देहरादून। लॉकडाउन में श्रमिक न मिलने की संभावना जताकर शासन को नदियों में मशीनें उतारने का मौका मिल गया। इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि नदियों में खनन की जगह अब खुदान होगा। शासन ने अपने आदेश में यह तक स्पष्ट नहीं किया कि किन मशीनों से खनन की परमिशन होगी। खनन तो जेसीबी से लेकर पॉकलैंड तक से होता है। खनन करने वालों को पॉकलैंड जैसी भारी मशीनों से नदियों को खोदने का मौका मिल गया।
उत्तराखंड में सरकार ने खनन खोलने के लिए नियमों में भी बड़े बदलाव करने से भी परहेज नहीं किया। अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने नदियों में खनन के लिए मशीनों की अनुमति देने के आदेश जारी किए हैं। आदेश में कहा गया है कि वर्तमान में चुगान कार्य किए जाने के जाने के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रमिक उपलब्ध नहीं होने तथा श्रमिकों को अधिक संख्या में इकट्ठा किए जाने से कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा फैलने की संभावना को देखते हुए कम से कम श्रमिकों के साथ मशीनों का उपयोग करके खनन गतिविधियां चलाने का प्रस्ताव है।
राज्य स्तरीय पर्यावरण समाघात निर्धारण प्राधिकरण के पत्र का हवाला देते हुए कहा गया कि पर्यावरणीय स्वीकृति वाले 100 हेक्टेयर तक के उपखनिज क्षेत्र में 15 जून2020 तक चुगान की अनुमति दी गई है। साथ ही आदेश में खनन, चुगान पट्टेधारक के लिए शर्त है कि वो श्रम विभाग से इस आशय का प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा कि कोरोना संक्रमण के कारण चुगान क्षेत्र में आवश्यक श्रमिक उपलब्ध नहीं हैं।
खनन खोलने संबंधी शासन का आदेश
इस शर्त पर सवाल यह उठता है कि जब पट्टेधारक से ही सर्टिफिकेट लेना है तो सरकार ने पहले ही यह कैसे मान लिया कि चुगान के लिए श्रमिक उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। वहीं एक तरफ तो आदेश मेंं कहा गया कि श्रमिक नहीं मिल रहे हैं और वहीं कोरोना संक्रमण में ज्यादा श्रमिकों को इकट्ठा नहीं करने की बात कही है। इससे स्पष्ट है कि मंशा कोरोना वायरस संक्रमण और लॉकडाउन की आड़ में मशीनों से खनन को बढ़ावा देने की है।
पूर्व में सरकार ने पर्यावरण और नदियों को नुकसान का हवाला देते हुए नदियों में मशीनों से खनन को रोका है, लेकिन अब इस आदेश में शर्त रखी गई है कि मशीन के प्रयोग से वातावरण पर किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा। उत्तराखंड की नदियों में अवैध खनन के मामले लगातार प्रकाश में आते रहे हैं, ऐसे में मशीनों की अनुमति देकर यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि चुगान करने वाले नियमों का पालन करेंगे।
तो किसके लिए हो रहा आर्थिक चिंतन
एक तरफ तो सरकार कामगारों के लिए आर्थिक चिंतन का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि लॉकडाउन में खनन के लिए श्रमिक नहीं मिल रहे। तो फिर यह चिंतन किसके लिए हो रहा है। मालूम हो कि नदी क्षेत्र किसी भवन की तरह नहीं होता,जहां एक साथ काम करने की मजबूरी हो। नदियों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन आसानी से कराया जा सकता है। मशीनों से खनन की परमिशन पर सवाल उठाया जा रहा है कि सरकार को खनन ठेकेदारों और क्रशर वालों की चिंता ज्यादा सता रही है।
मशीनों से चुगान कैसे होगा, समझ से परे
नदियों में खनन और चुगान की परमिशन होती है। मशीनों का इस्तेमाल नदियों में खुदान करने के लिए किया जाता है। सरकार यह उम्मीद कैसे कर रही है कि मशीनें चुगान तक ही सीमित रहेंगी।
ज्यादा खनन से सिंचाई नहरों में पानी कम हो सकता है
उधर, यह आशंका भी जताई जा रही है कि नदियों में मशीनों से गहराई तक खनन होगा, जैसा कि पूर्व में अवैध खनन से कुएं बना दिए गए। पानी जगह-जगह कम होने से नदियों के बहाव पर असर पड़ेगा, जिससे सीधे तौर पर नदियों से जुड़ी नहरों में पानी कम होने की शिकायत हो सकती है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)