निर्मल भारत यात्रा। यह लगभग 500 लोगों द्वारा पूरी की गई 2000 किलोमीटर की एक रोमांचक यात्रा थी। यह यात्रा. पाँच राज्यों- वर्धा (महाराष्ट्र), इंदौर (मध्य प्रदेश), कोटा (राजस्थान), ग्वालियर (मध्य प्रदेश), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) और बेतिया (बिहार) के छह बड़े कस्बों से होकर गुजरी। प्रत्येक कस्बे में यात्रा के पड़ाव के दौरान एक काफी बड़े मैदान मेंदो दिन तक विशाल मेला लोगों के आकर्षण का केंद्र बना। खुले में शौच को समाप्त करने के लिए संदेश को व्यापक रूप देना व साबुन से हाथ धोने को आदत बनाने के लिए लोगों में व्यवहार परिवर्तन करना इस यात्रा का मकसद था। महिलाओं व स्कूली छात्राओं के बीच मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन पर जागरूकता फैलाने के मकसद से कई मोटीवेशनल कार्यक्रम रखे गये थे। ऐसे कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने का एक बड़ा स्रोत हो सकता है। निर्मल भारत यात्रा के बारे में, लेखों, फिल्मों, फोटो, वेबसाइटों और ब्लॉगों पर काफी सामग्री है। यात्रा की आयोजक संस्था क्विकसैंड के प्रिंसिपल नीरत मानते हैं कि यात्रा भविष्य में एक लंबा रास्ता तय करने के लिए परिवर्तन के एक एजेंट के रूप में जानी जायेगी।
यात्रा, वाश युनाइटेड और क्विकसैंड के दिमाग की उपज थी। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश ने यात्रा का नाम निर्मल भारत यात्रा रखा, जो निर्मल भारत अभियान (एनबीए, एक सरकारी कार्यक्रम मूल रूप से संपूर्ण स्वच्छता अभियान का नाम) का हिस्सा बन गई।
निर्मल भारत यात्रा के प्रत्येक पड़ाव के दौरान शिविर सेट करना और मेले की सजावट एक बड़ी चुनौती थी। जिसमें अमूमन चार या पांच दिन का समय जाया होता था। इन खाली दिनों में प्रचार टीमें, दो ऑटो रिक्शा के एक काफिले के साथ आस-पास के क्षेत्रों में प्रचार का काम करती थीं। 10-15 किलोमीटर की परिधि के गांवों में ऑटो में सजे रंगीन गुब्बारे के साथ वे लोगों को कार्निवाल में आने का निमंत्रण दे रहे थे। निर्मल भारत यात्रा के बहुत शुरू से प्रोमो टीम में शामिल जादूगर तुलसी ने हमें बताया कि जहाँ भी वे गांवों में जाते थे, लोगों को इकट्ठा करने के लिये वह जादू का प्रदर्शन करते, जबकि उसके तीन अन्य साथी दमन प्रीत, इमरान खान और मनोज लोगों से खुले में शौच के अंत और साबुन से हाथ धोने का आग्रह करते थे। पूर्व प्रोमो टीम एक दिन औसतन 6-7 गांवों तक पहुँचते थे। इस टीम ने क्षेत्रों में जहां संचार और मीडिया के अन्य साधन कार्य नहीं कर रहे थे, यात्रा के लिए एक विज्ञापन और सूचना के प्रसार तंत्र के रूप में काम किया।
इसके अलावा प्री प्रमोशन की एक टीम स्कूलों में पहले से ही यात्रा के बारे में व्यापक प्रचार करने का काम करती थी। इसमें फीड बैक फाउंडेशन से अनन्या घोषाल की टीम एनबीए के हिस्से के रूप में एक प्रमुख भूमिका में थी, जिसने यात्रा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने से पहले ही स्कूलों में वाश प्रोग्राम के लिये अध्यापकों को राजी किया और टीओटी कार्यक्रम के लिये शिक्षा अधिकारियों से परमिशन लिये। निर्मल भारत यात्रा के बारे में स्थानीय समुदाय के साथ बातचीत कर उन्हें खुले में शौच जाने से रोकने पर आधारित कार्यक्रम कराने को राजी किया। यात्रा पहुंचने के बाद , वाश टीम (स्कूलों में विन्स प्रोग्राम) और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन दल (एमएचएम) पूर्व निर्धारित स्कूलों में जाकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता था। यात्रा के प्रत्येक पड़ाव के दौरान जागरूकता कार्यक्रम 2-से 4 दिनों तक आयोजित किये गए। इनमें स्कूली बच्चों के साथ खेला जाने वाला वल्डॅ टायलेट कप काफी रोमांचक व अट्रैक्टिव था, जिसमें खुले में शौच करने से होने वाली बीमारियों का संदेश छुपा था। विन टीम द्वारा स्कूलों में खाना खाने के पहले हाथ धोने के एक प्रदर्शन ने जिसे जर्मनी में टिपी-टाप कहा जाता है, बच्चों को काफी आकर्षित किया। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां हाथ धोने के लिए एक नलों का इंतजाम नहीं हैं उन स्थानों पर इसी तरह की डिवाइस, स्थापित किया जा सकता है। जिसके माध्यम से बच्चों के हाथ धोने में काफी आसानी होगी और पानी भी काफी कम खर्च होगा।
माहवारी स्वच्छता प्रबंधन टीम ने स्कूली किशोरियों व गांवों में महिलाओं के साथ माहवारी संबंधी समस्याओं पर गहराई में जाकर काफी खुलकर बात किया। इस दौरान टीम को कई मिथकों और सामाजिक वर्जनाओं के बारे में पता चला। खासकर किशोरियां, जो यौवन तक पहुँच चुकी हैं और वह माहवारी और स्वच्छता के मामले में कई एक सामाजिक प्रतिबंधों के साथ रहती हैं। इनमें ज्यादातर ने बताया कि माहवारी आने पर उन्हें ऐसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके बारे में खुलकर बात करना अच्छा नहीं माना जाता। एम एच एम टीम ने इस बारे में शिक्षकों के साथ भी चर्चा की और पूछा कि माहवारी स्वच्छता के प्रति स्कूलों में लड़कियों के बीच जागरूकता पैदा करने में उनकी भूमिका क्या है। माहवारी के दौरान ज्यादातर लड़कियों को स्कूल क्यों छोड़ना पड़ता है। बात खुलकर सामने आई- क्योंकि वहाँ कोई शौचालय नहीं होता हैं या शौचालय बहुत गंदे होते हैं। पैड बदलने और हाथ धोने का कोई विकल्प नहीं होने व अन्य सुविधाओं की कमी की वजह ते उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ता है।
एमएचएम पर हुए जागरुकता कार्यक्रम में फोटो पत्रकार, पत्रकारों, ब्लॉगर्स, फिल्म निर्माताओं और टीवी पत्रकारों रचनात्मक टीम ने शिरकत की, जो विश्व के विभिन्न भागों से यहां आये थे। उन लोगों ने यात्रा का एमएचएम पर हुए जागरुकता कार्यक्रम के मैसेज को बाहर तक पहुँचने का काम किया ।
स्कूलों व गांवों में आउटरीच कार्यक्रम के बाद दो दिवसीय कार्निवाल कई स्टालों के साथ खूबसूरती से सजाया गया। जमीन से करीब 10 फिट ऊंचा एक मंच , जहां गीत, नाटक, नृत्य आस- पास के स्कूलों से बच्चों द्वारा प्रत्तुत किया गया काफी सराहा गया। इसके अलावा मेंले में कई ऐसे खेल थे जो हजारों लोगों की भीड़ एकत्रित करने में काफी सहायक रहे। कार्निवाल की पूरी अवधारणा साफ- सफाई और स्वच्छता का एकमात्र संदेश देने पर आधारित थी। एम एच एम स्टाल में महिलाओं को बताया गया कि कैसे वह सूती कपड़े के साथ अपने सेनेटरी पैड स्वयं बना सकती हैं। जल सहायता स्टाल के माध्यम से विभिन्न स्थलाकृतिक शर्तों के अनुकूल शौचालय के विभिन्न मॉडलों को दर्शाता गया पूरी यात्रा के दौरान कार्निवल औपचारिक समारोह बना जहां स्थानीय सरकार के प्रतिनिधि या केन्द्र से अन्य प्रतिनिधि आए और स्वच्छता के मुद्दों पर बड़ी भीड़ को संबोधित किया जबकि वर्धा, इंदौर और ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश स्वयं उपस्थित थे।
वर्धा से बेतिया तक निर्मल भारत यात्रा में करीब 1,50,000 लोगों की उपस्थिति दर्ज की गई। दो दिवसीय कार्निवल जो सबसे पहले 3 अक्तूबर को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में सेवाग्राम में प्रारंभ हुआ था का समापन 19 नवम्बर 2012 को बिहार में बेतिया में हुआ। दो दिनों के मेले के दौरान 33,000 लोगों की उपस्थिति के साथ सबसे ज्यादा भीड़ राजस्थान स्थित कोटा जिले में सांगौद कस्बे में एकत्रित हुई। यात्रा के दौरान इंडिया वाटर पोर्टल टीम; इवाग टीम और दिल्ली से इवेंट मैनेजमेंट टीम ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जिनके कर्मचारियों की संख्या लगभग 500 थी। टीम को कई डिपार्टमेंट में विभाजित किया गया था । इनमें स्टूडियो, तम्बू घर, मॉडल स्टेज, फ्लॉवर डेकोरेटर, खाना पकाने, सुलभ शौचालय, हाउस कीपिंग, ट्रीग सुरक्षा, प्रचार टीम, अध्येताओं, दुनिया भर से फिल्म निर्माता, फोटो पत्रकार, पत्रकार, लेखक और ब्लॉगर्स के अलावा 48 स्वयंसेवकों की एक प्रशिक्षित टीम शामिल थी।
यात्रा, वाश युनाइटेड और क्विकसैंड के दिमाग की उपज थी। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश ने यात्रा का नाम निर्मल भारत यात्रा रखा, जो निर्मल भारत अभियान (एनबीए, एक सरकारी कार्यक्रम मूल रूप से संपूर्ण स्वच्छता अभियान का नाम) का हिस्सा बन गई।
निर्मल भारत यात्रा के प्रत्येक पड़ाव के दौरान शिविर सेट करना और मेले की सजावट एक बड़ी चुनौती थी। जिसमें अमूमन चार या पांच दिन का समय जाया होता था। इन खाली दिनों में प्रचार टीमें, दो ऑटो रिक्शा के एक काफिले के साथ आस-पास के क्षेत्रों में प्रचार का काम करती थीं। 10-15 किलोमीटर की परिधि के गांवों में ऑटो में सजे रंगीन गुब्बारे के साथ वे लोगों को कार्निवाल में आने का निमंत्रण दे रहे थे। निर्मल भारत यात्रा के बहुत शुरू से प्रोमो टीम में शामिल जादूगर तुलसी ने हमें बताया कि जहाँ भी वे गांवों में जाते थे, लोगों को इकट्ठा करने के लिये वह जादू का प्रदर्शन करते, जबकि उसके तीन अन्य साथी दमन प्रीत, इमरान खान और मनोज लोगों से खुले में शौच के अंत और साबुन से हाथ धोने का आग्रह करते थे। पूर्व प्रोमो टीम एक दिन औसतन 6-7 गांवों तक पहुँचते थे। इस टीम ने क्षेत्रों में जहां संचार और मीडिया के अन्य साधन कार्य नहीं कर रहे थे, यात्रा के लिए एक विज्ञापन और सूचना के प्रसार तंत्र के रूप में काम किया।
इसके अलावा प्री प्रमोशन की एक टीम स्कूलों में पहले से ही यात्रा के बारे में व्यापक प्रचार करने का काम करती थी। इसमें फीड बैक फाउंडेशन से अनन्या घोषाल की टीम एनबीए के हिस्से के रूप में एक प्रमुख भूमिका में थी, जिसने यात्रा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने से पहले ही स्कूलों में वाश प्रोग्राम के लिये अध्यापकों को राजी किया और टीओटी कार्यक्रम के लिये शिक्षा अधिकारियों से परमिशन लिये। निर्मल भारत यात्रा के बारे में स्थानीय समुदाय के साथ बातचीत कर उन्हें खुले में शौच जाने से रोकने पर आधारित कार्यक्रम कराने को राजी किया। यात्रा पहुंचने के बाद , वाश टीम (स्कूलों में विन्स प्रोग्राम) और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन दल (एमएचएम) पूर्व निर्धारित स्कूलों में जाकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता था। यात्रा के प्रत्येक पड़ाव के दौरान जागरूकता कार्यक्रम 2-से 4 दिनों तक आयोजित किये गए। इनमें स्कूली बच्चों के साथ खेला जाने वाला वल्डॅ टायलेट कप काफी रोमांचक व अट्रैक्टिव था, जिसमें खुले में शौच करने से होने वाली बीमारियों का संदेश छुपा था। विन टीम द्वारा स्कूलों में खाना खाने के पहले हाथ धोने के एक प्रदर्शन ने जिसे जर्मनी में टिपी-टाप कहा जाता है, बच्चों को काफी आकर्षित किया। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां हाथ धोने के लिए एक नलों का इंतजाम नहीं हैं उन स्थानों पर इसी तरह की डिवाइस, स्थापित किया जा सकता है। जिसके माध्यम से बच्चों के हाथ धोने में काफी आसानी होगी और पानी भी काफी कम खर्च होगा।
माहवारी स्वच्छता प्रबंधन टीम ने स्कूली किशोरियों व गांवों में महिलाओं के साथ माहवारी संबंधी समस्याओं पर गहराई में जाकर काफी खुलकर बात किया। इस दौरान टीम को कई मिथकों और सामाजिक वर्जनाओं के बारे में पता चला। खासकर किशोरियां, जो यौवन तक पहुँच चुकी हैं और वह माहवारी और स्वच्छता के मामले में कई एक सामाजिक प्रतिबंधों के साथ रहती हैं। इनमें ज्यादातर ने बताया कि माहवारी आने पर उन्हें ऐसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके बारे में खुलकर बात करना अच्छा नहीं माना जाता। एम एच एम टीम ने इस बारे में शिक्षकों के साथ भी चर्चा की और पूछा कि माहवारी स्वच्छता के प्रति स्कूलों में लड़कियों के बीच जागरूकता पैदा करने में उनकी भूमिका क्या है। माहवारी के दौरान ज्यादातर लड़कियों को स्कूल क्यों छोड़ना पड़ता है। बात खुलकर सामने आई- क्योंकि वहाँ कोई शौचालय नहीं होता हैं या शौचालय बहुत गंदे होते हैं। पैड बदलने और हाथ धोने का कोई विकल्प नहीं होने व अन्य सुविधाओं की कमी की वजह ते उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ता है।
एमएचएम पर हुए जागरुकता कार्यक्रम में फोटो पत्रकार, पत्रकारों, ब्लॉगर्स, फिल्म निर्माताओं और टीवी पत्रकारों रचनात्मक टीम ने शिरकत की, जो विश्व के विभिन्न भागों से यहां आये थे। उन लोगों ने यात्रा का एमएचएम पर हुए जागरुकता कार्यक्रम के मैसेज को बाहर तक पहुँचने का काम किया ।
स्कूलों व गांवों में आउटरीच कार्यक्रम के बाद दो दिवसीय कार्निवाल कई स्टालों के साथ खूबसूरती से सजाया गया। जमीन से करीब 10 फिट ऊंचा एक मंच , जहां गीत, नाटक, नृत्य आस- पास के स्कूलों से बच्चों द्वारा प्रत्तुत किया गया काफी सराहा गया। इसके अलावा मेंले में कई ऐसे खेल थे जो हजारों लोगों की भीड़ एकत्रित करने में काफी सहायक रहे। कार्निवाल की पूरी अवधारणा साफ- सफाई और स्वच्छता का एकमात्र संदेश देने पर आधारित थी। एम एच एम स्टाल में महिलाओं को बताया गया कि कैसे वह सूती कपड़े के साथ अपने सेनेटरी पैड स्वयं बना सकती हैं। जल सहायता स्टाल के माध्यम से विभिन्न स्थलाकृतिक शर्तों के अनुकूल शौचालय के विभिन्न मॉडलों को दर्शाता गया पूरी यात्रा के दौरान कार्निवल औपचारिक समारोह बना जहां स्थानीय सरकार के प्रतिनिधि या केन्द्र से अन्य प्रतिनिधि आए और स्वच्छता के मुद्दों पर बड़ी भीड़ को संबोधित किया जबकि वर्धा, इंदौर और ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश स्वयं उपस्थित थे।
वर्धा से बेतिया तक निर्मल भारत यात्रा में करीब 1,50,000 लोगों की उपस्थिति दर्ज की गई। दो दिवसीय कार्निवल जो सबसे पहले 3 अक्तूबर को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में सेवाग्राम में प्रारंभ हुआ था का समापन 19 नवम्बर 2012 को बिहार में बेतिया में हुआ। दो दिनों के मेले के दौरान 33,000 लोगों की उपस्थिति के साथ सबसे ज्यादा भीड़ राजस्थान स्थित कोटा जिले में सांगौद कस्बे में एकत्रित हुई। यात्रा के दौरान इंडिया वाटर पोर्टल टीम; इवाग टीम और दिल्ली से इवेंट मैनेजमेंट टीम ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जिनके कर्मचारियों की संख्या लगभग 500 थी। टीम को कई डिपार्टमेंट में विभाजित किया गया था । इनमें स्टूडियो, तम्बू घर, मॉडल स्टेज, फ्लॉवर डेकोरेटर, खाना पकाने, सुलभ शौचालय, हाउस कीपिंग, ट्रीग सुरक्षा, प्रचार टीम, अध्येताओं, दुनिया भर से फिल्म निर्माता, फोटो पत्रकार, पत्रकार, लेखक और ब्लॉगर्स के अलावा 48 स्वयंसेवकों की एक प्रशिक्षित टीम शामिल थी।