मेरे शहर की नदी

Submitted by admin on Mon, 12/09/2013 - 15:20
मेरे शहर से होकर
जाती है एक नदी
कभी बहती है
कभी रूकती है
रोती ही रहती है
अपनी दुर्दशा पर
गंदे नाले जो गिरते हैं
इस नदी में उन्होंने
नदी को ही अपने जैसा
बना लिया है
मेरा शहर जो कि
दिल है मेरे देश का
देश को जीवंत करता है
उसकी नदी का
जीवन कहीं खो गया है
जिस सूर्य सुता का जल
सत्ता के अभिनव दुर्ग के
नित चरण पखारता था
राजरानियां आनंदित होती थीं
जिसके जल में
किल्लोल करते पक्षियों को देख
आज उस कालिंदी का
जल ही काला हो
उसे काली नदी में
परिवर्तित कर चुका है
जो नदी कभी जीवन दात्री थी
मेरे शहर की
आज उस में कोई
जीवन भी देता नहीं है
नदी सो नहीं रही
नदी खो रही है
फिर भी खा रही है
करोड़ों रुपये
जो उसके आस्तित्व को
बचाने के नाम जा रहे हैं
इसे दुर्भाग्य कहें मेरे शहर का
या कि इस नदी का
यम भगिनी यह नदी
यमलोक सिधार रही है
शनैः शनैः शनैः शनैः !!