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अमर उजाला, देहरादून, 20 जनवरी 2003
पिथौरागढ़ नगर के निकट जाखपुरान और थरकोट क्षेत्र में ऐतिहासिक नौलों की पूरी श्रृंखला मौजूद है। बालाकोट के पास हाट-बोरगांव का नौला इस क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ नौला है। स्थापत्य की दृष्टि से इसे उत्तराखंड का संभवतः सबसे सुंदर नौला कहा जा सकता है और अपने आप में यह एक संग्रहणीय धरोहर है। यह नौला आज भी गांव की पेयजल ज़रूरतों को पूरा करता है। हालांकि रख-रखाव के लिहाज से इसकी हालत अच्छी नहीं कही जा सकती। अल्मोड़ा नगर, जिसे चंद राजाओं ने 1563 में राजधानी के रूप में बसाया था, परंपरागत जल प्रबंधन का दिलचस्प उदाहरण है। जल स्रोतों की दृष्टि से यह कभी समृद्ध माना जाता था। यहां 360 नौले थे जो नगर की जलापूर्ति करते थे। इन नौलों में चम्पानौला, घासनौल, मल्ला नौला, कपीना नौला, सुनारी नौला, उमापति का नौला, बालेश्वर नौला, बाड़ी नौला, नयालखोला नौला, खजांबी नौला, हाथी नौला, डोबा नौला, दुगालखोला नौला आदि प्रमुख हैं। लेकिन अपनी स्थापना के लगभग 450 वर्षों बाद अल्मोड़ा के अधिकांश जल स्रोत इतिहास की धरोहर बन चुके हैं और वो अपनी अंतिम अवस्था में है। अल्मोड़ा के निकट 14-15वीं शताब्दी के लगभग निर्मित स्यूनराकोट का नौला आज भी मौजूद है। बावड़ी के चारों ओर बरामदा है, जिसमें प्रस्तर प्रतिमाएं लगी हुई हैं। मुख्य द्वार के सामने दो नक्काशीदार स्तम्भ बने हुए हैं। बावड़ी की अंडाकार छत कलात्मक रूप से विचित्र है। यह अल्मोड़ा जनपद का सबसे प्राचीन एवं कला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ नौला है।
चम्पावत का बालेश्वर नौला आज भी अपने पुराने वैभव की कहानी कहता है। बड़ी प्रस्तर शिलाओं पर सुंदर नक्काशियां उकेरी गई हैं। इस पर उत्कीर्ण शिलालेख बताते हैं कि राजा कूर्मचंद ने 1442 ई. में इनका जीर्णोद्धार किया। चम्पावत – मायावती पैदल मार्ग पर स्थित ‘एकहथिया नौला’ कुमाऊं की प्राचीन स्थापत्य कला का एक अनुपम उदाहरण है। लोगों का विश्वास है कि इस नौले का निर्माण एक हाथ वाले शिल्पी ने किया था। उनके पास अनूठी कलाकृति के रूम में विद्यमान इस नौले के रचना काल और निर्माणकर्ता के संबंध में कोई और जानकारी नहीं है। संभव है कभी यहां अच्छे खेतिहरों की बस्तियां रही होंगी और यह किसी राजमार्ग के मध्य में पड़ता होगा। अब तो यहां देवदार और बांज के वृक्षों का घना जंगल है।
चम्पावत के ग्राम डुंगरा का नागनौला छादित सोपानयुक्त है। चम्पावत क्षेत्र में ही पाटण के नौले में गर्भगृह की दीवारों पर देवताओं की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। संपूर्ण नौले में मनुष्यों, जानवरों व पक्षियों के भी सुंदर अलंकरण हैं। नौले का निर्माण लगभग चौदहवीं-पंद्रहवीं सदी में किया जान पड़ता है।
पिथौरागढ़ नगर के निकट जाखपुरान और थरकोट क्षेत्र में ऐतिहासिक नौलों की पूरी श्रृंखला मौजूद है। बालाकोट के पास हाट-बोरगांव का नौला इस क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ नौला है। स्थापत्य की दृष्टि से इसे उत्तराखंड का संभवतः सबसे सुंदर नौला कहा जा सकता है और अपने आप में यह एक संग्रहणीय धरोहर है। यह नौला आज भी गांव की पेयजल ज़रूरतों को पूरा करता है। हालांकि रख-रखाव के लिहाज से इसकी हालत अच्छी नहीं कही जा सकती। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्रों में भी अनेक प्राचीन नौले हैं। गंगोलीहाट के काली मंदिर के निकट राजा रामचंद्र देव द्वारा 1263 ई. में निर्मित जान्हवी नौला है, जिसे अब काफी हद तक परिमार्जित किया जा चुका है। नौले के बरामदे की बाईं दीवार के एक चिकने पत्थर पर देवनागरी लिपि में एक अभिलेख उत्कीर्ण है। बेरीनाग के निकट पुंगेश्वर का नौला बाहर से रिहायशी भवन की तरह दिखाई पड़ता है।
कुमाऊँ के अलावा हिमाचल प्रदेश और नेपाल में भी नौले पाए जाते हैं। ये हिमालयवासियों की समृद्ध-प्रबंध परंपरा के प्रतीक हैं। आज जरूरत इस बात की है कि इतिहास की इस महत्वपूर्ण धरोहर को न सिर्फ सुरक्षित रखा जाए, बल्कि जल संकट के गहराते बादलों के बीच इसकी निर्माण तकनीक का भी संरक्षण व पुनरुद्धार किया जाए।
चम्पावत का बालेश्वर नौला आज भी अपने पुराने वैभव की कहानी कहता है। बड़ी प्रस्तर शिलाओं पर सुंदर नक्काशियां उकेरी गई हैं। इस पर उत्कीर्ण शिलालेख बताते हैं कि राजा कूर्मचंद ने 1442 ई. में इनका जीर्णोद्धार किया। चम्पावत – मायावती पैदल मार्ग पर स्थित ‘एकहथिया नौला’ कुमाऊं की प्राचीन स्थापत्य कला का एक अनुपम उदाहरण है। लोगों का विश्वास है कि इस नौले का निर्माण एक हाथ वाले शिल्पी ने किया था। उनके पास अनूठी कलाकृति के रूम में विद्यमान इस नौले के रचना काल और निर्माणकर्ता के संबंध में कोई और जानकारी नहीं है। संभव है कभी यहां अच्छे खेतिहरों की बस्तियां रही होंगी और यह किसी राजमार्ग के मध्य में पड़ता होगा। अब तो यहां देवदार और बांज के वृक्षों का घना जंगल है।
चम्पावत के ग्राम डुंगरा का नागनौला छादित सोपानयुक्त है। चम्पावत क्षेत्र में ही पाटण के नौले में गर्भगृह की दीवारों पर देवताओं की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। संपूर्ण नौले में मनुष्यों, जानवरों व पक्षियों के भी सुंदर अलंकरण हैं। नौले का निर्माण लगभग चौदहवीं-पंद्रहवीं सदी में किया जान पड़ता है।
पिथौरागढ़ नगर के निकट जाखपुरान और थरकोट क्षेत्र में ऐतिहासिक नौलों की पूरी श्रृंखला मौजूद है। बालाकोट के पास हाट-बोरगांव का नौला इस क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ नौला है। स्थापत्य की दृष्टि से इसे उत्तराखंड का संभवतः सबसे सुंदर नौला कहा जा सकता है और अपने आप में यह एक संग्रहणीय धरोहर है। यह नौला आज भी गांव की पेयजल ज़रूरतों को पूरा करता है। हालांकि रख-रखाव के लिहाज से इसकी हालत अच्छी नहीं कही जा सकती। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्रों में भी अनेक प्राचीन नौले हैं। गंगोलीहाट के काली मंदिर के निकट राजा रामचंद्र देव द्वारा 1263 ई. में निर्मित जान्हवी नौला है, जिसे अब काफी हद तक परिमार्जित किया जा चुका है। नौले के बरामदे की बाईं दीवार के एक चिकने पत्थर पर देवनागरी लिपि में एक अभिलेख उत्कीर्ण है। बेरीनाग के निकट पुंगेश्वर का नौला बाहर से रिहायशी भवन की तरह दिखाई पड़ता है।
कुमाऊँ के अलावा हिमाचल प्रदेश और नेपाल में भी नौले पाए जाते हैं। ये हिमालयवासियों की समृद्ध-प्रबंध परंपरा के प्रतीक हैं। आज जरूरत इस बात की है कि इतिहास की इस महत्वपूर्ण धरोहर को न सिर्फ सुरक्षित रखा जाए, बल्कि जल संकट के गहराते बादलों के बीच इसकी निर्माण तकनीक का भी संरक्षण व पुनरुद्धार किया जाए।