नदी पर अंधेरा

Submitted by admin on Tue, 12/03/2013 - 12:17
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काव्य संचय- (कविता नदी)
आखिरी स्टीमर के
चलने का वक्त
अंधेरे के
नदी पर छाने का वक्त
होता है।

एक संयत बेचैनी से भरी
नदी
कुछ उभर आती है
आसमान की ओर।

आसमान
आधा नदी के भीतर
और आधा नदी के करीब
उसके बाहर होता है।
उजाला
एक ललाए कोने में
सिमटता जाता है।

सूरज
आधा नदी के छोर पर
डूबता है
और आधा
पुल के नीचे
नदी के भीतर।

नदी के पुल के करीब
आ जाती है
और अंधेरा
उसे छूने लगता है।

नदी अचानक
अकूत गहरा जाती है
जब अंधेरा
नदी को छूता है।

तटों पर दूर-दूर तक
जो जंगल
दिन-भर गूंजते रहे थे
चुप खड़े हो जाते हैं
सिर झुकाए।

आखिरी स्टीमर
धीमे-धीमे धड़कता हुआ
दूसरे घाट की ओर बढ़ता है।
नदी और
अंधेरे के बीच में से
हटता हुआ।

स्टीमर पर बैठे लोग
आंखे फैलाए
तटों को घूरते रहते हैं।

अंधेरे में डूबी नदी की
गहराती सांसे
उनकी पीठें सहलाती हैं।

स्टीमर से उतरकर
वे कहीं दूर चले जाते हैं
और अंधेरे से लिपटी नदी की ओर
मुड़कर नहीं देखते।