मार्गों पर वृक्ष लगाने की परम्परा भारत में प्राचीन काल से ही चली आ रही है। भारतीय जन-मानस ने वनों व वृक्षों का महत्व हजारों वर्ष पूर्व ही समझ लिया था। सम्पूर्ण विश्व में आज वृक्षों और वनों के संरक्षण की बात हो रही है परंतु हम भारतीय तो प्राचीन काल से ही इनके महत्व को समझते थे। वृक्षों के महत्व को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सामान्य जन को समझाने के लिये या तो उन्हें देवी-देवताओं से सम्बंधित बताया गया था फिर उन्हें किन्हीं अन्य कारणों से पूजनीय बताकर उनके काटने व हानि पहुँचाने को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस प्रकार वृक्षों का संरक्षण आसान हो गया। यहाँ तक कि भारतीय वासतुशास्त्र भी कौन सा पेड़ कहाँ और किस दिशा में लगाया जाए, इस विषय में विस्तृत विवरण देता है, जो अंधविश्वास पर नहीं, वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होता है। मार्गों में कौन से वृक्ष कहाँ और कैसे लगाये जायें, इसका निर्णय भी हमारे प्राचीन ग्रंथ संदर्भों से लेकर आज के वैज्ञानिक शोधों तक वृक्षों के आकार, प्रकार, मजबूती, सघनता, जीवनकाल एवं उपयोगिता को आधार बनाकर ही किया जाता है।
आज बढ़ती हुई जनसंख्या, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण के कारण वनों का तीव्रता से क्षय हुआ है। हम जहाँ एक ओर वनों की पुर्नस्थापना के प्रयास कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर हम नगरों, महानगरों, राजमार्गों पर हरित-पट्टियां लगाकर प्राकृतिक वन संपदा व जैव विविधता संरक्षण के प्रयास भी कर रहे हैं। भारत तीव्र गति से प्रगति करता हुआ राष्ट्र है जहाँ पुराने राजमार्गों के पुनरुद्धार के साथ-साथ नये बसते हुए क्षेत्रों में हजारों किलोमीटर राजमार्ग बनाये जा रहे हैं। नवीन नगरीय व औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना के साथ संपर्क मार्गों, नगरीय मार्गों व राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण हेतु हजारों वृक्षों और कृषि उपयोगी भूमि को नष्ट करके कंक्रीट के जंगलों में बदला जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि योजनाबद्ध विधि से कम से कम राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे वृक्ष लगाकर कुछ सीमा तक प्राकृतिक वृक्ष/ वन असंतुलन को कम किया जा सके।
वर्तमान में भारत में 33.40 लाख किमी. सड़कों का जाल फैला हुआ है। इसमें से 65,569 किमी. राष्ट्रीय राजमार्ग है। इस वृहद सड़क जाल में, भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। वनस्पति विविधता के दृष्टिकोण से भी भारत बहुत संपन्न देश है। सड़कों के किनारे लगे वृक्षों का भी वनस्पति विविधता संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। राजगामार्गों के किनारे के ये वृक्ष जहाँ एक ओर राजमार्गों को सुरक्षा प्रदान करते हैं वही दूसरी ओर ये वृक्ष मार्गों पर चलने वालों को छाया व सुखद अनुभूति देते हैं एवं वाहनों से निकले प्रदूषण को भी नष्ट करता है।
राजमार्गों पर वृक्ष लगाने की परम्परा अति प्राचीन है। वेदों में भी वृक्षों के महत्व का विस्तृत विवरण है। सम्राट अशोक भी उन सम्राटों में एक थे, जिन्होंने राजमार्गों पर वृक्ष लगाये व आश्रय बनवाये थे। मुगलकाल में अकबर ने राजमार्गों पर वृक्ष लगवाये, आज भी दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में मार्गों पर प्राचीन वृक्ष बहुतायत में मिल जाते हैं। प्राचीन भारत के लोग मार्गों पर वृक्ष लगाने के महत्व को अच्छी तरह समझते थे और योजनाबद्ध तरीके से मार्गों पर वृक्षों को लगाते थे। कश्मीर, हिमालयी क्षेत्र, उपहिमायली क्षेत्र आसाम, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारतीय प्रदेशों में राज मार्गों पर बहुत ही सुनियोजित ढंग से लगे वृक्षों की कतारें अभी भी देखने को मिल जाती हैं। झेलम नदी के किनारे चिनार के वृक्षों की कतारें बहुत सुंदर रूप से लगी हैं। दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग, लाहौर से कलकत्ता तक जाने वाली ग्रैण्ड ट्रंक रोड, दक्षिण भारत के अधिकांश राजमार्गों पर कहीं-कहीं क्रमबद्ध तरीके से लगी समान वृक्षों की सुंदर पंक्तियां दिखाई पड़ जाती हैं। अवध के नवाबों ने लखनऊ और आस-पास के क्षेत्रों में बहुत ही नियोजित ढंग से वृक्षारोपण कराया था। लखनऊ से कानपुर, शाहजहाँपुर, सीतापुर, अयोध्या, सुल्तानपुर और इलाहाबद जाने वाले आठों दिशाओं में फैले राजमार्गों पर इमली, पीपल, आम, जामुन, बरगद, गूलर आदि वृक्षों की समान सुंदर कतारें लगी हुई थीं। अभी हाल के कुछ वर्षों के सुंदरीकरण और सड़कें चौड़ी करने हेतु हजारों सुंदर सघन सैकड़ों साल पुराने वृक्षों की बलि दे दी गई।
राष्ट्रीय राजमार्गों पर सुनियोजित रूप से लगे वृक्ष जहाँ एक ओर लंबी यात्रा को सुखद बनाते हैं वहीं दूसरी ओर यह वृक्ष वन-संपदा, जैव विविधता एवं पर्यावरण का संरक्षण करते हैं तथा वातावरण को भी शुद्ध करते हैं। इसके अतिरिक्त वृक्ष का प्रत्येक भाग उपयोगी होने के कारण आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक होते हैं। आज के परिदृश्य में जहाँ चारों ओर मानव आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर हो रहा है और वन, वृक्षों, पेड़-पौधों व कृषि योग्य भूमि को उजाड़ कर उद्योगों, आवासीय क्षेत्रों व मार्गों का निर्माण किया जा रहा है। इस कारण यह तत्काल और प्राथमिक स्तर की आवश्यकता है कि एक योजनाबद्ध विधि से पुन: वृक्षारोपण किया जाए और नये बसते नगरीय क्षेत्रों में यह केवल मार्गों पर ही संभव है। हम नये बने राजमार्गों के किनारे पर तेजी से वृद्धि करने वाले घने छायादार वृक्षों का सुनियोजित रोपण कर सकते हैं। इस योजना को कार्यरूप देने के लिये जलवायु, तापमान, वर्षा आदि के आधार पर उचित वृक्षों का चुनाव कर उनका रोपण करें। भारत एक अत्यधिक भौगोलिक विविधता वाला देश है अतएव वृक्षारोपण करते समय हमें स्थानीय वातावरण के अनुरूप ही वृक्षों का चयन करना पड़ेगा, क्योंकि हर क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार के वृक्ष लगाये जाते हैं।
सन 1937 में श्री मनोहर लाल चतुर्वेदी ने सड़कों पर छायादार वृक्ष लगाने का सुझाव दिया था। राष्ट्रीय राजमार्गों और नगरीय मार्गों पर अलग-अलग प्रकार के वृक्ष लगाये जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग अपेक्षाकृत चौड़े होते हैं अत: यहाँ पर ऐसे वृक्ष लगाये जाएं जो आकार में बड़े हों और सघन तथा छायादार हों, साथ ही साथ आर्थिक दृष्टिकोण से भी उपयोगी हों। राज मार्गों पर वृक्ष लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे एक कतार में लगे पेड़ एक ही प्रकार के हों जो सड़क के किनारे एक ही आकार व सघनता से वृद्धि करें, उनमें लम्बे और नाटे, सघन या विरल, वृक्ष एक साथ न लगे हों। जबकि नगरीय मार्गों पर लगाये जाने वाले वृक्ष को आकार में छोटा होना चाहिए जिससे कि वृक्ष बढ़ने पर बिजली के तारों से न टकराये और अगर ये पौधे एक ही प्रजाति के फूल वाले वृक्ष हों तो पुष्पन के मौसम में रंगीन फूलों से लदी वृक्षों की कतारें अत्यंत सुंदर प्रतीत होंगी। नगर के जिन चौड़े मार्गों पर वृक्षों की दो कतारें लगाना संभव हो वहाँ अंदर वाली कतार में छोटे वृक्ष, जैसे गुलमोहर, अमलताश तथा बाहरी कतार में मझोले पौधे, जैसे- जामुन, नीम, महुआ, पाकर, नीम, चमेली इत्यादि लगाये जा सकते हैं।
राष्ट्रीय राजमार्गों पर जहाँ तिराहे चौराहे हो या मार्ग विभाजक कटाव हो, वहाँ छोटे रंगीन फूलों वाले वृक्ष लगाये जा सकते हैं। इससे इन मार्गों पर चलने वाले वाहन चालकों को बड़े वृक्षों की क्रम-बद्धता को विखण्डित करते आकस्मिक रूप से छोटे वृक्ष दिखाई पड़ने से सहज ही तिराहे, चौराहे या मार्ग विभाजक के खुले होने का अनुमान हो जायेगा। इससे दुर्घटनाओं से भी बचा जा सकेगा।
नये बने राष्ट्रीय राजमार्गों और नगरीय मार्गों के मध्य के मार्ग विभाजकों पर छोटे आकार के वृक्ष/ पौधे लगाये जा सकते हैं। सड़क के दोनों ओर लगाये गये वृक्षों का मुख्य उद्देश्य छाया प्रदान करना होता है। इसलिये वृक्षारोपण करते समय ऐसे वृक्षों का चुनाव करना चाहिए जो शीघ्रता से वृद्धि करने वाले हो तथा लम्बे, चौड़े, छत्र आकार वाले वृक्ष हों, जिनकी छाया सड़कों पर भी पड़ती हो। इस दृष्टि से नीम, महुआ, आम, इमली जैसे- वृक्ष अधिक उपयोगी होते हैं। इन वृक्षों को 12-15 मीटर की दूरी के अंतर पर लगाना चाहिए जिससे उनका छत्र भली-भांति फैल सके।
राष्ट्रीय राजमार्गों व नगरीय मार्गों पर लगाने हेतु निम्न वृक्षों का चयन किया जा सकता है :-
राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगाये जाने वाले वृक्ष
क्र.सं. | प्रचलित नाम | वैज्ञानिक |
1. | नीम | एजाडाईरेक्टा इंडिका |
2. | महुआ | बेसिया लैटीफोलिया |
3. | इमली | टमरिन्डस इंडिका |
4. | बरगद | फाइकस बेगांलैंसिस |
5. | पीपल | फाइकस रेलिजिओसा |
6. | शीशम | डल्वर्जिया सिसू |
7. | आम | मैंगीफेरा इंडिका |
8. | सफेद सिरिस | एल्बीजिया प्रोसेरा |
9. | गूलर | स्टरक्यूलिया यूरेन्स |
10. | सेमल | बोमबैक्स सिबा |
11. | पाकर | फाइक्स इन्फेक्टोरिया |
12. | अशोकन | पोलियेल्थिया लांगीफालिया |
13. | सिरिस | एल्बिजिया लैबेक |
14. | देवदार (पहाड़ी राजमार्ग हेतु) | सिड्रस देवदार |
15. | रामफल (चल्टा) पहाड़ी क्षेत्रों हेतु | डिलीनिया इंडिका |
16. | चीड़ (पहाड़ों हेतु) | पाइनस रोक्सबर्गाई |
17. | साल | शोरिया रोबस्टा |
18. | चिलानी (निडलवुड) | शाइमा वलिश्याई कोर्थ |
19. | धामन | ग्रीबिया टिलाईफोलिया |
20. | जामुन | यूजेनिया जम्वोलाना |
21. | चिनार | प्लेटेनस ओरियण्टेलिस |
नगरीय मार्गों पर लगाये जाने वाले वृक्ष एवं पौधे
क्र. सं. | प्रचिलत नाम | वैज्ञानिक नाम |
1. | कचनार | वाउहिनिया वैरीगेटा |
2. | अमलताश (गुलाबी) | कैशिया नोडोसा |
3. | अमलताश (पीला) | केशिया फिस्टुला |
4. | पलास, ढाक | ब्यूटिया मोनोस्पर्मा |
5. | गुलमोहर (लाल, नारंगी) | डेलोनिकस रीजिया |
6. | गुलमोहर (नीला) | जैकेरंडा माइमोसीफोलिया |
7. | कमरख | एवरहोआ कैरमबोला |
8. | बोतल ब्रश | कैलिस्टिमोन लेंस्योलेटस |
9. | कदम्ब | ऐथोसेफेल कदम्बा |
10. | जामुन | यू्रजीनिया ओपरक्यूलेटा |
11. | बकणन, बकायन | मेलिया एजेडेरेक |
12. | तेण्डू | डायोस्पाइरोस मिलनोजाइलोन |
13. | सैन्जन (सहजन) | मोरिन्जा ओलीफीरा |
14. | शहतूत | मोरिस अल्वा |
15. | अशोक | सराका अशोका |
16. | भोजपत्र | विदूला एलनोइडिस |
17. | देवदार | सिडरस देओदारा |
18. | चीड़ | पाइनस रोक्सबर्गाई |
19. | टीक | टिकटोना ग्रेनडिस |
20. | नीमचमेली | मिलिंगटोनिया होर्टसिस |
21. | मौलश्री | माइमोसोप्स एलेंजी |
22. | पुत्रजीवा | पुत्रजीवा रोक्सबर्गाई |
कुछ वृक्ष, जैसे- यूकेलिप्टस, नीमचमेली, जामुन आदि के वृक्षों की लकड़ी कमजोर होती है अत: इन्हें राजमार्गों के किनारे नहीं लगाना चाहिए, साथ ही साथ कंटीले वृक्ष, जैसे बेर, बबूल को भी मार्गों के निकट नहीं लगाना चाहिए क्योंकि कमजोर पौधे आंधी-पानी में टूट कर मार्ग पर गिर जाते हैं जिससे राजमार्ग अवरुद्ध होंगे, साथ ही साथ वाहन व यात्रियों को भी गंभीर हानि पहुँच सकती है जबकि कटीले पौधें में छाया का भी अभाव होगा और इनसे यात्रियों को भी नुकसान पहुँच सकता है।
मार्ग पर लगाये जा सकने योग्य कुछ महत्त्वपूर्ण पौधों का विवरण व आर्थिक महत्व निम्नवत है :-
इमली (टमरिन्डस इंडिका)
यह एक सुंदर तथा बड़ा छायादार वृक्ष है जो शुष्क जलवायु में भी आसानी से उग आता है। यह सड़क की धूल, मिट्टी को भी आसानी से सहन कर लेता है। इसकी लकड़ी और फल दोनों ही उपयोगी हैं। लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर बनाने में तथा फलों का प्रयोग, मसाले, अचार, चटनी तथा कई प्रकार की भोज्य सामग्री बनाने में होता है।
आम (मैगीफेरा इंडिका)
यह बहुउपयोगी वृक्ष है। इसका प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है। इसका फल खाने योग्य है जो पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होता है और आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है। इसकी छाया भी सघन होती है। इसकी लकड़ी का उपयोग विभिन्न कार्यों व हवन इत्यादि में किया जाता है। इस वृक्ष का औषधीय महत्व है तथा ऋग्वेद व यजुर्वेद में इसकी विशेषताओं का उल्लेख है।
नीम (एजेडिरेक्टा इंडिका)
यह एक दधीची वृक्ष है जिसका प्रत्येक भाग उपयोगी है। इसकी लकड़ी, छाल, पत्तियां, फल, फलों से निकला तेल, प्रत्येक भाग का औषधि, कीटनाशी, प्रतिरक्षी व कीट सुरक्षित काष्ठ सामग्री निर्माण में उपयोग होता है। इसके बीजों से निकली खली का भी जैविक खाद के रूप में प्रयोग होता है। यह पेड़ भी आसानी से उगता है।
शीशम (डल्बर्जिया शीशू)
यह एक घना छायादार वृक्ष है। इस वृक्ष की लकड़ी बहुत मजबूत होती है जिसका उपयोग इमारती लकड़ी के रूप में फर्नीचर तथा लकड़ी के पुल बनाने में किया जाता है।
सफेद सीरिस (एल्वीजिया प्रोसेरा)
यह शीघ्रता से उगने वाला छायादार वृक्ष है। इसका तना पीला होता है। यह वृक्ष साधारण सूखा सह सकता है। इसकी लकड़ी का काष्ठीय सामग्री बनाने व जलावन में उपयोग होता है।
महुआ (बेसिया लैटीफोलिया)
यह एक घना छायादार शोभाकारी वृक्ष है। इसके फल खाये जाते हैं। इसके तेल का चिकित्सकीय व प्रसाधन सामग्री में उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त साबुन, मोमबत्ती बनाने में तथा स्नेहक व ग्रीस के रूप में इसके तेल का प्रयोग होता है। इसके फलों से शराब भी बनती है।
गूलर (स्टरक्यूलिया यूरेन्स)
यह एक मजबूत घना छायादार वृक्ष है। इससे गोंद, छाल से रेशा व लकड़ी प्राप्त होती है। इसकी छाल से पूरे साल गोंद निकलता रहता है जिसका व्यापारिक व औषधीय महत्व है। इसकी लकड़ी खिलौने, गिटार, पैकिंग के डिब्बे बनाने के काम आती है।
अमलताश (कैसिया फिस्टुला)
इसका प्रत्येक भाग उपयोगी है। इसके छाल और पत्तियों का औषधीय प्रयोग, फल का गूदा खाने व मुरब्बा बनाने में, लकड़ी का उपयोग कुल्हाड़ी, मुगरी, हथौड़ी के हत्थे बनाने में होता है।
प्रत्येक प्रकार के वृक्षों का अपना एक आर्थिक महत्व होता है। यदि किसी क्षेत्र में सड़कों के किनारे नीम व महुआ के वृक्षों की कतारें लगी हों तो उन क्षेत्रों में नीम और महुआ के तेल तथा अन्य उत्पादों, जैसे नीम की खली, दातुन, गोंद इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है। नीम के तेल का औषधीय प्रयोग और महुआ के तेल का प्रयोग औषधीय एवं प्रसाधन सामग्री के निर्माण में किया जाता है। इमली, आम का भी अपना एक उपयोग पूरे भारत में है। इसी प्रकार हिमालय के निकटवर्ती क्षेत्रों में जहाँ शीशम, साल, टीक, चीड़, सागौन आदि के अनुकूल वातावरण होने के कारण इन वृक्षों को लगाया जाता है। वहाँ लकड़ी की बनी चीजों और उच्चकोटि की लकड़ी का उत्पादन होता है। साथ ही साथ स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर व आर्थिक सम्पन्नता भी मिलती है।
मार्गों पर वृक्षारोपण से प्रदूषण से भी मुक्ति मिलती है क्योंकि मार्गों पर लगे वृक्ष वाहनों से निकली दूषित गैसों व प्रदूषकों का अवशोषण कर इन मार्गों के वातावरण को एक सीमा तक शुद्ध करते हैं तथा दूर तक फैली हरितिमा जहाँ एक ओर यात्रा को सुखद बनाकर मन-मस्तिष्क को स्फूर्ति प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक असंतुलन भी कम करेंगे।
परंतु यह चिंता का विषय है कि विकास व औद्योगिकीकरण के नाम पर राजमार्गों पर लगे दसियों हजार वृक्षों को निर्ममता से काट डाला गया और उनके स्थान पर लगाये गये वृक्ष लापरवाही व सामाजिक जागरूकता के अभाव में केवल कुछ प्रतिशत ही लग पाये, परिणाम स्वरूप हमें अनेक मार्गों पर जहाँ कुछ वर्ष पूर्व घने छायादार सुंदर वृक्षों की कतारें दिखाई पड़ती थीं वहाँ अब कई-कई किलोमीटर तक छितरे हुए कुछ मरणासन्न नवजात वृक्ष ही दिखते हैं। आज आवश्यकता है कि इस देश का प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी मानकर वृक्षों को लगाये और उनके रख-रखाव में सहयोग करे।
सन्दर्भ
1. चौधरी, एच. जे. एवं पाण्डेय, डी. एस. (2007) प्लान्ट्स ऑफ इंडियन बोटेनिक गार्डेन, बी. एस. आई. पब्लि., देहरादून।
2. चक्रवर्ती, आर. के.; पाण्डेय, डी. एस. एवं मुखोपाध्याय, डी. पी. (2010) डायरेक्ट्री ऑफ प्लान्ट्स इन बोटेनिक गार्डेन ऑफ इंडिया, फ्लोरा ऑफ इंडियन सिरीज, 4।
3. कार्तिकेयन, एस.; संजप्पा, एस.; एवं मूर्थी, एस. (2009) फ्लावरिंग प्लान्ट्स ऑफ इंडिया, खण्ड 1, सेन्ट जोसेफ प्रेस तरूवनन्तपुरम।
4. हजरा, पी. के. (1995) प्लान्ट वेल्थ ऑफ नन्दा देवी बायो. रिजर्व, दीप प्रिन्टर्स, नई दिल्ली।
5. नायर, एम. पी.; राममूर्ति, के. एवं अग्रवाल, वी. एस. (1994) इकनोमिक प्लान्ट्स ऑफ इंडिया, प्रवर्तक प्रिटिंग, कलकत्ता।
मोहित तिवारी, प्रतिभा गुप्ता तथा आईजेक विलियम, जीव विज्ञान विभाग, लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज, लखनऊ-226018, भारत भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार, सीएनएच भवन, वनस्पति उद्यान, हावड़ा (पश्चिम बंगाल)-711103, भारत Drmohit2010@gmail.com