नदी चली जाएगी, यह न कभी ठहरेगी

Submitted by admin on Mon, 09/16/2013 - 12:35
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काव्य संचय- (कविता नदी)
नदी चली जाएगी, यह न कभी ठहरेगी!
उड़ जाएगी शोभा, रोके यह न रुकेगी!
झर जाएँगे फूल, हरे पल्लव जीवन के,
पड़ जाएँगे पीत एक दिन शीत भरण से!
रो-रोकर भी फिर न हरी यह शोभा होगी!
नदी चली जाएगी, यह न कहीं ठहरेगी!