एक महीने बाद फिर नर्मदा से भेंट हो गई। वैसे उससे होते ही कब अलग हैं। वह तो हमारे जीवन में समाई हुई है। बचपन से लेकर अब तक बार-बार उसके दर्शन किये हैं। अमरकंटक से लेकर गुजरात तक उसके कई घाटों पर उसके दर्शन किये हैं।
जब कभी नर्मदा से साक्षात्कार होता है, मैं स्मृतियों में खो जाता हूँ। सांडिया के पास खुनिया बरहा में बुआ, नरसिंहपुर में बहन और मेरे पिता के नर्मदा भक्त होने ने इस रिश्ते को गहरा बनाया है। हमारे गाँव के कई लोग नर्मदा की परिक्रमा कर चुके हैं।
कल जब मैं नर्मदा के विहंगम दृश्य पर नजर डाल रहा था, मेरे मानस पटल पर पुरानी छवियाँ बन-बिगड़ रहीं थीं। बचपन में परिवार के साथ बैलगाड़ी से नर्मदा जाया करते थे। छोटी बैलगाड़ी को बग्घी कहते थे। उसमें तीन-चार लोग ही बनते थे। बैलगाड़ी के चक्के के ऊपर की पात चमकती थी। रास्ता कच्चा होता था। उसे गड़वाट कहते थे। गड़वाट यानी जो बैलगाड़ी के आने-जाने से स्वतः ही बन जाती है।
बैल तेजी से दौड़ते थे। धूल उड़ती जाती थी। रास्ते में हरे-भरे खेत पड़ते थे। ज्वार के भुट्टे कई बार हमसे टकरा जाते थे। चक्कों की चूं-चर्र आवाज और बैलों के गले में बन्धे घुँघरू मिलकर मोहक वातावरण बनाते थे। मन उमंग से भरा होता था। हम नर्मदा के केतोघान में जा रहे होते थे।
हम मेले में दो-तीन दिन रुकते थे। पेड़ के नीचे हमारा डेरा होता था। वे इमली के पेड़ थे। कई बच्चे इन इमली की शाखाओं से झूलते रहते थे। सामने नर्मदा का विशाल घाट होता था और मेले की भीड़भाड़। घाट ऊपर से लोग छोटे-छोटे दिखते थे।
मेले में सर्कस और रामलीला आकर्षण का केन्द्र हुआ करते थे। माइक पर गीत बजते रहते थे। नर्मदा की नरम रेत पर पैदल चलना अच्छा लगता था।
मेले में भारी भीड़ होती थी। इधर-से-उधर लोग घूमते रहते थे। परिक्रमा वालों की हर-हर नर्मदे की आवाजें ध्यान खींचती थीं। महिलाएँ और बच्चे बड़ी संख्या में आते थे। मिठाइयों की दुकानें सजी होती थीं। रात में नौटंकी और नाटक होते थे। नर्मदा में बड़े झादे (नाव) चलते थे जिन पर लोग तो बैठते थे, साइकिलें, मोटर साइकिलें व गाय-बैल भी बैठा लेते थे।
कल मैया की रेत में कई घंटे गुजारे। पत्नी के साथ भर्ता बाटी बनाई। कंडे (गोबर के उपले) की अंगीठी लगाई, उसमें भटे (बैंगन) और टमाटर भूने। कंडों की आग में बाटियाँ सेंकी। बाटी और भर्ता, परकम्मावासियों का प्रिय भोजन है। इसमें ज्यादा बर्तन भी नहीं लगते और न ही विशेष तैयारी की जरूरत पड़ती। बहुत दिनों बाद यह सब कर लेना, वाकई मजेदार रहा।
मेले जैसी भीड़ नहीं थी लेकिन फिर भी श्रद्धालु स्नान करने आये हुए थे। नव दम्पति भी आये थे। ग्रामीण जन-जीवन में नर्मदा स्नान पुण्य का काम माना जाता है। नर्मदा के दर्शन मात्र से पुण्य माना जाता है। सांडिया का सीताराम घाट बहुत ही सुन्दर, शान्त और सौन्दर्यपूर्ण है। यहाँ बार-बार आने की इच्छा होती है। हर बार नर्मदा की यात्रा एक आन्तरिक यात्रा भी होती है।
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