इस वर्ष के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट (MAC) को भारत के साथ एक भागीदार के रूप में लॉन्च किया गया था। अपने कार्बन सिंक को बढ़ाने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप यह कदम, नई दिल्ली को श्रीलंका, इंडोनेशिया और अन्य देशों के साथ मैंग्रोव वनों को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने के लिए सहयोग करेगा।
8 नवंबर को मिस्र के शर्म अल-शेख में कार्यक्रम में भाग लेते हुए, केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत दुनिया में मैंग्रोव के सबसे बड़े शेष क्षेत्रों में से एक है और इसमें वर्षों की विशेषज्ञता है मैंग्रोव आवरण की बहाली का उपयोग इस दिशा में वैश्विक उपायों की सहायता के लिए किया जा सकता है।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और इंडोनेशिया के नेतृत्व में शुरू किया गया मैंग्रोव एलायंस में भारत, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और स्पेन भी शामिल हो गए हैं।मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट का मकसद ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए मैंग्रोव के बारे में दुनिया भर में जागरूकता फैलाना है
संयुक्त अरब अमीरात के जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण मंत्री मरियम बिंत मोहम्मद अल्महेरी ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा कि उनका देश अगले दो महीनों में 30 लाख मैंग्रोव लगाने जा रहा है जो कि सीओपी 26 के संयुक्त अरब अमीरात के उस संकल्प को दोहराता जिसमें उन्होंने 2030 तक 100 मिलियन मैंग्रोव लगाने का लक्ष्य रखता है उन्होंने कहा दुबई स्थित समाचार चैनल की एक रिपोर्ट का हवाला देते गए कहा , "प्रकृति-आधारित समाधानों पर निर्भरता घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूएई की जलवायु कार्रवाई का एक अभिन्न अंग है, इसलिए हम अपने मैंग्रोव कवर का विस्तार करना चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा, "हम इंडोनेशिया के साथ संयुक्त रूप से मैक लॉन्च करके काफी खुश हैं और विश्वास करते हैं कि यह सामूहिक जलवायु कार्रवाई को चलाने और ब्लू कार्बन पारिस्थितिक तंत्र के पुनर्वास में एक लंबा रास्ता तय करेगा।"
मैंग्रोव वर्षों से संरक्षणवादियों का ध्यान केंद्रित रहे हैं और वैश्विक जलवायु के संदर्भ में उनके महत्व को कम करना मुश्किल है। मैंग्रोव वन - पेड़ों और झाड़ियों से मिलकर बनता है। तटीय क्षेत्रों में अंतर्ज्वारीय जल में रहते हैं जो विविध समुद्री जीवन का मुख्य स्त्रोत होते है इसके आलावा वह मोलस्क और शैवाल से भरे सब्सट्रेट छोटी मछलियों, मिट्टी के केकड़ों और झींगों के लिए प्रजनन भूमि के रूप में कार्य करते हैं, इस प्रकार वह स्थानीय कारीगर मछुआरों को एक आजीविका भी प्रदान करते हैं।
ग्रोव वन वातावरण से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और उनका संरक्षण दोनों वातावरण से कार्बन को हटाने में सहायता कर सकते हैं दक्षिण एशिया में विश्व स्तर पर मैंग्रोव के कुछ सबसे व्यापक क्षेत्र हैं, जबकि इंडोनेशिया कुल क्षेत्र का पांचवां हिस्सा रखता है।
भारत में दक्षिण एशिया की मैंग्रोव आबादी का लगभग 3 प्रतिशत हिस्सा है। पश्चिम बंगाल में सुंदरबन के अलावा, अंडमान क्षेत्र, गुजरात में कच्छ और जामनगर क्षेत्रों में भी मैंग्रोव का पर्याप्त आवरण है। हालाँकि, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं - औद्योगिक विस्तार और सड़कों और रेलवे के निर्माण, और प्राकृतिक प्रक्रियाओं - समुद्र तटों को बदलने, तटीय कटाव और तूफानों के परिणामस्वरूप मैंग्रोव आवासों में उल्लेखनीय कमी आई है। ग्लोबल मैंग्रोव एलायंस ने अपनी 2022 की रिपोर्ट में कहा है कि 2010 और 2020 के बीच, लगभग 600 वर्ग किमी मैंग्रोव नष्ट हो गए है , जिनमें से 62% से अधिक प्रत्यक्ष मानव प्रभावों के कारण हुआ है ।
जलवायु सम्मेलन के पिछले सत्रों में देखा गया है कि पर्यवरण के संरक्षण को लेकर 190+ देशों के बीच आम सहमति बनाना एक कठिन कार्य हो गया मुख्य तौर पर यूएनएफसीसीसी के सदस्यों के बीच । उदाहरण के लिए, चीन ने ऊर्जा सुरक्षा जोखिमों और ताइवान के साथ बढ़ते तनाव के बीच कोयले का उपयोग बढ़ा दिया है। बीजिंग के बाद ग्रीनहाउस गैस के दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक अमेरिका के साथ चीन के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए है ऐसे में जलवायु परिवर्तन, कार्बन उत्सर्ज़न को लेकर बातचीत की संभावनाएं जटिल हो गई है ऐसे में जलवायु परिवर्तन को लेकर विश्व ने पिछले दशकों पर जो कदम उठाये है वो अब निराधार भी साबित हो रहे है ।