नदी का पुल – 1

Submitted by Hindi on Mon, 08/26/2013 - 12:39
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काव्य संचय- (कविता नदी)
ऐसा क्यों हो कि मेरे नीचे सदा खाई हो
जिसमें मैं जहां भी पैर टेकना चाहूं
भंवरे उठें, क्रुद्ध;
कि मैं किनारों को मिलाऊं
पर जिनके आवागमन के लिए राह बनाऊं
उनके द्वार निरंतर
दोनों ओर से रौंदा जाऊं?
जबकि दोनों को अलगाने वाली नदी निरंतर बहती जाए, अनवरुद्ध?

बर्कले (कैलिफोर्निया), 29, अक्तूवर, 1969