
ईना निर्मल भारत यात्रा की आर्गनाइजर वाश युनाइटेड के इस प्रयास को बहुत महत्व नहीं देतीं, बल्कि इसे एक दमदार शुरुआत भर मानती हैं। उनका मानना है कि इंडिया में बहुत सिद्दत व मनोवैज्ञानिक ढंग से काम करने की जरूरत है। भारतीय समाज काफी जटिल है, जिसे आसानी से समझा नहीं जा सकता। यहां की कुछ आदतें और पंरपरायें हजारों वर्षों से अस्तित्व में हैं, जिसमें फेरबदल एक टॅफ व चैलेजिंग जॉब है। इनमें खुले में शौच करने से रोक पाने को तो मैं 21वीं सदी की एक बड़ी चुनौती मानती हूं। ऐसा नहीं है कि इसे रोकने के प्रयास नहीं हो रहे हैं, निश्चित ही इंडियन गवर्नमेंट सीरियसली एफर्ट कर रही है। बावजूद इसके वाश युनाइटेड समझता है कि ओपन डिफिकेशन फ्री इंडिया बनाने में करीब पांच से दस साल तो लग ही जायेंगे।

इस यात्रा के दौरान सभी कर्यक्रमों में केवल हैंडवाश को प्रमुखता देने के सवाल पर ईना कहती हैं कि इस देश में हाथ धोया ही नहीं जाता, ऐसा संदेश देना उनका मकसद नहीं है। लेकिन खाना खाने के पहले, टॉयलेट जाने के बाद व माहवारी के समय हाथ धोने में यहां हर दर्जे तक लापरवाही की जाती है, इसका मैं बाकायदे प्रमाण दे सकती हूं। बहुत सारी बीमारियां तो हाथ न धोने की वजह से पनपती हैं। यही वजह है कि यात्रा के दौरान हम हैंडवाशिंग को केंन्द्र में रखना चाहते हैं, और इसमें कुछ गलत नहीं है। हालांकि मैं यह भी मानती हूं कि कम्युनिटी तक हमारी पहुंच कमजोर है, इसलिये हम अपने स्ट्रेटजी में थोड़ा फेर-बदल करने पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, लेकिन हैंडवाशिंग का रिजल्ट काफी पॉजीटिव है। इस पर गंभीरता से लगे रहने की जरूरत है। इंडिया में एक-एक बच्चे को हाथ धोने की आदत डालनी ही पड़ेगी।
भारत में आगे काम करने के सवाल पर ईना कहती हैं कि उनकी योजना यहां की कुछ संस्थाओं के साथ वर्क करने की है, लेकिन कौन रियल है कौन फेक यह पता लगाना थोड़ा मुश्किल काम है।
लेखक- इंडिया वाटर पोर्टल के फेलो हैं