प्रारंभ से ही नदियां सिंचाई का सबसे अच्छा माध्यम रही हैं, फिर चाहे वें बरसाती नदी हों या सदानीरा नदियां। भूजल को रिचार्ज करने में भी नदियों का अहम योगदान होता है, जिससे विभिन्न जल प्रणालियों में जल की उपलब्धता बनी रहती है। लेकिन बढ़ते जलवायु परिवर्तन और अनियमित विकास व मानवीय गतिविधियों के कारण देश की 4500 से ज्यादा छोटी बड़ी नदियां सूख चुकी हैं। कई नदियां सूखने की कगार पर हैं। यमुना नदी नाले में तब्दील हो चुकी है, जबकि दुनिया की सबसे पवित्र नदी ‘गंगा’ का जल भी लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। इन सभी का विभिन्न जल प्रणालियों पर भी प्रभाव पड़ा है, जिस कारण देश के अधिकांश तालाब, पोखर, बावड़ी, कुएं, झील और विभिन्न प्राकृतिक जलस्रोत आदि सूख चुके हैं या सूखने की कगार पर हैं। नदियों के सूखने और पानी के स्तर के कम होने से सूखे की स्थिति बढ़ गई है। तो वहीं ग्लोबल वार्मिंग ने भी सूखे की इस रफ्तार को और बढ़ा दिया है। हालांकि नदियों को नुकसान पहुंचने के कई अन्य कारण भी हैं, जिनमें खनन भी शामिल है।
हरिद्वार में गंगा नदी का खनन हमेशा चर्चा में रहता है। गंगा नदी को खनन से निजात दिलाने के लिए स्वामी शिवानंद के नेतृत्व में मातृसदन एक दशक से भी ज्यादा समय से संघर्ष कर रहा है। गंगा की लड़ाई में मातृसदन के तीन संत अपना बलिदान दे चुके हैं, जिसके बाद हरिद्वार दुनिया में एकमात्र ऐसा शहर बन गया है, जहां नदी के लिए तीन संतों ने अपने प्राण त्यागे हैं। बलिदान देने वाले इन संतों में प्रख्यात वैज्ञानिक जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद भी शामिल थे। इसके बाद भी मातृसदन ने गंगा की लड़ाई नहीं रोकी और संघर्ष जारी रखा। संघर्ष का ही परिणाम है कि नेशनल मिशन फाॅर क्लीन गंगा के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने खनन पर रोक के लिखित आदेश दिए थे, जबकि हाईकोर्ट और एनजीटी ने खनन पर पहले से ही रोक लगा रखी थी। ऐसे में हरिद्वार में न केवल हाईकोर्ट और एनजीटी के आदेश के बाद भी खनन हो रहा है, बल्कि एनएमसीजी का आदेश भी कागजी साबित हुआ है। जो खनन फिलहाल हो रहा है या पहले हो चुका है, वो भी मानकों को दरकिनार कर हुआ है। इसका खामियाजा नदियों के साथ ही लोगों को भी भुगतना पड़ रहा है।
हरिद्वार के लालढांग क्षेत्र से बरसाती नदी ‘रवासन’ बहती है। ये गंगा की सहायक नदी है। अभी तो इसे बरसाती नदी ही कहा जाता है, लेकिन कई दशक पहले इसमें पानी रहता था। रसूलपुर मीठीबेरी, मंगोलपुरा, पीली पढ़ाव, नलोवाला, गेंड़ीखाता, तपड़ोवाली आदि में गुल नहर द्वारा ही सिंचाई की जाती थी। नहर में बरसात के दौरान रवासन नदी का पानी प्राकृतिक तौर पर ही आ जाता था। किसानों ने यहां रवासन नदी का पानी खेतों में लाने के लिए लालढांग मीठीबेरी गांव में लगभग पांच स्थानों पर छोटे-छोटे बांध बना रखे हैं। लेकिन यहां पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से खनन किया जा रहा है। उत्तराखंड राज्य निर्माण से पहले भी नदी की गहराई करीब एक मीटर थी। खनन कार्य होता भी था, तो मजदूरों के द्वारा किया जाता था
ऐसे में बरसात के दौरान जब रवासन नदी में भारी पानी आता तो कई बार खेतों में भी पानी घुस जाता था, लेकिन उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद से वन विकास निगम और निजी पट्टों की आड़ में खनन मशीनों ने किया जाता है। खनन के कारण रवासन नदी का तल 15 से 20 फीट गहरा हो गया है। नदी का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ने से जो पानी के बहाव में भी तेजी आई है। अब छोटे बांधों पर पानी ठहरता भी नहीं है। जिस कारण खेतों में अब सिंचाई के लिए पानी नहीं आ पा रहा है। ऐसी स्थिति में यहां हजारों बीघा जमीन बंजर होने की कगार पर है। स्थानीय ग्रामीण किसान हुकम सिंह, कमलेश द्विवेदी, नरेश सैनी, ऋषिपाल सिंह, असगर अली, यूनुस, योगेस सिंह, विपिन सिंह, राजकुमार आदि ने बताया कि अंधाधुंध खनन के कारण खेतों के लिए बनाई गइ नहरों में पानी जाना बंद हो गया है।
मीठीबेरी रसूलपुर के ग्राम प्रधान जगपाल सिंह ग्रेवाल ने बताया कि कृषि सिंचाई के लिए पंचायत में पर्याप्त साधन नहीं हैं। 7 हजार बीघे की कृषि के लिए केवल 6 सरकारी नलकूप हैं। रवासन नदी में हुए खनन से नदी का पानी किसानों की पहुंच से दूर हो गया है। खनन का कई बार विरोध भी किया गया, लेकिन किसानों की कोई नहीं सुनता है।
हालांकि यहां जमीन बंजर ही नहीं हो रही है, बल्कि कृषि भूमि नदी में समा भी गई है। नदी की गहराई बढ़ने से बरसात में आने वाला तेज वेग नदी के किनारों को काटने लगा है। नदी के गहराने के साथ यहां भू-कटाव बढ़ा है। ऐसे में सरकार द्वारा लाखों रुपये के खनन से रेवन्यू के लालच के चक्कर में किसानों की करोड़ों रुपये की 250 बीघा से ज्यादा जमीन नदी में समा चुकी है।
विधायक स्वामी यतीश्वरानंद का कहना है कि खनन चुगान राज्य सरकार की खनन नीति के अंतर्गत कराया जाता है। जिसका एक कारण राजस्व प्राप्त करना भी है। यदि ग्रामीण को रवासन नदी में चुगान से नुकसान पहुंचा है या उनकी संपत्ति को खतरा है, तो इसके लिए वे स्वयं ग्रामीणों के साथ मिलकर विरोध करेंगे। साथ ही क्षेत्र में सिंचाई के लिए जल्द तीन नए नलकूप लगाए जाएंगे।
हिमांशु भट्ट (8057170025)