27 अप्रैल, 1897 को नए राजभवन का शिलान्यास हुआ। इसके साथ ही ‘गिवाली स्टेट’ के इस वीरान जंगली इलाके के प्राकृतिक वातावरण को औपनिवेशक अभिजात्य वर्ग की आवश्यकताओं और रुचियों के अनुरुप बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई। राजभवन के 220 एकड़ क्षेत्रफल में स्थित पहाड़ और जंगल में से ज्यादातर इलाके पूर्व से ही सरकार के नियंत्रणाधीन था। राजभवन के निर्माण के लिए डायोसेजन बॉयज स्कूल और गिवाली खेत का क्षेत्र का कुछ हिस्सा अधिगृहीत किया गया। चर्च ऑफ सेंट निकोलस, डायोसेजन गर्ल्स स्कूल, सेंट मेरी और सेंट जोसेफ कॉलेज से भी कुछ हिस्सा खरीदा गया।
समुद्र सतह से 6,785 फीट ऊँचाई पर स्थित गए राजभवन की रूपरेखा बम्बई (अब मुम्बई) के वास्तुशिल्पी मिस्टर स्टीवन्स तथा अधिशासी अभियंता एफ.ओ.ऑएरटेल ने तैयार की। राजभवन की रूपरेखा ईसाई स्थापत्य गौथिक के नैतिक एवं सौन्दर्यपरक मूल्यों पर आधारित है। इसकी रूपरेखा इंग्लैंड के बकिंघम पैलेस से मिलती-जुलती है। इसके निर्माण में कुल साढ़े सात लाख रुपए की लागत आई। इसमें से एक लाख रुपए डायोसेजन बॉयज स्कूल को दिया गया। 50 हजार रुपए पानी और बिजली के कामों में खर्च हुए।
राजभवन के निर्माण में स्लेटी रंग के पत्थर का इस्तेमाल किया गया। कुछ लाल पत्थर आगरा से भी मंगवाए गए थे। बरामदे और सीढ़ियों में मिर्जापुर से मंगाए गए पत्थर का उपयोग किया गया है। राजभवन की छत में रेवाड़ी स्लेट लगाई गई हैं। सीढ़ियों और भोजन कक्ष की उल्टी छत में टीक की लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है। अन्य स्थानों में शीशम, साटिन, साईप्रस और साल की लकड़ी उपयोग में लाई गई है।
कार्ड रूम की ऊपरी छत कश्मीर की लकड़ी की बनी है। राजभवन में पत्थर के काम आगरा और लकड़ी का काम पंजाब के कारीगरों द्वारा किया गया। रंग-रोगन का काम स्थानीय कारीगरों ने किया। साज-सज्जा का काम मैसर्स ‘लैजर्स एण्ड कम्पनी’ कलकत्ता और मैसर्स ‘मेपल एण्ड कम्पनी’ लंदन ने किया। राजभवन के लिए काँच, टाइल्स, पीतल और लोहे के नल इंग्लैंड से मंगवाए गए थे। लखनऊ, आगरा और फतेहपुर जिलों से कालीन मंगाए गए। कुमाऊँ के जंगलों से मिले हाथी दाँतों की दीवारों पर सजाया गया।
कुछ वर्षों बाद यहाँ यूरोप से मंगवा कर पेड़ लगाए गए। 18 हॉल्स का गोल्फ कोर्स बनाया गया। तब यह सदस्यों के लिए मंगलवार व बृहस्पतिवार और शनिवार को खुलता था। राजभवन के भोजन कक्ष में एक साथ 66 लोगों के भोजन करने की क्षमता है। डायोसेजन बॉयज स्कूल से लिए गए मकानों में सचिव आवास हैं। राजभवन के बगीचों की सिंचाई के लिए सीधे तालाब से पानी लेने की व्यवस्था है। नया राजभवन 1900 में बनकर तैयार हुआ। राजभवन का निर्माण पी.डब्ल्यू.डी.अभियंता एच.एस.वाइल्डब्लड की देख-रेख में सम्पन्न हुआ। सर एंटोनी मैकडॉनल नए राजभवन में रहने वाले पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। वे 1900 से 1901 तक एक साल इस राजभवन में रहे।
1897 की बरसात में बैंक हाउस तथा ‘द लेक होटल’ के पास एक छोटा भू-स्खलन हुआ, जिससे बैंक हाउस के पीछे स्थित सड़क क्षतिग्रस्त हो गई। ढाई लाख रुपए का नुकसान हुआ। इसी साल 10-11 सितम्बर को नैना पीक की पहाड़ी में भी भू-स्खलन हुआ। 1897 में नैनीताल सेलिंग क्लब बना।
एक जुलाई, 1898 को नगर पालिका बोर्ड ने संक्रामक बीमारियों से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए मनोरा में अस्पताल बनाने को सरकार से जमीन माँगी। लेफ्टिनेंट गवर्नर ने संक्रामक अस्पताल के लिए मनोरा स्थित वन विभाग की जमीन में से पाँच एकड़ दो रोड और 24 पोल जमीन जमीन 10 रुपए वार्षिक किराए पर 30 साल के लिए नगर पालिका को आंवटित कर दी। कुमाऊँ के कमिश्नर लेफ्टिनेंट कर्नल ई.ई. ग्रिज ने 2 सितम्बर, 1898 को इसक सम्बन्ध में आदेश जारी कर दिए। सात जुलाई, 1898 को सरकार ने दुर्गापुर स्थित समस्त बेनाप भूमि स्वामित्व के सम्पूर्ण अधिकारों के साथ नगर पालिका को सौंप दी।
28 जुलाई, 1898 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के सचिव जे.ओ.मिलर ने नैनीताल के नालातंत्र को लेकर एक अधिसूचना जारी की। इस अधिसूचना के जरिए नैनीताल के नालों के निर्माण कामों को छोटे कार्य और बड़े कार्य दो हिस्सों में बांट दिया गया। ढाई हजार रुपए से नीचे की लागत के कामों को छोटे और इससे अधिक लागत के निर्माण को बड़े कार्यों की श्रेणी में रखा गया। नालों के निर्माण की योजनाओं का प्रदेश के स्वास्थ्य बोर्ड से तकनीकी परीक्षण किया जाना अनिवार्य कर दिया गया। नालों के सभी बड़े काम स्वास्थ्य बोर्ड के अभियंताओं की देख-रेख में ही कराए जाने की व्यवस्था लागू की गई। अधिसूचना में आदेश दिया गया कि नैनीताल में नालों का निर्माण कार्य प्रदेश का स्वास्थ्य बोर्ड अपने अभियंताओं की निगरानी में तकनीकी तौर पर दक्ष निर्माण एजेंसियों से ही कराएँगे। नगर में नालों के निर्माण से जुड़े सभी अभियंताओं को स्वास्थ्य बोर्ड के इंजीनियरों के अधीनस्थ कर दिया गया। तकनीकी एवं पेशेवराना मुद्दों पर स्वास्थ्य बोर्ड के अभियंताओं को नालों के निर्माण कार्यों से जुड़े दूसरे विभागों के इंजीनियरों को सीधे आदेशित करने के अधिकार दिए गए। सरकार के आदेश के बगैर नालों के निर्माण योजना के लिए किसी भी व्यक्ति को ढाई सौ रुपए से अधिक वेतन पर नियुक्त करने में प्रतिबंध लगा दिया गया।
प्रोविंसेस के स्वास्थ्य बोर्ड के कमिश्नर को नैनीताल में निर्माणाधीन सभी छोटे-बड़े नालों का निरीक्षण करने को कहा गया। नैनीताल के नालों के निर्माण के ढाई हजार रुपए से अधिक के सभी कार्यों के लिए विज्ञापन के जरिए निविदाएँ आमंत्रित करने की व्यवस्था की गई। इन निविदाओं को नगर पालिका के अभियंता द्वारा स्वास्थ्य बोर्ड के अभियंताओं से स्वीकृत कराया जाना अनिवार्य कर दिया गया। नैनीताल नगर के नालों की विस्तृत योजना बनाने, आगणन तैयर करने, निरीक्षण करने तथा नालों के निर्माण कार्यों में तकनीकी एवं पेशेवराना सुझाव देने के एवज में योजना की वास्तविक लागत का एक प्रतिशत हिस्सा शुल्क के रूप में प्रोविंसेस के स्वास्थ्य बोर्ड को भुगतान करने की व्यवस्था की गई। प्रोविंसेस के स्वास्थ्य बोर्ड के आयुक्त से निरीक्षण कराने और उनके सुझाव माँगने का अनुरोध करने पर स्वास्थ्य आयुक्त खुद नालों का निरीक्षण करते थे। ऐसी सूरत में उन्हें निर्धारित शुल्क से दोगुनी धनराशि का भुगतान किया जाता था। पचास हजार तक की योजनाओं के निरीक्षण का शुल्क आठ प्रतिशत और 50 हजार से ऊपर की योजनाओं के पहले निरीक्षण पर तीन प्रतिशत और पुनः निरीक्षण पर दो प्रतिशत शुल्क निर्धारित किया गया। नगर पालिका के अनुरोध पर नाला निर्माण की बड़ी योजना का स्वास्थ्य बोर्ड के आयुक्त अगर स्वयं निरीक्षण करते थे तो उन्हें दो दिन के लिए एक सौ रुपए और उसके बाद 10 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से निरीक्षण शुल्क का भुगतान किया जाता था। स्वास्थ्य बोर्ड के इंजीनियरों को अपनी निरीक्षण आख्या सीधे स्वास्थ्य बोर्ड को भेजनी होती थी। फिर स्वास्थ्य बोर्ड इस आख्या को सरकार को भेजता था।
8 अगस्त, 1898 की रात नैनीताल में साढ़े 14 इंच वर्षा हुई। भारी वर्षा की वजह से नगर के कई नाले अवरुद्ध और क्षतिग्रस्त हो गए। ओकपार्क, लॉगडेल, इंडक्लीफ, फेरी हॉल, पॉपुलर्स तथा बड़ा वाला क्षतिग्रस्त हो गए थे। कुछ नाले पूरी तरह तबाह हो गए। अनेक घरों को नुकसान हुआ। नगर की अधिकांश सड़कें यातायात के काबिल नहीं रही। इस विपदा के बाद नगर पालिका के अध्यक्ष के अनुरोध पर 13 अगस्त, 1898 को पी.डब्ल्यू.डी. के अधिशासी अभियंता मिस्टर एच.एस.वाइल्डब्लड ने नगर के नालों का निरीक्षण किया और अपनी निरीक्षण आख्या दी। नगर पालिका ने तबाह हो चुके और क्षतिग्रस्त नालों को तत्काल पुनर्निर्मित किया।
इस वाक्य के बाद नगर के नालातंत्र पर पुनः विचार किया गया। निष्कर्ष निकला कि नगर पालिका के पास नालों के निर्माण और उनके रख-रखाव के लिए पर्याप्त तकनीकी जानकारियाँ और सुविधाएँ नहीं है। तय हुआ कि नालों के निर्माण एवं रख-रखाव की जिम्मेदारी पूरी तरह पी.डब्ल्यू.डी. को ही सौंप दी जाए।
1898 नगर पालिका ने झील में नावों के संचालन पर बोट टैक्स लगाया। तब यहाँ 64 नावें थीं। इसी साल लेक फ्रंटेज टैक्स भी लागू किया गया। जिन बंगलों एवं घरों के अग्रभाग से झील का नजारा दिखता था, उन बंगले तथा भवन स्वामियों को लेक फ्रंटेज टैक्स देना होता था। 1898 में सिविल एरिया में साइड टैक्स तीन रुपए प्रति एकड़ तथा बाजार क्षेत्र में एक आना प्रति गज था। सरकारी जमीन का टैक्स दो रुपए प्रति एकड़ था। उस दौर में नगरपालिका के स्वास्थ्य निरीक्षक पालतू जानवरों का मोहल्लेवार रजिस्टर रखते थे। इन रजिस्टरों में प्रत्येक कंपाउण्ड तथा मोहल्ले में मौजूद पशुओं का सम्पूर्ण विवरण दर्ज होता था।