पानी का कोई विकल्प नहीं

Submitted by admin on Sun, 06/21/2009 - 17:58
Source
ipsnews.net

जल-मल निस्तारण एवं सफ़ाई पर जिम्बाब्वे में प्रसारित एक इंटरव्यू…

WSSCC नामक संस्था की जल-मल निस्तारण एवं स्वास्थ्य संयोजक, नोमा नेसेनी से बुसानी बफ़ाना का लिया हुआ एक साक्षात्कार, जिसमें उन्होंने जिम्बाब्वे में जारी “सफ़ाई कार्यक्रम” एवं उसके क्रियान्वयन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताया…

2008 को अन्तर्राष्ट्रीय सफ़ाई वर्ष घोषित किये जाने के तथा जिम्बाब्वे सरकार द्वारा साफ़-सफ़ाई के लिये फ़रवरी 2008 में घोषित एक नीति के बावजूद, मात्र पाँच माह बाद ही जिम्बाब्वे में हैजा फ़ैला तथा उसमें 4000 लोगों की जान गई। इस राष्ट्रीय नीति का एक मुख्य बिन्दु, जनता और निजी क्षेत्र द्वारा समूचे देश में आपसी सहयोग से बनने वाले शौचालय, ताकि आम जनता को इसका सीधा लाभ मिल सके। इस योजना को लागू करवाने के लिये विभिन्न मुख्य मंत्रालयों जैसे स्वास्थ्य, जल संसाधन, तथा वित्त तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं जैसे “प्लान इंटरनेशनल”, वर्ल्ड विजन तथा वाटर सप्लाई एंड सेनिटेशन कोलाबोरेटिव काउंसिल (WSSCC) को संयुक्त संयोजक बनाया गया। नोमा नेसेनी ने इंटरव्यू में टास्क फ़ोर्स के काम करने के बेढंगे और लगभग विध्वंसक तौर-तरीकों पर रोशनी डाली।

जबकि जिम्बाब्वे में स्वास्थ्य सेवायें लगभग मरणासन्न अवस्था में हैं, आपकी काउंसिल ने इस दिशा में सफ़ाई व्यवस्था के उत्थान के लिये क्या-क्या किया है?

नेशनल सेनिटेशन टास्कफ़ोर्स ने एक नीति का निर्धारण किया जो कि प्राथमिकता की मांग वाले क्षेत्रों को पहले देखेगी। इसके अनुसार स्वच्छता की अधिक जरूरत वाले क्षेत्रों में काम बढ़ाया जायेगा, सभी स्तरों पर कार्यक्षमता बढ़ाने के प्रयास होंगे एवं सस्ती तथा टिकाऊ तकनीकें अपनाने पर जोर दिया जायेगा। नीति के अनुसार विभिन्न प्रकार की टेक्नोलॉजी अपनाने पर भी सहमति बनी बजाय इसके कि महंगे वाले VIP (Ventilated Improved Pit) टायलेट जगह-जगह बनाये जायें, क्योंकि यह पाया गया कि इस प्रकार की महंगी VIP टॉयलेट की जगह उतने ही खर्च में बेहतर तकनीक के इस्तेमाल से सस्ते टॉयलेट बनाये जा सकते हैं।

इस नीति और इसके सभी बिन्दुओं को बाद में सभी बड़े निवेशकों के सामने मंजूरी के लिये रखा गया। हमने एक राष्ट्रीय स्वच्छता व्यवस्था कार्यक्रम हेतु एक सेमिनार आयोजित किया जिसमें उन सभी विभागों के सचिवों ने हिस्सा लिया जिन्होंने जनता-निजी क्षेत्र सहयोग के लिये हामी भरी थी। इसमें सफ़ाई व्यवस्था के लिये अधिकाधिक संसाधन जुटाने पर भी सहमति बनी।

जब भी कोई सरकार जल विकास व्यवस्था हेतु राशि निवेशित करती है उस समय अधिकतर “सफ़ाई व्यवस्था” को नज़र-अंदाज़ कर दिया जाता है, अथवा इस मद के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है, ऐसा क्यों?

उत्तर – क्योंकि पानी वितरण अथवा जल प्रबन्धन जनता को “दिखाई देने” वाला काम है और पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं है, इसलिये विभिन्न समुदाय अक्सर पानी की उपलब्धता को, सफ़ाई व्यवस्था के मुकाबले प्राथमिकता देते हैं। साथ ही जल का प्रबन्ध करना और उपलब्धता बढ़ाना, बड़े समुदायों में सफ़ाई व्यवस्था को अच्छी तरह से चलाने की अपेक्षा आसान काम भी है। इसी प्रकार “सफ़ाई व्यवस्था” से सरकारों को किसी तरह का आर्थिक प्रतिफ़ल या वापसी भी नहीं होती, जबकि निजी क्षेत्र सफ़ाई व्यवस्था में निवेश करने में रुचि नहीं दिखाता। सफ़ाई व्यवस्था के मुकाबले पानी वितरण में कमाई करना आसान है। घरों में व्यक्ति “सफ़ाई” के लिये कोई अन्य विकल्प खोज सकता है, लेकिन पानी नहीं है तो उसके लिये कोई विकल्प नहीं है।

राष्ट्रीय स्तर पर भी सरकारें हमेशा जल के लिये अधिकाधिक संसाधन रखती हैं, सफ़ाई व्यवस्था के लिये नहीं। कई बार सफ़ाई को लेकर जागरूकता की कमी तथा शिक्षा, पर्यावरण, पर्यटन तथा व्यापारिक क्षेत्रों में सफ़ाई व्यवस्था की ठीक समझ विकसित नहीं होना भी आड़े आ जाता है।

पूर्व की अपेक्षा आजकल सफ़ाई व्यवस्था एक प्रमुख मुद्दा क्यों बन गया है?

बेहतर सफ़ाई व्यवस्था की उपलब्धता एक मानव विकास सूचकांक है। यह कन्या शिक्षा के लिये आवश्यक है, महिला की सुरक्षा और सम्मान के लिये, स्वास्थ्य में सुधार के लिये, तथा पर्यावरण में पनपने वाली विभिन्न बीमारियों को नियन्त्रित करने के लिये भी आवश्यक है।

सफ़ाई व्यवस्था की उपलब्धता अधिकतर जनता की पहुँच में नहीं है, फ़िलहाल जिम्बाब्वे में सफ़ाई उपलब्धता स्तर पर हम 60 प्रतिशत से घटकर 25 प्रतिशत तक पहुँच चुके हैं। शहरी क्षेत्रों में एक समय हम 100 प्रतिशत की उपलब्धता स्तर पर थे, लेकिन अब पानी की कमी, शहरी जनता के पास भी स्वयं के मकान न होना तथा अव्यवस्थित बसाहटों के कारण हम तेजी से पिछड़ते जा रहे हैं। दूसरे शब्दों मे कहा जाये तो “सफ़ाई व्यवस्था” विभिन्न रोगों को दूर रखने, हमारे पर्यावरण को बचाये रखने तथा विकास के नये लक्ष्य जैसे मातृत्व सुरक्षा, शिक्षा और मलेरिया की रोकथाम आदि के लिये भी आवश्यक है।

क्या आपका मानना है कि टॉयलेट एवं सफ़ाई व्यवस्था की कमी के कारण पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक कष्ट भुगतना पड़ता है?

महिलायें और लड़कियाँ सबसे अधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उन्हें खुले में शौच के लिये जाना होता है जो उनके सम्मान के लिये खराब होता है। महिलायें अधिकतर ऐसे मौकों पर रात के समय अकेले आने-जाने वाली महिला यौन दुराचरण एवं बलात्कार की शिकार होती हैं, इसी के साथ उन्हें अपने “सेनिटरी नैपकिन” फ़ेंकते वक्त भी कई बार बेहद शर्मिन्दा होना पड़ता है। पुरुष आसानी से कहीं भी खुले में मल-मूत्र त्याग कर लेते हैं, जबकि महिलायें आसानी से ऐसा नहीं कर सकतीं, खासकर यदि कोई नव-विवाहिता हो तब तो बिलकुल भी नहीं। महिलाओं को कई बार विभिन्न मरीजों जैसे HIV अथवा डायरिया से पीड़ितों की भी देखभाल करनी पड़ती है, तब उनके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाती है।

आपके अनुसार क्या इस देश में सफ़ाई व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है? यदि नहीं तो क्यों?

कुल सफ़ाई व्यवस्था को देखें तो हम इसे “अपर्याप्त” ही कहेंगे, खासकर संसाधन आवंटन के मामले में। “सेनिटेशन” एक तरह से “दान-व्यवस्था” होती है और सरकारों से लेकर गैर-सरकारी संगठन भी स्वच्छता अभियानों की अपेक्षा जल वितरण पर अधिक पैसा खर्च करते हैं। हाल के वर्षों में कई चुनौतियाँ आई हैं, जैसे सीमेंट की उपलब्धता। इसी प्रकार समूचे तन्त्र के प्रबन्धन की भी समस्या है। सबसे पहले हमें जिम्बाब्वे में पानी और सफ़ाई दोनों मुद्दों पर नीतियों को अन्तिम रूप देना होगा, उसी के बाद हम अन्य सम्बन्धित मुद्दों पर ध्यान दे पायेंगे, जैसे जल उपयोग सम्बन्धी कानून, पर्यावरण कानून, शिक्षा कानून, नगरीय निकाय कानून तथा ग्रामीण निकायों की स्थापना आदि। काम करने वाली विभिन्न संस्थाओं के बीच माहौल सामंजस्य का होना चाहिये ताकि उनकी भूमिका और जिम्मेदारियों का सही बँटवारा किया जा सके।

एक नियामक व्यवस्था बनाना बेहद आवश्यक हो गया है जिसमें प्रदूषण फ़ैलाने वाला अधिकाधिक दंडित हो। फ़िलहाल प्रदूषण फ़ैलाने पर इतना कम जुर्माना और दण्ड है कि संस्थायें प्रदूषण फ़ैलाती हैं और आसानी से जुर्माना देती जाती हैं। अधिकारियों और कर्मचारियों को काम करने के लिये प्रोत्साहन भी मिलना चाहिये ताकि हम उन नीतियों को बगैर किसी दण्डात्मक कार्रवाई के पूरा कर सकें।

Tags- Water,Noma Neseni, Sanitation, WSSCC, Plan International, World Vision