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नेशनल दुनिया, 04 अगस्त 2013
तापमान बढ़ने के साथ ही गुर्दे की पथरी के मामले भी बढ़ जाते हैं। इस दौरान इन मामलों में 40 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी देखी जाती है। मौसम, तापमान और नमी कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो मूत्राशय की पथरी के बनने में अपना योगदान देते हैं। गर्म इलाकों में इसके बढ़ने की संभावना ज्यादा हो जाती है...
वातावरण में 5-7 डिग्री के तापमान परिवर्तन से ही गुर्दे की पथरी के 30 प्रतिशत मामले बढ़ जाते हैं। भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में गुर्दे की पथरी के मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं, इन इलाकों को ‘स्टोन बेल्ट’ के नाम से जाना जाता है। ऐसे में सलाह दी जाती है कि गर्मियों में पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पिया जाए। पानी की यह मात्रा एक साथ नहीं ग्रहण करनी चाहिए। आमतौर पर हर घंटे ग्लास पानी पीना चाहिए। आज के दौर में जैसा कि हम सभी भली-भांति जानते हैं कि हर आयु वर्ग के लोगों में गुर्दे की पथरी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यह सबसे पीड़ादायक मूत्र संबंधी विकार माना जाता है। तापमान और नमी बढ़ने से इसका क्या संबंध है, अब तक कोई इस विषय में सोच भी नहीं सकता था। अन्य कारणों के अलावा गुर्दे की पथरी की समस्या शरीर में होने वाले निर्जलीकरण से भी पैदा होती है, जो कि तापमान बढ़ने के कारण होती है। ऐसा तब होता जब लोग पसीने के कारण अपने शरीर से पानी की मात्रा खो देते हैं और जल की इस कमी को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी नहीं पीते। शरीर से जल का यह ह्रास मूत्र की सांद्रता को बढ़ा देता है जो अंततः गुर्दे में पथरी बनने का कारण है। जाहिर है कि गर्मियों के दौरान तापमान बढ़ने के साथ ही गुर्दे की पथरी के मामले भी बढ़ जाते हैं। इस दौरान इन मामलों में 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी जाती है। मौसम, तापमान और नमी कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो मूत्राशय की पथरी के बनने में अपना योगदान देते हैं। ऐसा पाया गया है कि जब लोग औसत तापमान वाले इलाकों से गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में जाते हैं तो शरीर में पथरी बनने के मामलों में तेजी आती है। पथरी के रोग में एक ज्ञात भौगोलिक विविधता पाई जाती है, जो विभिन्न क्षेत्रों के तापमान के अंतर के कारण होती है।
गुर्दे की पथरी के ज्यादातर मरीज 25 से 45 आयु वर्ग के होते हैं। 50 वर्ष की आयु के बाद इसमें कमी पाई जाती है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुष इस रोग के ज्यादा शिकार होते हैं। इस रोग के बारे में प्रमुख बात यह है कि 25 प्रतिशत मामलों में ऐसा पाया गया है कि परिवार में गुर्दे की पथरी का इतिहास रहा है। भारत में 50-70 लाख लोग गुर्दे की पथरी के शिकार हैं।
आरजी स्टोन यूरोलॉजी एवं लैप्रोस्कोपी अस्पताल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ. भीमसेन बंसल के अनुसार, सामान्यत: एक इंसान दिन भर में 1 से 1.5 लीटर मूत्र का स्राव करता है। पथरी मूत्र नलिका के किसी भी हिस्से में उत्पन्न हो सकती है, लेकिन यह ज्यादातर मूत्र नली या गुर्दे में पाई जाती है। यह पथरी मूत्र में घुले हुए रासायनिक तत्वों के क्रिस्टल होते हैं। यह दाने के आकार के भी हो सकते हैं या फिर एक नींबू के आकार के भी हो सकते हैं। मूत्राशय की पथरी आम तौर पर कैल्शियम, यूरिक एसिड, स्ट्रूवित (संक्रामक) सिस्टीन और स्टोन्स के 90 से 95 कैल्शियम ओक्ज्लेट से बनती है। गुर्दे की पथरी आमतौर पर कोई लक्षण नहीं पैदा करती जब तक कि वह मूत्रनलिका को अवरुद्ध न कर दे। जब मूत्र प्रवाह को अवरुद्ध करती है तो मूत्र नली फैल जाती है और खिंचाव के कारण मांसपेशियों में ऐंठन शुरू हो जाती है, जिससे उदर के निचले हिस्से और गुर्दे में तीव्र दर्द उत्पन्न होता है।
मूत्र में रक्त का आना, मूत्र की अधिकता, दुर्गंधयुक्त मूत्र विसर्जन, बुखार, कंपकंपी मितली, उल्टी आदि इसके अन्य लक्षण हैं। जो लोग ऐसे वातावरण में काम करते हैं जहां उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी पीने को नहीं मिलता, उनमें गुर्दे की पथरी होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
1. तापमान में वृद्धि गुर्दे की पथरी को जन्म देती है
2. गुर्दे की पथरी से बचने के लिए भरपूर पानी पिएं
वातावरण में 5-7 डिग्री के तापमान परिवर्तन से ही गुर्दे की पथरी के 30 प्रतिशत मामले बढ़ जाते हैं। भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में गुर्दे की पथरी के मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं, इन इलाकों को ‘स्टोन बेल्ट’ के नाम से जाना जाता है। ऐसे में सलाह दी जाती है कि गर्मियों में पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पिया जाए। पानी की यह मात्रा एक साथ नहीं ग्रहण करनी चाहिए। आमतौर पर हर घंटे ग्लास पानी पीना चाहिए। पानी के अलावा भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ जिनमें प्रोटीन, सोडियम, फॉस्फोरस या कैफीन न हो, पीने से भी गुर्दे की पथरी से बचा जा सकता है। कुछ दवाएँ भी गुर्दे की पथरी की गंभीरता को बढ़ा सकती हैं इसलिए आइबूप्रोफेन, मोटरिन और अलीएवे से परहेज करना चाहिए।
डॉ. भीमसेन बंसल का कहना है कि गुर्दे की पथरी का इलाज उसके आकार, उसके बनने के स्थान और मरीज की अवस्था पर निर्भर करता है। यह इलाज पारंपरिक विधि से या सर्जरी द्वारा किया जा सकता है। नई तकनीकों के आविष्कार के साथ ही ओपन सर्जरी की आवश्यकता में काफी कमी आई है।
छोटे आकार की पथरी जिनका आकार 1.5 सेमी से कम होता है, को लिथोत्रिप्टर के जरिए शरीर के बाहर से संवेदी तरंगों के झटके से तोड़ा जा सकता है। इस विधि को एक्स्ट्राकोरपोरेअल शक वेव लिथोट्रिप्सी कहा जाता है। इस विधि द्वारा तोड़ी गई पथरी के छोटे-छोटे टुकड़े अगले कुछ दिनों में मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। 1.5 सेमी से बड़े आकार की पथरी के लिए पर्कयुटेनीयस नेफ्रोलिथोटोमी विधि का प्रयोग होता है। यह एक कीहोल सर्जरी है, जिसमें एक टनल बनाकर पथरी को तुरंत बाहर निकाल दिया जाता है।
यह सबसे ज्यादा प्रचलित विधि है। उरेटेरे ओंस्कोपी एक अन्य सफल विधि है, जिसे मूत्र नलिका से पथरी निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस विधि में एक नली को मूत्र नली के जरिए मूत्र थैली के रास्ते डाला जाता है, यह कठोर नली मूत्र नली श्रोणि की संधि तक ही काम करती है। रेट्रोग्रेड इन्फ्रा रीनल सर्जरी की विधि में लचीली नली का प्रयोग होता है। यह मूत्र नलिका के किसी भी हिस्से में स्थित पथरी को निकालने में प्रभावी है।
वातावरण में 5-7 डिग्री के तापमान परिवर्तन से ही गुर्दे की पथरी के 30 प्रतिशत मामले बढ़ जाते हैं। भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में गुर्दे की पथरी के मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं, इन इलाकों को ‘स्टोन बेल्ट’ के नाम से जाना जाता है। ऐसे में सलाह दी जाती है कि गर्मियों में पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पिया जाए। पानी की यह मात्रा एक साथ नहीं ग्रहण करनी चाहिए। आमतौर पर हर घंटे ग्लास पानी पीना चाहिए। आज के दौर में जैसा कि हम सभी भली-भांति जानते हैं कि हर आयु वर्ग के लोगों में गुर्दे की पथरी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यह सबसे पीड़ादायक मूत्र संबंधी विकार माना जाता है। तापमान और नमी बढ़ने से इसका क्या संबंध है, अब तक कोई इस विषय में सोच भी नहीं सकता था। अन्य कारणों के अलावा गुर्दे की पथरी की समस्या शरीर में होने वाले निर्जलीकरण से भी पैदा होती है, जो कि तापमान बढ़ने के कारण होती है। ऐसा तब होता जब लोग पसीने के कारण अपने शरीर से पानी की मात्रा खो देते हैं और जल की इस कमी को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी नहीं पीते। शरीर से जल का यह ह्रास मूत्र की सांद्रता को बढ़ा देता है जो अंततः गुर्दे में पथरी बनने का कारण है। जाहिर है कि गर्मियों के दौरान तापमान बढ़ने के साथ ही गुर्दे की पथरी के मामले भी बढ़ जाते हैं। इस दौरान इन मामलों में 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी जाती है। मौसम, तापमान और नमी कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो मूत्राशय की पथरी के बनने में अपना योगदान देते हैं। ऐसा पाया गया है कि जब लोग औसत तापमान वाले इलाकों से गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में जाते हैं तो शरीर में पथरी बनने के मामलों में तेजी आती है। पथरी के रोग में एक ज्ञात भौगोलिक विविधता पाई जाती है, जो विभिन्न क्षेत्रों के तापमान के अंतर के कारण होती है।
गुर्दे की पथरी के ज्यादातर मरीज 25 से 45 आयु वर्ग के होते हैं। 50 वर्ष की आयु के बाद इसमें कमी पाई जाती है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुष इस रोग के ज्यादा शिकार होते हैं। इस रोग के बारे में प्रमुख बात यह है कि 25 प्रतिशत मामलों में ऐसा पाया गया है कि परिवार में गुर्दे की पथरी का इतिहास रहा है। भारत में 50-70 लाख लोग गुर्दे की पथरी के शिकार हैं।
आरजी स्टोन यूरोलॉजी एवं लैप्रोस्कोपी अस्पताल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ. भीमसेन बंसल के अनुसार, सामान्यत: एक इंसान दिन भर में 1 से 1.5 लीटर मूत्र का स्राव करता है। पथरी मूत्र नलिका के किसी भी हिस्से में उत्पन्न हो सकती है, लेकिन यह ज्यादातर मूत्र नली या गुर्दे में पाई जाती है। यह पथरी मूत्र में घुले हुए रासायनिक तत्वों के क्रिस्टल होते हैं। यह दाने के आकार के भी हो सकते हैं या फिर एक नींबू के आकार के भी हो सकते हैं। मूत्राशय की पथरी आम तौर पर कैल्शियम, यूरिक एसिड, स्ट्रूवित (संक्रामक) सिस्टीन और स्टोन्स के 90 से 95 कैल्शियम ओक्ज्लेट से बनती है। गुर्दे की पथरी आमतौर पर कोई लक्षण नहीं पैदा करती जब तक कि वह मूत्रनलिका को अवरुद्ध न कर दे। जब मूत्र प्रवाह को अवरुद्ध करती है तो मूत्र नली फैल जाती है और खिंचाव के कारण मांसपेशियों में ऐंठन शुरू हो जाती है, जिससे उदर के निचले हिस्से और गुर्दे में तीव्र दर्द उत्पन्न होता है।
लक्षण
मूत्र में रक्त का आना, मूत्र की अधिकता, दुर्गंधयुक्त मूत्र विसर्जन, बुखार, कंपकंपी मितली, उल्टी आदि इसके अन्य लक्षण हैं। जो लोग ऐसे वातावरण में काम करते हैं जहां उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी पीने को नहीं मिलता, उनमें गुर्दे की पथरी होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
1. तापमान में वृद्धि गुर्दे की पथरी को जन्म देती है
2. गुर्दे की पथरी से बचने के लिए भरपूर पानी पिएं
भौगोलिक क्षेत्र का प्रभाव
वातावरण में 5-7 डिग्री के तापमान परिवर्तन से ही गुर्दे की पथरी के 30 प्रतिशत मामले बढ़ जाते हैं। भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में गुर्दे की पथरी के मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं, इन इलाकों को ‘स्टोन बेल्ट’ के नाम से जाना जाता है। ऐसे में सलाह दी जाती है कि गर्मियों में पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पिया जाए। पानी की यह मात्रा एक साथ नहीं ग्रहण करनी चाहिए। आमतौर पर हर घंटे ग्लास पानी पीना चाहिए। पानी के अलावा भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ जिनमें प्रोटीन, सोडियम, फॉस्फोरस या कैफीन न हो, पीने से भी गुर्दे की पथरी से बचा जा सकता है। कुछ दवाएँ भी गुर्दे की पथरी की गंभीरता को बढ़ा सकती हैं इसलिए आइबूप्रोफेन, मोटरिन और अलीएवे से परहेज करना चाहिए।
सबसे ज्यादा प्रचलित तरीका
डॉ. भीमसेन बंसल का कहना है कि गुर्दे की पथरी का इलाज उसके आकार, उसके बनने के स्थान और मरीज की अवस्था पर निर्भर करता है। यह इलाज पारंपरिक विधि से या सर्जरी द्वारा किया जा सकता है। नई तकनीकों के आविष्कार के साथ ही ओपन सर्जरी की आवश्यकता में काफी कमी आई है।
छोटे आकार की पथरी जिनका आकार 1.5 सेमी से कम होता है, को लिथोत्रिप्टर के जरिए शरीर के बाहर से संवेदी तरंगों के झटके से तोड़ा जा सकता है। इस विधि को एक्स्ट्राकोरपोरेअल शक वेव लिथोट्रिप्सी कहा जाता है। इस विधि द्वारा तोड़ी गई पथरी के छोटे-छोटे टुकड़े अगले कुछ दिनों में मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। 1.5 सेमी से बड़े आकार की पथरी के लिए पर्कयुटेनीयस नेफ्रोलिथोटोमी विधि का प्रयोग होता है। यह एक कीहोल सर्जरी है, जिसमें एक टनल बनाकर पथरी को तुरंत बाहर निकाल दिया जाता है।
यह सबसे ज्यादा प्रचलित विधि है। उरेटेरे ओंस्कोपी एक अन्य सफल विधि है, जिसे मूत्र नलिका से पथरी निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस विधि में एक नली को मूत्र नली के जरिए मूत्र थैली के रास्ते डाला जाता है, यह कठोर नली मूत्र नली श्रोणि की संधि तक ही काम करती है। रेट्रोग्रेड इन्फ्रा रीनल सर्जरी की विधि में लचीली नली का प्रयोग होता है। यह मूत्र नलिका के किसी भी हिस्से में स्थित पथरी को निकालने में प्रभावी है।