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मेरे गाँव में कार्तिक पुनिया ( 2008) से नरेगा के तहत कार्ड धारी मजदूरों को तक़रीबन हर रोज काम मिल रहा है. मुखियाजी मन से गाँव-महाल में मिट्टी दिला रहे हैं.
तीन चार साल से लगातार मेरे गाँव - महाल में बाढ़ आ रही है . धान की खेती को पुरे तौर पर बर्बाद करते हुए . अब तो शादी विवाह में बिध और मडवा पर दुल्हा दुल्हन पर लावा छींटने के लिए धान भी लोगों को मोल खरीदना पड़ रहा है. बड़े बूढों की मानें तो उनके याद में ऐसा पहली बार हो रहा है.
ऐसा नहीं है की फल्गु नदी की दो तीन शाखाएँ ( महत्मायीन , धोबा आदि ), जो मेरे गाँव के इर्द गिर्द बहती है उसमें एक -ब -एक ज्यादा पानी आने /बहने लगा है, या के बारिश जोरदार होने लगी है. बाढ़ ,जिसे हम लोग धाध कहते हैं, का कारण कुदरती न होकर पुरे तौर पर सरकारी है.मगह में जमीन का ढाल आम तौर पर दक्षिण से उत्तर के तरफ है .नदियों का पानी उसी अनुसार बहता है .धाध से बचाने के लिए गाँव के सिवाने पर पारंपरिक तौर पर सामुदायिक श्रम से निर्मित ज्यादातर बाँध ( अलंग ) फलतः पूरब से पश्चिम की ओर है. 2004 से फ्लड कण्ट्रोल की सरकारी योजना के तहत मेरे गाँव में पुराने अलंग का मजबूतीकरण और चौड़ीकरण हो रहा है .बाँध की कुल लम्बाई है 6 km . हर साल बिध के तौर पर चंद दिनों तक jcb मशीन से मिटटी भराई का काम होता है. पर हाय रे हमारे गाँव की किस्मत .इन पांच सालों में छः किमी का फ्लड कण्ट्रोल बाँध/ जमींदारी बाँध का काम पूरा नहीं हो पाया. इसका परिणाम है के हर साल बाढ़ की विभिषिका बढ़ती जा रही है . बाढ़ के पानी से तक़रीबन हर अलंग में बड़े बड़े खांध हैं. फलतः हर साल खांध को भरने की जरूरत है. फ्लड कण्ट्रोल बाँध इस बर्ष भी पूरा नहीं हुआ है.बाढ़ अनुमंडल के फ्लड कण्ट्रोल के इंजिनियर साहब से हमारे ग्राम वासी लगातार संपर्क में हैं. jcb मशीन भेजने का पूरा प्रयास उनके द्वारा जारी है बशर्ते की बख्तियार पुर तरफ का दबंग ठीकेदार इंजिनियर साहब की बात मान लें.
अभी -अभी फतुहा में विधान सभा के उपचुनाव हुए , संसदीय आम चुनाव के लगे बाद इस उपचुनाव तक हमारे गाँव में कई नेता ,विधायक और मंत्री आये और इस कार्य के सुशासन के इस जमाने में इतने दिनों तक लंबित रहने पर घोर आर्श्चय व्यक्त करते हुए अधूरे काम को जल्द पूरा करवाने का आश्वाशन दे कर चलते बने. गाँव में कल तक (११ जून ) कोई इंजिनियर , ठीकेदार , मशीन या मजदूर इस काम के लिए अभी तक नहीं पंहुचा है.लेकिन हमारे गाँव के भोले भाले किसान कितने आशावादी हैं, मशीन से खेत पटा कर मोरी दे रहें हैं. शायद दैवी कृपा से धान हो जाय .
हाँ नरेगा के तहत जोरदार काम हो रहा है. गुणवत्ता के लिहाज़न भी काम मोटा - मोटी ठीक - ठाक हो रहा है.अगर उपियोगिता और उपादेयता की बात करें तो निसंदेह काबिले तारीफ़.तक़रीबन सारी पगदंदियाँ बन गयीं .गाँव के हर तरफ से निकास बन गया . स्कूल पर जाने बाली आरी मजबूत पगडण्डी बन गयी है.बरसात में बच्चे और बच्चियां फिसल ने से बच जांएगी. .रास्ते और अलंग के इस काम से पईन की उड़ाही भी हो रही है. और इन सारे कामों में हमारे गाँव और टोलों के मजदूर हीं लगें रहे हैं. मशीन नहीं बल्कि सिर्फ मजदूर काम कर रहे हैं. ये सारा काम मुखिया जी खुद करवा रहे हैं.हमारे गाँव के मजदूर , कहें तो अब तक इतने खुशहाल कभी नहीं थे. मन से काम करने वाले मजदूर ,रोजाना 150 रुपये कमा रहें हैं.पीले , लाल कार्ड पर हर महीने चावल गेंहूँ भी बाजार से सस्ते दाम पर मिल रहा है.
तो इन डेढ़ सौ रुपयों का क्या हो रहा है ?
मजदूर और दलित बस्तियों में फेरी करने वाले हर रोज तसले में भर कर बेचने के लिए जिंदा मांगुर मछली ला रहें हैं . फारम वाली मुर्गी रोजाना उपलब्ध है. मछली, मुर्गा भात हर रोज चल रहा है.और बैसखा में ताडी की बहार अलग से .हर रोज मछली और मुर्गा भात कि खुराक से बहुतेरे इन मजदूरों से इर्ष्या मिश्रित भाव व्यक्त करते हैं.
और ज्यादा काबिल बनते हुए कहते फिर रहें हैं कि इन कि हालत इनके खाने पिने कि इन्हीं वजहों से नहीं सुधरती है .कहने वाले कहते रहें .जलने वाले जलते रहें ,
नरेगा,तसले में मांगुर, मछली भात, ताडी और भर पेट खाते अघाते मेरे गाँव के मजदूर, फिलहाल इतना सब एक साथ देने वाले को तहे दिल से शुक्रिया कह रहें हैं.