उद्देश्य : लेंस के बाहर के माध्यम का उसकी फोकस दूरी पर प्रभाव देखना।
उपकरण : दो लेसर टॉर्च, एक लंबी ट्रे ;लगभग 30 सेन्टीमीटरध्द, 10 सेन्टीमीटर या उससे कम फोकस दूरी वाला एक उत्ताल लेंस।
भूमिका : किसी लेंस की फोकस दूरी, लेंस की दोनों सतहों की वक्रताओं और लेंस तथा उसके चारों ओर के माध्यम के अपवर्तनांकों पर निर्भर करती है। अत: अगर लेंस को पानी के अंदर रखा जाता है तो उसकी फोकस दूरी बढ़ जाएगी।
विधि : एक उत्ताल लेंस लें और किसी दीवार या कागज पर दूर की वस्तुओं का प्रतिबिंब बनाकर उसकी फोकस दूरी का लगभग मापन कर लें। किसी आधार पर दो लेसर टॉर्चों को समांतर रूप से रखकर उन्हें आधार के साथ जोड़ दें। एक लंबी ट्रे में पानी डालकर उसमें साबुन के घोल की कुछ बूंदें मिलाएं। लेसर टॉर्च युक्त आधार को ऐसे रखें ताकि इनसे निकलते प्रकाश, ट्रे की लंबाई के समान्तर पानी में प्रवेश करे। लेसर टॉर्चों के स्विच दबाएं। ऊपर से देखने पर दोनों लेसर पुंज बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ेंगे। यदि ऐसा नहीं होता है तो इस बात की काफी संभावना है कि आपने पानी में साबुन का घोल को आवश्यकता से अधिक डाल दिया है। घोल की मात्रा ठीक कर लें। इन लेसर पुंजों के काफी संकीर्ण होने के कारण आप इनमें से हर पुंज को प्रकाश की एक किरण मान सकते हैं। उत्ताल लेंस को पानी के अंदर इस तरह से रखें ताकि उसका अक्ष प्रकाश पुंजों से समांतर हो जाए। लेंस से नकलने के बाद दोनों पुंज एक दूसरे को काटेंगे। दोनों पुंज एक-दूसरे को जहां काटते हैं उस स्थान से लेंस की दूरी को मापें। यह पानी के अंदर लेंस की फोकस दूरी है। इस बात की जांच करें कि वायु की तुलना में पानी के अंदर लेंस की फोकस दूरी कहीं अधिक होती है।
चर्चा : पानी में किरणों को दृश्य बनाना इस प्रयोग का मूल आधार है। एक बार ऐसा कर लेने पर आप अनेक प्रयोगों की अभिकल्पना करके उन्हें प्रदर्शित कर सकते हैं। विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करें और उन्हें निरंतर याद दिलाते रहें कि उनकी आंखों में लेसर का प्रकाश सीधा नहीं पड़ना चाहिए।
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विज्ञान प्रसार साइंस पोर्टल