आज सभी विकासशील देशों में पेयजल का संकट गहरा है । जहां तक भारत का प्रश्न है नदियों,झीलों तालाबों और कुओं से हमें जो जल मिलता है, उसका 70 प्रतिशत प्रदूषित होता है । महानगरों की जल समस्या तो विकट बनती जा रही है । वहाँ प्रदूषण इतना बढ गया है कि अनुपचारित पानी पेय नहीं रहा । उसे पीने योग्य बनाने के लिए विभिन्न रसायनों का प्रयोग करना पडता है, जिससे पानी का प्रकृतिक स्वाद नष्ट हो जाता है । वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई केकारण जहां भू-स्खलन और बाढ तथा सूखे का खतरा बढा है, वहीं वन-संरक्षण की उपेक्षा के कारण मूल्यवान औद्याधियों के विनष्ट होने से जल प्रदूषण का भी खतरा बढा है । प्रकृति की गोद में उगे और पले ये पौधे, वृक्ष लता-निकुंज जलशोधन के प्राकृतिक उपकरण हैं । जल वाले पौधे जल की गंदगी को बहुत कुछ रोकते हैं । ये पानी में मिले अनिष्टकारी खनिज तत्वों और प्रदूषण को सोखते हैं । जलीय जन्तु भी जल-प्रदूषण को रोकते हैं । किन्तु आज जंगल तथा जल-जन्तुओं को बेरहमी से विनष्ट कर मनुष्य ने स्वयं अपने लिए अस्वास्थ्यकर स्थिति का निर्माण कर लिया है ।
पर्यावरण की दृष्टि से मध्यप्रदेश और उसकी नदियाँ -
म0प्र0 भारत का हृदय है । यहाँ महत्वपूर्ण नदियों का काफी बडा जल-ग्रहण क्षेत्र स्थित है । वर्षाकालीन बहुसंख्यक नदियों के अलावा वर्ष भर बहने वाली सदानीरा सरिताओं में नर्मदा, इन्द्रावती, बेनगंगा, बेतवा, केन, महानदी, ताप्ती, चम्बल, तवा, हसदो, बारना, हलाली, सोन आदि मुख्य हैं । नदियों का उपयोग केवल सिंचाई, घरेलू तथा औद्योगिक आवश्यकताओं हेतु जल प्राप्त करने के लिए ही नहीं होता, बल्कि गन्दे जल तथा अवशिष्ट पदार्थों के निःसारण के लिए भी होता है । बढते हुए औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरों में आबादी की अप्रत्याशित वृद्धि ने नदियों के प्रदूषण को बहुत बढा दिया है । गत दशाब्दी में म0प्र0 की सामान्य नगरीय आबादी में 56.07 प्रतिशत की वृद्धि हुई है । यह एक विस्फोटक स्थिति का सूचक है ।
पुण्यसलिला नर्मदा का जल अनेक स्थानों पर गम्भीर रूप से प्रदूषित है । अमरकण्टक का ’’कोटितीर्थ‘‘ आज करोडों व्याधियों का प्रवेश द्वार बन गया है ।
महार रेजीमेंट, सागर के 60 सदस्यी फौजीदल के ’’नर्मदा दर्शन‘‘ (दिसम्बर 85-जनवरी 86) के अनुभवों को श्री दिनेश जोशी ने प्रकाशित करते हुए लिखा है कि नर्मदा का उद्गम कुण्ड इस कदर गन्दा है कि उसके जल को छूने तक की इच्छा नहीं होती । कुण्ड के आसपास भी गंदगी का साम्राज्य है । बरमानघाट से होशंगाबाद के बीच फौजीदल को तीन-चार लाशें तैरती हुई मिलीं । ये लाशें बच्चों की थीं और पत्थरों से बँधी हुई थीं । कतिपय आदिवासी एवं अन्य जातियों के लोग प्रथा के अनुसाद मुर्दों को पत्थर से बाँधकर पानी में फेंक देते हैं । बडे-बडे नगरों जैसे मंडला, जबलपुर, होशंगाबाद आदि में भी लोग शव अधजले या यों ही, नदी में में प्रवाहित कर देते हैं । जलाऊ लकडी की कमी और उसके बढते मूल्य इसके प्रमुख कारण हैं । अन्धपरम्परा, अशिक्षा, अज्ञानता और धर्मान्धता के साथ-साथा, व्यवस्था का अभाव भी इस प्रदूषण के पीछे कारण है ।
अमरकण्टक में ’’नर्मदा-कुण्ड‘‘ में स्नान आदि पर तुरंत प्रतिबंध लगना चाहिए । विकल्प के रूप में थोडी दूर पर एक अन्य कुण्ड का निर्माण इस प्रयोजन के लिए कराया जा सकता है ।
केवल प्राकृतिक संपदा का अनवरत दोहन अथवा औद्योगीकरण की प्रवृत्ति ही नर्मदा-प्रदूषण के कारण नहीं हैं । बल्कि गंदगी या गन्दे पानी के निकास की समुचित व्यवस्था का न होना भी एक प्रमुख कारण है और यह नर्मदा तट पर बसे हर कस्बे या नगर का हाल है । डंडोरी में बस स्टैण्ड के पीछे नर्मदा तट पर गंदगी देखकर मन कुत्सा और घृणा से भर जाता है । सारी गंदगी सीधे नर्मदा में बहाई जाती है । बाबा आमटे का यह कथन कितना सत्य है कि ’’ आज मानव ही पर्यावरण का सबसे बडा शत्रु है‘‘ । इसी तरह जबलपुर के ग्वारीघाट और दरोगाघाट के आसपास एकदम नदी तट पर गंदगी का ढेर है । होशंगाबाद में कोरीघाट और सेठानीघाट के बीच में एक नाले के माध्यम से करीब-करीब पूरे शहर का गंदा पानी नर्मदा में गिरता है । जिस स्थान पर गंदे पानी का झरना झरता है उसके थोडी ही दूर (सेठानी घाट में) लोग नहाते-धोते हैं । कितनी अस्वास्थ्यकर और भयावह स्थिति है यह !
इन्दौर-खण्डवा मार्ग पर पश्चिम निमाड जिले का औद्योगिक नगर बडवाह और उसके समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्र प्रदूषण के घेरे में आ गए हैं । नगर के पूर्वी छोर पर शराब कारखाना, उत्तर दिशा में लगभग तीन कि0मी0 तक चूना उद्योग एवं दक्षिण में एनकाप्स संयंत्र ने यहाँ के पर्यावरण को प्रभावित किया है । शराब कारखाने से निकलने वाला अनुपयोगी पानी कारखाने से करीब दो सौ मीटर दूर जाकर चोरल नदी में गिरता है और चोरल उसे दो कि0मी0 आगे चलकर नर्मदा में गिरा देती है । इस पानी के प्रयोग से चर्मरोग की शिकायतें प्रकाश में आई हैं । कारखाने के आसपा गड्ढों में जमा पानी जब मवेशी पीते हैं तो उनका पेट ढोलक की तरह फूलने लगता है ।
नर्मदा में सर्वाधिक गंदगी भडौंच में दिखती है । शहर की सारी गंदगी सीधे नर्मदा में गिरती है । मछली उद्योग संभवतः यहाँ सर्वाधिक होता है । मछुआरे नर्मदा तट पर ही बसे हैं । गंदगी में डूबी नर्मदा और गंदगी में रात-दिन जी रहीं ये गरीब जातियाँ ! और वहां बगल में तामम पौराणिक तीर्थ ! भडौंच मल-मूत्र और गंदगी के बीच तीर्थों का एक बेमेल पडाव है । दाण्डिया बाजार में स्वामीनारायण मंदिर के पास रैलवे पुल से करीब आधे मील की दूर पर नर्मदा तट पर स्थित भृगु आश्रम नाम मात्र का आश्रम रह गया है । चारों ओर गंदगी की भरमार है । नाक दबाकर मानव मल लांघते किसी तरह आश्रम के भीतर जा पाना संभव है । निश्चित ही यह स्थान पुरातन काल में नर्मदा की पावन हिलोरों से स्पृष्ट हो धौत औकर पूत रहता होगा, पर आज नर्मदा प्रवाह ने इस तट को मानो अनुपयुक्त समझकर छोड दिया है ।