पहाड़ के लोगों के तमाम दर्द हैं, लेकिन जल संकट का दर्द पहाड़ की समस्या बनता जा रहा है। राज्य के 12 लाख 45 हजार 472 घरों में पानी का नल नहीं है। ये लोग पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न जलस्रोतों पर निर्भर हैं। पर्वतीय इलाकों में जिन घरों में पानी के नल हैं, उनके घरों तक पानी नदियों, झील और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित पेयजल योजनाओं के माध्यम से आता है, लेकिन अधिकांश प्राकृतिक जलस्रोत सूख चुके हैं, जो बचे हैं उनमें से अधिकांश प्रदूषित हैं। कई नदियां सूखने की कगार पर हैं। झीलों के जलस्तर में भी गिरावट आई है। ऐसे में पहाड़ के कई इलाकों को पानी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। इसलिए जल जीवन मिशन के तहत हर घर को नल से जल देने की योजना है, लेकिन पहाड़ में घटते और प्रदूषित होते जल के बीच इस योजना की राह आसान नहीं होगी।
नदियों से पानी की योजनाएं संचालित करने में कई समस्याएं रहती हैं। सबसे बड़ी समस्या बरसात के दौरान भारी मात्रा में गाद आने से होती है। नदियों के साथ गाद आने से वो पानी के साथ पाइपलाइनों और पंप में भर जाती है, जिससे पानी की आपूर्ति बाधित होती है और बड़ी आबादी को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है। इसी समस्या से फिलहाल उत्तराखंड का अल्मोड़ा जनपद दो-चार हो रहा है। मध्यरात्रि बाद उच्च पर्वतीय इलाकों में लगातार घंटों बारिश से कोसी नदी में पंप हाउस के इर्दगिर्द कई क्विंटल सिल्ट जमा हो गया था। इससे अल्मोड़ा नगर व आसपास के लगभग 300 गांवों को जलापूर्ति करने वाले पंपों ने काम करना ही बंद कर दिया। नतीजतन, बीती बुधवार को जलापूर्ति ठप रही। शाम छह बजे तक जैसे तैसे 40 फीसद सिल्ट ही हटाया जा सका।
इधर, गुरुवार को कोसी बैराज के गेट खोल पानी छोड़ा गया। इससे पंप हाउस के आसपास जमा शेष 30 फीसद गाद को बहाने में मदद तो मिली। मगर 20 घंटे पसीना बहाने के बाद जल संस्थान नगर क्षेत्र के मात्र 20 प्रतिशत उपभोक्ताओं को ही पानी पहुंचा सका। यानी 1.20 लाख उपभोक्ताओं में से करीब 24 हजार को ही पानी मिला। शेष 80 फीसद क्षेत्र बेपानी ही रहा। जल संस्थान के ईई मुकेश कुमार ने बताया कि गुरुवार को 20 प्रतिशत उपभोक्ताओं को ही पेयजल उपलब्ध करा सके। मौसम ने साथ दिया तो शुक्रवार से नगर स्थित सभी 10 जलाशयों से पेयजल आपूर्ति सुचारू कर दी जाएगी। ग्रामीण इलाकों को भी जरूरत के अनुरूप जलापूर्ति शुरू कर देंगे।
हालांकि ये समस्या केवल अल्मोड़ा या यहां के 300 गांव की नहीं है, बल्कि उत्तराखंड और देश के उन तमाम इलाकों की समस्या है, जहां नदियों के पानी से घरों में पेयजल की आपूर्ति कराई जाती है, लेकिन भविष्य में जल संकट की समस्या और गहरा सकती है। क्योंकि जिस तरह से नदियों का जल लगातार कम हो रहा है, उससे नदियों पर आधारित पेयजल योजनाओं से जलापूर्ति करना मुश्किल हो जाएगा। विकल्प के तौर पर हम पानी की आपूर्ति करने के लिए भूजल पर भी निर्भर नहीं रह सकते। क्योंकि देश में अतिदोहन के कारण भूजल पाताल तक पहुंच गया है और कई इलाकों में समाप्त होने की कगार पर है। घटते पानी का असर किसानी पर भी पड़ेगा, जिससे प्रत्यक्ष तौर पर अनाज की कम पैदावार होगी। इससे भुखमरी बढ़ने की भी संभावना है। इसलिए समाधान के तौर हम जल संरक्षण और वर्षा जल संग्रहण पर जोर दे सकते है। इसके लिए घरेलू और व्यावसायिक, सभी प्रकार के प्रतिष्ठानों में वर्षा जल संग्रहण को अनिवार्य किया जाना चाहिए। साथ ही पहाड़ी और मैदानी इलाके में चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों को लगाया जाए। लेकिन जल की स्वच्छता का भी हमे पूरा ध्यान रखना होगा। इससे काफी हद जल संकट को टाला जा सकता है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)