है। सरकार हर साल आठ से नौ करोड़ रुपये खर्च करती है। इसका उद्देश्य किसानों को सीधा-सीधा लाभ पहुंचाना है। इस खर्च का आप हिसाब मांगिए। अगर आप किसान हैं और इस लाभ के हकदार भी हैं, लेकिन अधिकारी आपकी उपेक्षा कर रहे हैं, तो आप आवाज उठाइए। आपके गांव या आपकी पंचायत में अगर ऐसी कोई योजना अधूरी है, तो आप उसकी खोज-खबर लें। इन सब के लिए आप सूचनाधिकार का इस्तेमाल करें। यह सूचना आप प्रखंड कृषि पदाधिकारी, जिला कृषि पदाधिकारी या कृषि सचिव के कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।
लिफ्ट एरिगेशन का क्या है हाल
सिंचित कृषि क्षेत्र को बढ़ाने और सिंचाई सुविधा को सुगम बनाने के लिए सरकार ने लिफ्ट एरिगेशन पर फोकस किया। यह माइक्रो लेवल पर बड़ी पहल थी। आप अपनी पंचायत के लिफ्ट एरिगेशन का हाल सूचनाधिकार के तहत जान सकते हैं। सूचना मांगेंगे, तब विभाग भी सक्रिय होगा और उन्हें सक्रिय कराने की आप भी पहल कर सकेंगे।
चेक डैम कितने कारगर
राज्य में पिछले एक दशक में बड़ी संख्या में चेक डैम का निर्माण कराया गया। मनरेगा के तहत भी चेक डैम का निर्माण हुआ है। कई जिलों में लघु सिंचाई विभाग ने इस काम को किया है। चेक डैम निर्माण में सबसे ज्यादा कमीशनखोरी लघु सिंचाई विभाग में हुई। इसने ऐसे-ऐसे स्थानों पर चेक डैम का निर्माण कराया, जहां पानी का कोई स्रोत ही नहीं है। इस सच को कुछ आरटीआई एक्टिविस्टों ने पहले भी उजागर किया है। इसके बाद भी विभाग का यह खेल अलग-अलग जिलों में हुआ है। कृषि विभाग ने भी वाटर हार्वेस्टिंग योजना के तहत चेक डैम का निर्माण कराया। राज्य में कितने चेक डैम बने और उनसे सिंचित कृषि क्षेत्र का कितना विस्तार हुआ, यह आप संबंधित विभाग (लघु सिंचाई विभाग, कृषि विभाग) से पूछ सकते हैं। आप उनसे सूचना मांग सकते हैं। अगर अपनी पंचायत में ऐसा चेक डैम हो, जिसका निर्माण गलत स्थान पर गलत तरीके से हुआ है, तो आप उस मामले को भी सूचनाकार के तहत उजागर कर सकते हैं।
जलछाजन योजना का जानें हाल
राज्य में बड़े पैमाने पर सिंचित क्षेत्र विकसित करने और जल प्रबंधन के लिए जलछाजन कार्यक्रम चलाया गया है। इसके लिए वर्ष 2009 में झारखंड राज्य जलछाजन मिशन का गठन किया गया और सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत इसका रजिस्ट्रेशन कराया गया। मिशन की साधारण सभा के सभापति विकास आयुक्त एवं उप सभापति ग्रामीण विकास विभाग के सचिव होते हैं। राजस्व एवं भूमि सुधार, जल संसाधन, कृषि एवं गत्रा विकास तथा वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव एवं वित्त सचिव आदि इसके पदेन सदस्य होते हैं। राज्य कार्यकारिणी के अध्यक्ष ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव हैं। जिलों में जिला जलछाजन विकास इकाई है। उपायुक्त इसके अध्यक्ष, उप विकास आयुक्त उपाध्यक्ष तथा अपर समाहर्ता, डीएफओ, जिला कृषि पदाधिकारी, जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी आदि इसके पदेन सदस्य होते हैं। यानी यह उच्चस्तरीय संगठन है। राज्य भर में जलछाजन कार्यक्रम चलाया गया। इस कार्यक्रम की सफलता के प्रतिशत तथा इससे कृषि योग्य सिंचित भूमि के विस्तार, इस पर हुए खर्च आदि की आप जानकारी मांग सकते हैं। अगर आपकी पंचायत की जलछाजन योजना में किसी तरह की गड़बड़ी है, तो सूचनाधिकार का इस्तेमाल कर उसे उजागर कर सकते हैं।
जल संसाधन विभाग की सिंचाई संबंधी जिम्मेवारी
राज्य की सभी तरह की सिंचाई व्यवस्था का नियंत्रण।
सिंचाई के क्षेत्र में अनुसंधान, जांच, डिजाइन, योजना और निर्माण।
फ्लो और लिफ्ट सिंचाई तथा जल संरक्षण।
उनके ढांचे, रखरखाव और प्रशासनिक नियंत्रण।
तेनुघाट परियोजना की निर्माण लागत और प्रबंधन का बोध।
परियोजनाओं और विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए भूमि अधिग्रहण।
बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी से संबंधित काम।
अंतर्देशीय जल तरीके (राष्ट्रीय जल तरीके सहित) जलमार्ग की पवित्रता के लिए उनके रखरखाव एवं संरक्षण।
झारखंड हिल एरिया लिफ्ट सिंचाई निगम का नियंत्रण।
11 वीं योजना में शामिल सिंचाई परियोजनाएं :
बड़ी परियोजना
अजय बराज परियोजना
गुमानी बराज परियोजना
कोनार सिंचाई परियोजना
सुवर्ण जलाशय परियोजना
पुनासी परियोजना
अमानत बराज परियोजना
उत्तर कोयल जलाशय परियोजना
मध्यम परियोजना
सोनुआ जलाशय योजना
सुरंग जलाशय योजना
केसजोर जलाशय योजना
पुंचखेरो जलाशय योजना
अपर शंख जलाशय योजना
कंस जलाशय योजना
झरझरा जलाशय योजना
नकटी जलाशय योजना
सुरु जलाशय योजना
रामरेखा जलाशय योजना
केशो जलाशय योजना
हैरवा जलाशय योजना
गरही जलाशय योजना
बटने जलाशय योजना
कतरी जलाशय योजना
धनसिंह टोला जलाशय योजना
कांति जलाशय योजना
सुकरी जलाशय योजना
तजना जलाशय योजना
यहां से मांगे सूचना
जन सूचना पदाधिकारी, झारखंड राज्य जलछाजन मिशन, एफएफपी बिल्डिंग, एचइसी परिसर, रांची
जन सूचना पदाधिकारी, जल संसाधन विभाग, नेपाल हाउस, डोरंडा, रांची 834002
और अंत में
तोड़ दीन क्यारी, खेत गा उजारी।
(यदि पानी को खेत में रोक रखनेवाली क्यारी को तोड़ दिया जाय, तो खेत उजाड़ हो जायेगा यानी उसमें उपज नहीं होगी।)
लेखक सम्पर्क : मो. – 9431177865