नवीकरण

Submitted by pankajbagwan on Wed, 02/19/2014 - 21:21
यह
एक लहर थी
जो ले गयी
मेरा फूल
पत्तों के दोने में जलता दिया
एक प्रार्थना

यह लहर थी
जो मुझे ले गयी
जल के अन्तरंग प्रकोष्ठ में

ओर तब -
तब एक मध्यांतर था -
अगम्य निगम्य क्षण
जल की पारदर्शिनी पवित्र सुषुप्ति में !

सब जल जागे थे -
- उनके परिवर्ती काँच में
मैंने अपना बिम्ब देखा था
बदले थे
अपने वस्त्र
और अपने धुले केशों को
नदी की चमकीली
डोरियो से गूंथा था !

- अब हम साथ-साथ
बाहर आ सकते थे -
आकाश के अगाध
नीले जल में डूब कर
नहायी
सुबह-
और मैं !

संकलन/ टायपिंग/ प्रूफ- नीलम श्रीवास्तव, महोबा