देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पीने के पानी की किल्लत अपने आप में एक बड़ी समस्या है। इसकी मुख्य वजह जरुरत के हिसाब से पानी की आपूर्ति न हो पाना है। हैरानी की बात यह है कि ऊंची इमारतों में रहने वालों के घरों में तो पानी की आपूर्ति ठीक-ठाक हो जाती है लेकिन मुंबई की पहचान चाल और झोपड़पट्टी इलाके में पानी की आपूर्ति की समस्या हमेशा बनी रहती है।
मुंबई की करीबन एक करोड़ तीस लाख जनसंख्या के लिए मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) हर दिन लगभग 340 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति करती है, लेकिन इतने पानी से मुबंई की प्यास नहीं बुझती है। मुंबईकरों की प्यास बुझाने के लिए प्रति दिन 410 करोड़ लीटर से भी ज्यादा पानी की जरुरत है। जितने पानी की आपूर्ति की जाती है, वह भी लोगों के पास पूरी तरह से नहीं पहुंच पाता है।
दरअसल पानी के पुराने और जर्जर पाइपों की वजह से काफी मात्रा में पानी का रिसाव हो जाता है। इस बाबत बीएमसी के चीफ हाइड्रोलिक इंजीनियर एस.एस. कार्लेकर कहते हैं कि हर महीने पानी के पाइप फटने या उनमें रिसाव से संबंधित औसतन दो हजार शिकायतें मिलती हैं।
इन शिकायतों की मुख्य वजह पानी की कमी ही है क्योंकि लोगों को सही मात्रा में पानी न मिल पाने से कई बार तो लोग जान बूझ कर पाइप लाइन तोड़ देते हैं ताकि वे पानी की चोरी कर सकें। दूसरी बात की मुंबई में जगह-जगह इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े काम चल रहे हैं, जिससे भी पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो जाती है। रिसाव को पकड़ने के लिए अब सीसीटीवी कैमरों की मदद ली जा रही है।
मुंबई की प्यास बुझाने वाली मोडक सागर, तानसा, विहार, तुलसी, अपर वैतरणा और भातसा कुल छह झीलें हैं। इन झीलों की जल संचय की एक सीमा है लेकिन साल दर साल बढ़ती मांग के आगे ये झीलें मुंबईकरों की पूरी प्यास नहीं बुझा पा रहीं।
इस पर मुंबई महानगर पालिका की महापौर शुभा राउल कहती हैं कि पानी की कमी की सबसे बड़ी समस्या बढ़ती जनसंख्या और दूसरी वजह पानी चोरी एवं जल रिसाव है। राऊल कहती हैं कि हमारे यहां जितना पानी चोरी एवं रिसाव में बर्बाद हो जाता है, उतने में हम पुणे जैसे शहर को पानी पिला सकते हैं।
उनका कहना है मुंबई में आने वाला करीबन 30 फीसदी पानी इन्हीं वजहों में बेकार हो जाता है। पानी की सबसे ज्यादा समस्या झेल रहे दक्षिण मुंबई में 80 फीसदी पाइप लाइन पुरानी और जर्जर हालत में हैं।
जल अभियंता एस. एस. कार्लेकर के अनुसार हम झोपड़पट्टियों में 1995 के पहले से ही रहने वाले लोगों को मुंबईकर मानते हैं और उन्हीं की जरुरत के हिसाब से पानी की सप्लाई करते हैं क्योंकि पानी देकर हम उनको मुंबईकर होने का लाइसेंस नहीं देना चाहते हैं।
आपको बता दें कि 2001 में हुई जनगणना के अनुसार मुंबई की जनसंख्या 1.19 करोड़ थी जो आज 1.30 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। तो कह सकते हैं कि 1995 में मुंबई की जनसंख्या एक करोड़ से कम ही थी।
Source
सुशील मिश्र और अरुण यादव / May 11, 2009/ बिजनेश स्टैंडर्ड