पीएम मोदी ने 31 अक्टूबर 2020 को जब गुजरात के अहमदाबाद शहर में केवड़िया-साबरमती रिवर फ्रंट -सी प्लान सेवा का उद्घाटन किया था तो देशभर में इसकी खूब प्रशंसा हुई थी। जिसके बाद कई राज्य सरकारें भी अपने यहां रिवर फ्रंट बनाने का मसौदा तैयार करने लगी। उत्तराखण्ड सरकार ने तो नाले बन चुकी कुछ नदियों के सौंदर्यकरण करने के लिए लगभग 50 करोड़ रूपये से अधिक खर्च कर दिए भले ही आजतक उसका सौंदर्यकरण नहीं हो पाया है लेकिन रिवर फ्रंट बनाने की एक कोशिश तो की।
कुछ ऐसा ही प्रयास वरोदड़ा नागर निगम ने साल 2019 में शुरू किया था।वीएमपी साबरमती रिवर फ्रंट की तरह वरोदड़ा शहर में विश्वामित्री रिवर फ्रंट बनाना चाहती थी इसके लिए बाक़ायद टेंडर प्रक्रिया शुरू करके काम भी चालू कर दिया लेकिन कुछ समय बाद पर्यावरणविदों ने इस पर आपत्ति जताई। लेकिन निगम ने उनके हर विरोध को दरकिनार कर रिवर फ्रंट डेवलोपमेन्ट का काम जारी रखा ।कई बार विरोध के बाद भी वीएमसी (Vadodara Municipal Corporation) नहीं मानी तो पर्यावरणविदों ने एनजीटी का रुख किया। 25 मई 2021 को विश्वामित्री रिवर फ्रंट को लेकर एनजीटी ने नगर निगम को फटकार लगाई और तुरंत सभी कार्य रोकने के आदेश दिए।
विश्वामित्री नदी पर क्यों नहीं बन सकता रिवर फ्रंट
विश्वामित्री नदी पर रिवर फ्रंट क्यों नहीं बन सकता को समझने से पहले विश्वामित्री ननदी की उत्पत्ति को समझना बेहद जरूररी है। विश्वामित्री नदी को एक मौसमी नदी के रूप में जाना जाता है, जो गुजरात के पंचमहल जिले के पावागढ़ से निकलती हुई वडोदरा शहर के पश्चिम में बहती है । पावागढ़ एक छोटा सा पहाड़ है जो वड़ोदरा के उत्तर दिशा में स्थित है । कहा जाता है कि इस नदी का नाम महान संत विश्वामित्र के नाम से लिया गया है।खंभात की खाड़ी में गिरने से पहले इस नदी में धधार और खानपुर नदी भी मिल जाती है । इस नदी प्रणाली में अजवा के पास सयाजी सरोवर और धधार शाखा पर देव बांध बनाए गए है 2002 में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई थी कि इसमें मगरमच्छों की अच्छी खासी तादाद है विश्वामत्री और इसकी सहायक नदियों पर कई बांधों के बावजूद बरसात के मौसम में वड़ोदरा शहर में बाढ़ की अधिक संभावना रहती है।
वड़ोदरा शहर के बीचोबीच बहने वाली विश्वामित्री नदी प्रणाली वर्षों से शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण खासी प्रभावित हुई है। 1994 से अब तक इस नदी में 8 से अधिक बार बाढ़ आ चुकी है। और इससे शहर के निचले इलाके ही नहीं प्रभावित होते है बल्कि नदी में रहने वाले मगरमच्छों का जीवन भी भी खतरे में पड़ जाती हैं क्योंकि ये बाढ़ के समय इंसानो के कब्ज़े वाले क्षेत्रों में पहुंच जाते है जहाँ उनके साथ संघर्ष में अपनी जान गवा बैठते है
विश्वामित्री नदी में रिवर फ्रंट नहीं बनने का सबसे बड़ा कारण ये जलीय जीव जंतु है। विश्वामित्री नदी साबसे प्रदूषित होने के बावजूद यहां पर मगरमच्छों की अच्छी खासी संख्या है इसे गुजरात की घड़ियाल नदी से भी जाना जाता है. पपर्यावरणविदों का तर्क है की अगर यहां रिवर फ्रंट बनता है तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान मगरमछों को होगा और उनके अस्तित्व पर भी ख़तरा पड़ सकता है।
रिवर फ्रंट को लेकर एनजीटी का निर्णय
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने विश्वामित्री नदी कार्ययोजना’ को तीन महीने के भीतर लागू करने का अधिकारियों को निर्देश दिया था की वह अनधिकृत ढांचों को हटाने के अलावा डूब क्षेत्र में आने वाले मैदानी इलाकों को चिह्नित करके उनकी संरक्षण करने की कार्य योजना बनाएं।
पीठ ने कहा, ‘‘नदी के डूब क्षेत्र में आने वाले पूरे मैदानी इलाके की पहचान करनी होगी। इसके बाद पौधारोपण तथा नदी की समग्रता को बरकरार रखने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘आवेदकों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार करने का निर्देश देते हुए हम दोहराते हैं कि अनधिकृत ढांचों को हटाने, डूब क्षेत्र में आने वाले मैदानी इलाकों की पहचान एवं संरक्षण के लिए ‘विश्वामित्री नदी कार्ययोजनाद्ध को लागू किया जाए और संबंधित अधिकारी इस कार्रवाई को तीन महीने के अंदर पूरा करें। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर गौर किया कि विश्वामित्री नदी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा चिह्नित की गई 351 प्रदूषित नदियों में से एक है।
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि इस परियोजना ने पर्यावरण, विशेष रूप से विश्वामित्री नदी के वेटलैंड्स, घाटियाँ के अलावा इससे जुड़े हुए जल निकायों , बाढ़ से प्रभावित मैदानों , वनस्पतियों, जीवों और जैव विविधता आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है नदी की बनावट में जलग्रहण,बाढ़ के मैदान, सहायक नदियां, तालाब, नदी-तल और आसपास की घाटियाँ शामिल हैं, जो दोनों तरफ की मिट्टी और वनस्पति के साथ-साथ अतिरिक्त पानी को बनाए रखने, बाढ़ को रोकने और विभिन्न प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है। यह सब पर्यावरणीय प्रणाली का एक प्राकृतिक और अप्राकृतिक जीविका का हिस्सा है। नदी भी सहायक नदियों, बाढ़ के मैदानों, और उसके बेसिन और मुहाना में फैले तालाबों का एक नेटवर्क है ।
आदेश में यह भी कहा गया है, " पर्यवरणीय लिहाज से जरुरी है कि नदी में अत्यधिक संरक्षित प्रजातियों में शुमार,भारतीय मगरमच्छ ( Crocodylus palustries- Mugger Crocodile) और कछुओं की उपस्थिति बने रहे क्योंकि मगरमच्छ ,कछुए और अन्य प्रजातियां कई वर्षों से विश्वामित्री नदी के हिस्सों में प्रजनन कर रही हैं। इन प्रजातियों को राष्ट्रीय स्तर पर 'असुरक्षित प्रजाति ' के रूप शामिल किया गया है, संकटग्रस्त प्रजातियों को आईयूसीएन (ICUN ) मानदंडों (Molur and Walker 1998) के आधार पर यह आकलन किया गया है कि भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत इन्हें कानूनी रूप से संरक्षण मिला हुआ है।
वही दूसरी और वीएमसी ने एनजीटी को पूरा भरोसा दिलाने की कोशिश कि वह विश्वामित्री रिवरफ्रंट परियोजना को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है। यह केवल संकल्पनात्मक स्तर पर था। लेकिन इस परियोजना से नदी का सौंदर्यीकरण और कायाकल्प होगा जिसका सीधा लाभ शहर के आम लोगों को मिलेगा। साथ ही बाढ़ रोकने की क्षमता बढ़ेगी, नदी की सफाई और वन्यजीवों के आवास की रक्षा भी होगी। इसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना शहर के विकास के साथ एकीकृत किया जाएगा।
वीएमसी ने कहा परियोजना को लेकर एक उचित रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक सलाहकार को रखा गया था । रिपोर्ट के आधार पर पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)) रिपोर्ट के लिए एक कंसल्टेंट को भी हायर किया गया । इसके बाद गुजरात के (SEIAA) में (EIA) आवेदन किया गया। हालांकि बाद में किसी भी गतिविधि को शुरू करने से पहले आवेदन वापस लेने का फैसला लिया गया था. वीएमसी ने आगे कहा यात्रा समय को कम करने के लिए दोनों क्षेत्रों की कनेक्टिविटी के लिए सामा से हरनी तक पुल का निर्माण जरूरी था। उक्त मामला गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित था और अधिग्रहण पर रोक लगा दी गई थी ।
वीएमसी ने एनजीटी को यह भी बताया है कि मंगल पांडे रोड स्थित संजय नगर स्लम पुनर्वास परियोजना के आवास परियोजना में विवादास्पद रिटेनिंग वॉल का निर्माण गुजरात उच्च न्यायालय और बाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा बरकरार किए गए स्लम क्षेत्र के विकास के अधिसूचना के अनुपालन में किया गया था।
एनजीटी के इस फैसले से पर्यावरण रक्षक काफी खुश नजर आ रहे है याचिकर्ता और पर्यावरण रक्षक रोहित प्रजापति कहते है कि ऐसा पहली बार हुआ जब हमे नदी की थोड़ी बेहतर परिभाषा मिली है। एनजीटी के फैसले के बाद स्तिथियां बेहतर हुई है। नदी में जो भी निर्माण कार्य किये थे वह सब हटाये गए है और साथ ही अब नदी की मैपिंग की जा रही है।
एनजीटी के आदेश को संग्लन (Attached ) कर दिया गया है या लिंक में क्लिक करके इसे पूरा पढ़ सकते है । ??
https://hindi.indiawaterportal.org/sites/default/files/2021-10/filename%20%281%29.pdf