Source
नेशनल दुनिया, 20 जुलाई 2012

पहले इसे हौज ए शम्शी के नाम से जाना जाता था। कई किलोमीटर तक फैला यह तालाब एक समय यहां के लोगों की लाइफ लाइन हुआ करता था। बताया जाता है कि यह तालाब इतना विशाल था कि मशहूर घुमक्कड़ इबने बतूता ने इस तालाब को देखकर लिखा था कि उसने पूरी दुनिया की सैर की है, लेकिन इतना विशाल और भव्य तालाब कहीं नहीं देखा। उसने इसे भव्य जलस्रोत की संज्ञा दी थी। इतना ही नहीं प्रसिद्ध गांधीवादी अनुपम मिश्र ने अपनी किताब आज भी खरे हैं तालाब में शम्शी तालाब का जिक्र किया है।
यह किताब फ्रेंच और स्पेनिश समेत 40 भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। सरकारी उदासीनता को देखते हुए इस तालाब को बचाने के लिए आस-पास के गांवों में रहने वाले लोगों ने गांव बचाओ आंदोलन के नाम से तालाब को बचाने की एक मुहीम शुरू की है। इसके मुखिया त्रिलोक चौधरी का कहना है सरकार जल संचयन के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन जल संचयन के सबसे पुराने इन जल स्रोतों को बचाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। एक समय दिल्ली के अंदर तीन से चार सौ तालाब हुआ करते थे, जिनमें से ज्यादातर तालाब सरकारी उदासीनता के चलते नष्ट हो चुके हैं।
हालात यह हैं कि इस ऐतिहासिक धरोहर में प्रशासन की लापरवाही के चलते सैकड़ों नालियां गिर रही हैं, जिससे तालाब का पानी प्रदूषित हो गया है। भूमाफिया तालाब को मलबा डालकर भरता जा रहा है। इसे रोकने के लिए गांव के लोगों ने दिल्ली सरकार, शहरी विकास मंत्रालय और प्रधानमंत्री को कई बार पत्र लिखे हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ है। अब गांव वाले इस ऐतिहासिक शम्शी तालाब को इसके लिए एक आंदोलन करने पर विचार कर रहे हैं।